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मेरे चरणों में शतशत नमन, मा सिमरण से दुरित पार्श्व प्रभ जी की मातृशक्ति
सब के જરાતને ગુજરાતની પ્રજાને, પ્રજાની સંસ્કાર સમૃદ્ધિને અને નૈતિકતાને ઘડી, પાસા પાડચા, એ પાણીને બહાર આવે. એની ચમકને જગત એની સામે નીરખ્યા જ કરે એ
ज
तेरे दर्शन
संस्कारी खापा
લિકાલસર્વજ્ઞ શ્રી હેમચન્દ્રાચાર્ય
બચેલા ઓને
तु
बना लो प्रभु
अपना
प्रभ मोहे अपना बनाना होगा बनाना होगा बनाना होगा शरणागत वत्सल में आया हूँ शरणे सेवक निजान निभाना होगा शरण न तुम बिन मोहे किसी का अब तो अपना कहना होगा
वल्लभ र जला रहा है मोहे क्रोध दावानल
. समकित ध - हो
क्षमा वर्षा से बुझाना होगा मान अहिं मोह खाय रहा है नम्रता देके बचाना होगा माया प्रपंच मोहे उलझा रहा है
THE INTERIORS OF SOME FIFTEENTH CENTURY
JAINA TEMPLES OF RAJASTHAN
फोटोग्राफी
देके सरलता छुड़ाना होगा अ- सागर में मैं डूब रहा हूँ उन्तोष नावा तिरा
श्री कान्ति रांका - संयोज जाता के आगे अधिक क्या क
1, सुभट मेरे पीछे ल दे बहमचर्य हटाना हो
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प्रभ०
युग दृष्टा
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of the Satrunjay
प्रभ०
विजय इन्द्रदिन्न सूरि
M.A. DHAKY
the 13th century witnesse and destruction of e oles in Western In the eighth and of desecrated Jain quantities ecorated
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प्रभु०
प्रभ०
प्रभु०
प्रभ
आखिर पार लगाना होगा
आतम लक्ष्मी सहर्ष मनायो वल्लभ अपना बनाना होगा आचार्य विज
पता।
VIJAY VALLABH SMARAK
जैन-दर्शन और विश्वशान्ति
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भगवान् महावीर विजयइन्द्र तक
(पट्ट- परम्परा)
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श्री सुधर्मा स्वामी जी (अनगार निर्ग्रन्थगच्छ) 'जंबूस्वामी जी
प्रभव स्वामी शय्यभव सि
लोभद्र सर
गा
हमारे गुरुदेव : आचार्य विजय वल्लभ
वल्लभ
विशेष कल्याणद यद्यपि आप मर्थ हैं
सदबाह स्वामी जी
इस पृथ्वी पर कि और स्वा
प्रकृति की सर्वोत्तम कृति मानव है चित्तवृत्तियों के कारण उसके स्वभाव में वि
जाती है। कुछ व्यक्ति किसी मार्ग का अन्धानुसर तो देते हैं पर मार्ग की दुर्गमता के कारण साहस छोड़ तो कुछ साहसी गन्तव्य तक पहुँचने का प्रयास करत सफल भी होते हैं। कित कतिपय ऐसे दुर्लभ महामना जो जिधर चलते हैं स्वयं एक नया मार्ग बन जाता है। पथिक, मानव होते हुए भी नवयुग-द्रष्टा और स्रष्टा कह पूजे जाते हैं। उस शान्तिशोधक के चरणयुगल अ
के लिए प्रकाश स्तम्भ बन जाते हैं, उन
वल्लभ उच्चरित शब्द आप्तवाक्य कहलाते
और प्रवृत्ति आदर्श का विचार, आशीर्वाद
गधु-स
।। जयन्तु वीतरागाः ।। भगुरुसङ्क्षिप्तचरित्रर गवाल्यबह्माचारिणे बल्लभसरये ।। T: 1
प्लभ
जन्म लिया, अपनी सुविधा किया और अन्त में व समुदाय के क्ति ऐ है, न जन्म
-आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वजी
तु
प्रकाशकीय
15
महावी भगवान अनेकान्तवा च
सदिय
अन्याय का धन
अन्याय-अनीति या हिंसा आदि में जो भी बात से सत्ता या और कई चीज प्राप्त की जाती है, आसक्ति पूर्वक स
श्री गदि विवाडी....
का एक भुत मार्ग।
अन्तरिक चेतना के वशी -दर्शन वृन्द, गुरुप्रेमी भक्त समुदाय अप वर्णन करने में आदर्श पुरुष के प्रति केवल श्रद्धान्वित् करता रहा है अपित उनकी विचारधारा पे पल्लवित, पति
धर्म-चित्त की शुद्धत
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