Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 256
________________ 33 कि वह उसकी सेवाओं की सराहना करे,उसे प्रोत्साहन दे।जब श्री समय वे कटिशूल से पीड़ित हैं, जिसमें उठना-बैठना, झुकना बम्बई के मानद मंत्री, भगवान् महावीर समिति, नई दिल्ली, श्री वल्लभ-स्मारक के निर्माताओं की गिनती की जाय तो अन्त में ही आदि कष्ट-प्रद होते हैं। फिर भी गुरुजनों के चरणों में अधिक हस्तिनापुर जैन श्वेताम्बर तीर्थ समिति, सेठ आनंद जी कल्याण सही उसका नाम कृतज्ञता-पूर्वक अवश्य गिना जाये। क्योंकि झककर वे इसलिए प्रणाम करते हैं कि पीठ पर हाथ रखकर जी ट्रस्ट, श्री आत्मानंद जैन महासभा, उत्तर भारत की कीर्ति का त्याग सबसे बड़ा त्याग है। जो व्यक्ति व्यवसाय, गुरुजन उन्हें आसानी से आशीर्वाद दे सकें। कार्यकारिणी के सदस्य हैं। व्यावसायिक संस्थाओं में केमिकल्स अपनी लाभ-हानि यहां तक कि स्वास्थ्य की भी परवाह न कर श्री राजकमार आजकल सभी कार्यों को एक ओर रख. एंड एलाइड प्रडिक्ट्स एक्सपाट प्रमोशन कासिल के अध्यक्ष, निष्काम भाव से स्मारक- निर्माण में रात-दिन जुटा हुआ हो, स्मारक- निर्माण में जी-जान से जटे हए हैं। इस मस्तैदी को नार्दन इंडिया रबर मैन्यूफैक्चर्स फेडरेशन के संस्थापक मत्री, उसकी सेवाएं ओझल नहीं की जा सकतीं। देखकर गणिवर्य श्री जगच्चन्द्र विजय कहते हैं कि सुश्रावक श्री हरियाणा सैफटी कौंसिल लेबर डिपार्टमेंट हरियाणा सरकार की श्री वल्लभ-स्मारक के प्रति पूर्णतः समर्पित ऐसे कार्यकर्ता हैं खैरायती लाल जी के छह पुत्र हैं, उनमें वय-क्रम के अनुसार कार्यकारिणी के सदस्य हैं। और वे सब जगह अपने उत्तरदायित्व "श्री राजकुमार जैन" जिनका जन्म एक धार्मिक परिवार में सन् राजकुमार दूसरे हैं, जिन्हें उन्होंने गुरुवल्लभ के चरणों में का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हैं। 1927 ई० में झेलम नदी पर बसे झेलम शहर (अब पाकिस्तान) समर्पित कर दिया है। इस कथन का समर्थन कुछ शब्द-परिवर्तन जैसा कि ऊपर लिखा गया है, इस समय श्री वल्लभ-स्मारक में हुआ। झेलम नदी का वैदिक नाम वितस्ता है। अतः के साथ अन्य लोगों ने भी किया। उनका कहना है कि व्यापार का के कार्यों को सम्पन्न करने में वे लगे हुए हैं, उसे अद्वितीय और बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था पर्यंत वितस्ता की वीचियों कार्य श्री राजकुमार के भाई संभालते हैं, वे तो आजकल वल्लभ गौरवशाली बनाने की धुन में सब कुछ भूल गए हैं। इतना सब (लहरों) के बीच खेलने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। परन्त 20वें स्मारक का ही, काम देखते हैं। इस सम्बन्ध में श्री राजकुमार का करने के बावजूद उन्हें ऐसा नहीं लगता कि मैं कुछ कर रहा हूं। वर्ष में, युवावस्था की देहली पर पांव रखते ही भारत-विभाजन कहना है ऐसी बात तो नहीं,मैं जिस काम में हाथ लगाता हूं उसे कार्य का सारा श्रेय सहयोगियों को देते हैं। श्री वल्लभ-स्मारक के का दुर्भाग्य भी उन्हें देखना पड़ा। फलतः "जननी-जन्मभूमिश्च लगन और उत्तरदायित्व के साथ पूरा करता हूं।' विभिन्न विभागों और कार्यों को दिखाते हुए विनम्र भाव से कहते स्वर्गादीप गरीयसी" को छोड़ कर वे दिल्ली के निवासी बन गए। भारतीय समाज में संयक्त परिवार का बड़ा महत्व है। खेद हैं कि यदि विनोदभाई दलाल का सहयोग नहीं मिलता तो मैं कुछ __श्री राजकुमार के पिता श्री खैरायती लाल विनम्रता की मूर्ति है, अब यह व्यवस्था नागरी-संस्कृति के कारण छिन्न-भिन्न हो नहीं कर पाता। इससे बढ़कर निरभिमानता और सहयोगियों की हैं। अपने भारतीय उष्णीष (पगड़ी) के कारण लाखों की भीड़ में रही है। किन्तु श्री राजकुमार का परिवार संयक्त परिवार का महत्ता स्वीकारने की और कौन सी बात हो सकती है? आसानी से पहचाने जा सकते हैं। व्यावसायियों के लिए जैन आदर्श है। इस युग में, जहां दो भाइयों में कौन कहे पति-पत्नी में दिन भर श्री वल्लभ-स्मारक में व्यस्त रहने के बावजूद धर्मानुसार रात्रि-भोजन-त्याग बड़ा दुष्कर कार्य है। परन्तु श्री भी नहीं पटती, वहां राजकमार छह भाई होते हए भी परस्पर गणिवर्य जगच्चन्द्र विजय जी से विचार-विमर्श करने के लिए, खेरायती लाल कई दशकों से इस नियम का पालन कर रहे हैं। सदभावपर्वक सखमय जीवन बिताते हैं। बस्ततः मनष्य उनका आदेश प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम अतः राजकमार जी को विनम्रता और धार्मिकता विरासत के रूप आत्म-केन्द्रित न हो. दसरों का भी ध्यान रखे तो वह स्वयं सखी प्रतिदिन आते रहते हैं, उसके बाद भी कार्यालय का कार्य घटा में मिली है। रह सकता है और दूसरों को भी सुखी कर सकता है। देखते रहते हैं। एक दिन तो वे मंदिर कार्यालय में 2 बजे रात तक ___ आजकल यात्रा-भीरुओं की संख्या अधिक है। शीतकाल में साहित्य में एक अलंकार विरोधाभास है, जिसका अर्थ है । व्यस्त रहे और प्रातः साढ़े सात बजे सहयोगी कलाकारों को श्री तो यात्रा और भी दुखद होती है। परन्तु राजकुमार जी एक सप्ताह वास्तविक विरोध न होते हुए विरोध का आभास। ऐसा ही एक वल्लभ-स्मारक ले जाने के लिए उपाश्रय में उपस्थित हो गए। में ही अहमदाबाद, पालिताना, बंबई, जयपुर आदि की यात्रा विरोधाभासात्मक वाक्य है, "काम वही कर सकता है जिसके था राजकुमार जिर अस्वस्थ होते हुए भी आसानी से कर लेते हैं। क्योंकि यात्रा उनकी पास समय नहीं है।" इसका तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति धामक कायकता ह उसा प्रकार व प्रखर वक्ता भाह, घण्टा हॉबी (शौक) जो है। पर विदेश-यात्रा में जैन होने के कारण उन्हें प्रमाद-रहित होकर अपना सारा समय परोपकारी कार्यों में बोलने के बाद भा उन न्हें प्रमाद-रहित होकर अपना सारा समय परोपकारी कार्यों में बोलने के बाद भी उनकी वाणी में तनिक भी शिथिलता नहीं खान-पान सम्बन्धी असह्य कठिनाइयां सहन करनी पड़ती हैं। लगाता है, उसे अन्य कार्यों के लिए, अपने लिए समय नहीं रहता। आती। हिन्द ती हैं। लगाता है उसे अन्य कार्यों के लिए अपने लिए समय नहीं रहता। आती। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उनका समान सदा समयाभाव बना रहता है। अतः ऐसे व्यस्त व्यक्ति ही कार्य अधिकार है। इंग्लैंड के जैनमंदिर में दो घंटों तक उनका अंग्रेजी में शाकाहारी भोजन को ग्रहण करना इनके जैन-मन ने अस्वीकार करने में सफल होते हैं। अकर्मण्यों को तो कभी समयाभाव होता धारा-प्रवाह भाषण हुआ था। उनके हिन्दी- भाषणों से कर दिया। अस्वीकार करना ही चाहिए, आकार-भ्रष्ट वस्तुओं ही नहीं। जब कोई काम ही नहीं करते तो उनका सारा समय बचा जन-जगत् पूणतः पारातहहा का। ही रहता है। श्री राजकुमार ऐसे ही कर्मठ व्यक्ति हैं। अनेक वस्तुतः ऐसे निस्पृह और कर्मठ कार्यकर्ताओं द्वारा ही लौकिक श्री राजकुमार के आन्तरिक व्यक्तित्व के समान ब्राह्य धार्मिक, व्यावसायिक संस्थानों से जुड़े हुए हैं, उत्तरदायित्व पूर्ण और आध्यात्मिक कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होते हैं। फलतः व्यक्तित्व भी आकर्षक है। प्राचीन आर्यों की भांति दीर्घ पदों को संभाले हुए हैं जिससे अपने लिए उनके पास समय नहीं उनकी यशोगाथा उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों के साथ देह-यष्टि, उसी अनुपात में अंगों का सौष्ठवं दर्शनीय है। इस रहता वेश्री वल्लभस्मारक के मंत्रीतो हैं ही जैन श्वेताम्बर कांफ्रेंस अपने आप जड़जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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