Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 274
________________ साध्वी संघ...एक विनती साध्वी मृगावती श्री भगवान महावीर स्वामी का साध्वी संघ अतीत में व पू० पंजाब केसरी युगवीर आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी श्री भोगीलाल लहेरचंद के नाम से एक शोधपीठ चल रही है। वर्तमान में विशाल रहा है, तथा विशाल है। आज तो इस साध्वी महाराज प्रायः कहा करते थे कि "आज तक धर्म की रक्षा बहिनों इसमें उच्चाभ्यासी बंधु संशोधन व संपादन का कार्य कर सकेंगे। संघ में छोटी-छोटी उमर की साध्वियों के त्याग को देखकर ने ही की है, तथा वे ही करेंगी"। और महात्मागांधी जी ने भी कहा बाकी छोटी-छोटी साध्वी तथा दीक्षार्थी बहिनों के लिए संस्कृत, जन-मानस श्रद्धा से झुक जाता है। छोटी उमर में, युवावस्था में है कि इस जीवन में जो-जो कुछ पवित्र व धार्मिक है, उसका प्राकृत, व्याकरण, काव्य कोश साहित्य, न्याय आदि धार्मिक और फिर, आज के भौतिक युग में "त्याग" करना कोई बहिनों ने विशेष संरक्षण किया है। इन उपरोक्त बातों पर विचार अभ्यास की पूरी व्यवस्था व अनुकूलता वहां की जाएगी। छोटी-मोटी बात नहीं है। त्याग करने व साधमार्ग अपनाने का करते हुए सहज ही ख्याल आता है कि त्याग की मूर्तियाँदीक्षार्थी बहिनों को कम से कम तीन वर्ष तथा विशेष मुख्य उद्देश्य तो आत्म-कल्याण ही है। सती-साध्वियों द्वारा कितना बड़ा कार्य किया जा सकता है। पूरा उच्चाभ्यास के लिए पांच वर्ष का अभ्यास क्रम नियत किया जाना आत्म-कल्याण करने के लिए समता, संयम, सरलता, साध्वी वर्ग यदि विद्या व ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ेतथा इन्हें चरित्र चाहिए। आगमों के अभ्यास में श्री दशवकालिक सूत्र, नंदीसूत्र, नम्रता, विवेक, अंकिचनता तथा आचार-विचार आदि गणों की बल में ज्ञान-विद्या का बल भी मिल जाए तो इनमें कितना तेज अनयोगद्वार सूत्र, श्री उत्तराध्ययन सूत्र तथा इसके साथ जरूरत है। यही गुण आत्मार्थी साधुता की कसौटी है। विद्वता या * प्रकट होगा? साध्वी जी महाराज में अभ्यास बढ़ेगा तो ज्ञान आचारांग सूत्र व सूयगडांग सूत्र आदि पढ़ाने, दर्शन, योग; काव्य वक्तृत्व आदि गण आत्मार्थी साधता के मार्ग में गौण हैं। यह सच । बढ़ेगा। सच्चा ज्ञान व समझ बढ़ेंगे तो लोकोपकार के कार्य तथा साहित्य, व्याकरण प्राकृत आदि विषयों में निष्णात पंडितजुटाकर है कि ऐसी आत्मार्थी साधुता में स्वकल्याण के ऐसे इच्छकों के संघ व समाज की उन्नति के अनेकों कार्य साध्वी कर सकेगी। अभ्यास की व्यवस्था की जाए तो लक्षित व सुंदर परिणाम अवश्य हाथों से संघ, समाज, देश व राष्ट्र का कल्याण होता है। परन्तु यह समाज के मखिया व संघ के आगेवान इस दिशा में गंभीरता से प्राप्त होंगे। साध्वी जी महाराज के अभ्यास की प्रगति की वर्ग शिक्षित हो तो यह कार्य बहुत आसानी से हो सकते हैं। विचार करें। उन्हें बहुत कुछ कर सकते हैं। देख-रेख के लिए विद्वान श्रावकों की एक कमेटी हो। तथा सुज्ञ आज समय ऐसा आ गया है कि लोगों में व्यावहारिक शिक्षा पूज्य आचार्य भगवंतों के चरणों में नम्र विनती है कि वे श्रावकों की एक अन्य कमेटी भी बनाई जाए जो यह जरूरी बढ़ रही है। शैक्षणिक क्षेत्र तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में दनिया उदारतापूर्वक इस विषय में अपनी आज्ञा दें। पूज्य साध्वी गुरुणी व्यवस्था करे कि साध्वी जी महाराज अपनी संयम यात्रा के साथ खूब आगे बढ़ रही है। दूसरी ओर आज के विलासी बातावरण में जी महाराज स्वयं अपनी शिष्या प्रशिष्या साध्वी जी को आगे स्वस्थतापूर्वक ज्ञान अभ्यास कर सकें। लोगों की आध्यात्मिक भूख भी जांगी है। शिक्षित भाई-बहिनों में बढ़ाने व अभ्यासी बनाने का निश्चय करें। तेजस्वी साध्वी जी भी अपनी समाज में पैसे की कमी नहीं। उत्सवों तथा अन्य काफी आस्तिकता अभी रही हुई है। धार्मिक भावना भी देखने में स्वकल्याणार्थ पूज्य गुरुदेवों और गुरुणी जी के चरणों में नम्र भाव कार्यों में उदारता से खर्च किया जाता है। धर्म-कार्य भी योग्य आती है। से इस संबंध में निवेदन करें। इस तरह साध्वी संघ स्वयमेव समय व योग्य क्षेत्र के अनुसार चलते रहें। परन्तु यह कार्य भी. स्वोन्नति के शिखर पर पहुंचने की हिम्मत व भावना करें। "झुकाने वाला कोई हो तो झुकने वाली दुनिया है"....इस अति महत्वपूर्ण है। इस दिशा में स्थानकवासी श्रीसंघ ने बंबईकथनानुसार, धर्ममार्ग में जन साधारण की रुचि पैदा करने, हमारे साध्वी संघ में तेजस्वी और विदुषी साध्वियां सैकड़ों घाटकोपर में श्रमणी विद्यापीठ की स्थापना का बहुत सुन्दर कार्य व्यसनों से मुक्त करके आचार-विचार व खानपान की शद्धि की का सख्या म तयार हा सकता ह। जरूरतासफ इस दिशा में समझ किया है जो सराहनीय व अभिनंदनीय है। ओर अग्रसर करने, सादगी व श्रम की प्रतिष्ठा समझाने, आदर्श पूर्वक प्रयत्न करने की है। अमुक साध्वी जी महाराज में अभ्यास, विद्या प्राप्ति की । गृहस्थाश्रम की रचना की प्रेरणा देने, समाज को कमजोर बनाने आजकल गृहस्थ अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए बोर्डिंग, पाठशाला, कालेजों तथा विदेशों तक भेजते हैं। पूज्य साध्वी जी वाली कुप्रथाओं व बाह्याडम्बरों की हानिकारिकता, एवं संघ, लगन और शास्त्राभ्यास की तीव्र इच्छा तो देखने में आती है, महाराज भी अपनी शिष्याओं को विदषी बनाने के लिए २०-२५ समाज व देश की उन्नति में इनके द्वारा हुए अहित के प्रति परन्तु उन्हें तदहेत अनकलता नहीं मिलती. इसके लिए श्रीसंघ या ५०-१०० मील क्यों न भेजें? जरूर भेजें, ताकि उनका जीवन भावनाएं जगाने, त्याग को अपनाकर आध्यात्मिक उन्नति की को खास व्यवस्था व विशेष अनुकूलता जुटाने की तुरंत महान बने। संघ का हित हो तथा देश में धर्म प्रचार के उपकार का ओर बढ़ने की प्रेरणा देने, साम्प्रदायिक संकुचितता का त्याग आवश्यकता है। लाभ मिले। करके व्यापक विशाल उदार भावनाएं अपनाने का महत्व भारत की राजधानी दिल्ली में शहर से दूर प्रशांत समझाने तथा इस प्रकार प्रभु के शासन की सच्ची सेवा हेतु प्रेम बातावरण में खेतों की हरियाली के मध्य प्रकृति के सान्निध्य में अभ्यासार्थी साध्वी-संघ के गुरु, गुरुणीजी महाराजों से यह पूर्वक समझा सकने से व्यक्ति और समाज-दोनों को बहुत लाभ पूज्य यगद्रष्टा, अज्ञान तिमिरतरणी आचार्य श्री विजय वल्लभ मेरी विनम्र विनती है। होगा। यह कार्य मातृ शकित द्वारा सरलतापूर्वक किया जा सकता सूरीश्वर जी महाराज का महापावन स्मारक बन रहा है। इसमें (पूज्य साध्वी मृगावती श्री जी की नोट बुक से) amin Education international FORPrivate Spersonal use Only

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