Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 265
________________ महत्तरा जी की छाया - सुशील रिन्द सेवा साधना गुरू भक्ति का जहां भी चर्चा आयेगा, बड़े प्रेम से सुज्येष्ठा श्री जी का नाम पुकारा जायेगा। बालापन में घर को छोड़ा प्रभु से प्रीत लगाई, महातपस्वी शीलवतीजी से धर्म की दीक्षा पाई, मृगावतीजी की साया बनकर सारी उमर बिताई, मीरा जैसा सच्ची पुजारिन इस युग की कहलाई, ऐसी नम्रता ऐसा समर्पण जब भी ढूंढा जायेगा..... बड़े प्रेम से...... मृगावतीजी की योजना थी गुरुयादगार रह जाये, गुरू के अर्पण सेवा का जो अमर गीत कहलाये, गुरुओं के गुण और गरिमा का कोई अमर संदेश सुनाये, ऐसा सुंदर वल्लभ स्मारक धरती पर बना जाये, देव विमान से प्यारा नक्शा दुनियाँ को जो लुभाये, ऐसी प्रेरणा देने वाला युगों में कभी ही आयेगा...... बड़े प्रेम से.. महासती चन्दनबाला सी दया धर्म की मूरत, तप और त्याग का नूर या उनमें रुहानी थी सूरत, प्रेमभाव हर एक से रखना इन की थी यह फिदरत, मृगावती को माँ से भी ममता दी और खिदमत जरी जरी इस धरती का इन्हीं के नगमे गायेगा..... बड़े प्रेम से.. चेहरे पर मुस्कान थी हरदम दिल में प्यार था माँ का, भोली भाली सूरत उनकी गम था सारे जहाँ का, भगवा जैसी समता थी इनमें जिस्म मिला इन्सों का, याद रहेगा दुनियाँ भर में किस्सा यह बलिदां का, सच्ची शिष्या अपने गुरु की "रिन्द" तो भूल न पायेगा..... बड़े प्रेम से.. Jain Education international महत्तराजी एक राष्ट्रीय मूल्यांकन सदियों की गुलामी से अपने को मुक्त करवाने के लिए इस देश ने जो अहिसात्मक ढंग से लड़ाई लड़ी, दुनियां के इतिहास में उसकी मिसाल नहीं आजादी हासिल कर लेने के बाद एक दूसरी लड़ाई शुरू हुई, वह थी विघटनकारी तत्वों के खिलाफ देश में जनतान्त्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। इन दोनों लड़ाइयों में जिन राजनीतिज्ञों, समाज सुधारकों, क्रान्तिकारियों, बुद्धिजीवियों कलाकारों और साधु-सन्तों ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, देश उनके उपकारों से कभी उॠण नहीं हो सकता। इन महान आत्माओं का पुण्यस्मरण आजादी के बाद जन्मी आज की युवा पीढ़ी को न सिर्फ बल प्रदान करेगा बल्कि भारतीय अस्मिता के प्रति उन्हें जागरूक भी बनायेगा। सुप्रज्ञा श्री समाज सुधारक, शिक्षा प्रचारक, राष्ट्रसन्त श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की पावन छत्र-छाया मिली। जिससे उनकी स्वदेशी भावना पुष्पित एवं पल्लवित हुई। साध्वी मृगावती जी ने अल्प समय में ही अपनी प्रखर प्रतिभा के बल से वैदिक, बौद्ध एवं जैन परम्परा के वाङ्मय का तुलनात्मक अध्ययन राष्ट्रीय पुरुस्कार से अलंकृत पंडित सुखलाल जी एवं पं. बेचरदास जी से कर लिया। उनके दोनों विद्या गुरु बापू के निकट रहने वालों में से थे। हाथ से कती हुई शुद्ध खादी पहनते थे। देश की आजादी के लिये अनेकों बार जेल काटी थी सोने में सुगन्ध मिली। साध्वी मृगावती श्री जी के स्वदेशी विचारों में अधिक परिपक्वता आई । साध्वी मृगावती श्री जी महाराज का पुनः शुरू हो गया जन जागृति अभियान का सफर उनका कार्यक्षेत्र मात्र जैन धर्मानुयायिओं तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने अपना जीवन संपूर्ण भारतीय समाज के लिए अर्पित कर दिया। साध्वी जी महाराज ने विचारों की क्षमता से युग के नव निर्माण का बीड़ा उठाया, युवकों में उत्साह भरा, महिला समाज को नई दिशा दी, और मानव को सच्ची राह दिखाई। धर्म को क्रियाकांडों, मंदिरों तथा धर्मस्थानकों तक ही सीमित न रखकर उसे व्यवहार में उतारने की प्रेरणा दी। देश में फैली हुई सामाजिक कुरीतियाँ दहेज प्रथा, मृत्योपरान्त छाती पीटने की प्रथा, मैला कुचैला पहनने की प्रथा, रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास, मध-मांस, अंडा, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि व्यसनों के विरुद्ध, उन्होंने जन-आन्दोलन छेड़ा और सफलता पाई। समाज से अशिक्षा दूर करने के लिए स्कूलों, कालिजों, नारी शिक्षा केन्द्रों की स्थापना करवाई। देश में श्रम की प्रतिष्ठा को बढ़ावा देने के लिए ग्रामानुग्राम पैदल चलकर लोगों को स्वावलम्बी बनने का उपदेश दिया बेरोजगारों को रोजी रोटी मिले उसके लिए हस्त उद्योग और लघु उद्योग केन्द्रों की स्थापना करवाई। समाज को निरर्थक खचों और आडम्बरों से दूर रखा। देश के अनेक अन्ध विद्यालयों को आर्थिक सहायता दिलवाई। वे जीवन भर हाथों से कते हुए शुद्ध खादी वस्त्र ही पहनती रहीं। वे भिक्षुणी थीं। खादी की भिक्षा) उसी व्यक्ति से स्वीकार करती थीं जो स्वयं खादी पहनता हो। मातृभाषा गुजराती थी। संस्कृत में तो वे धाराप्रवाह प्रवचन दिया। उंगलियों पर ही गिनी जाने वाली देश की नारी सन्तों में आधुनिक युग में जैन साध्वी महत्तरा मृगावती श्री जी का नाम अग्रगण्य है। उनका जन्म सन् 1926 में सौराष्ट्र में राजकोट से 16 किलोमीटर दूर सरधार के एक जैन सुखी परिवार में हुआ था। अभी भानुमति दो वर्ष की भी न हुई थी कि पिता डूंगरशी भाई स्वर्ग सिधार गए। कुछ ही वर्षों बाद दोनों प्रिय भ्राता अपनी पूज्य माता और प्यारी बहन को अहसाय छोड़ कर चले गये। जिससे माता के दिल को बड़ा धक्का लगा। इस असार संसार से वैराग्य उत्पन्न हुआ। उन्हीं दिनों में गांधी जी के स्वतन्त्रता आन्दोलनों की बड़ी धूम मची हुई थी। गांधी जी के आह्वान पर बच्चा, बूढा, जवान, भाई-बहन सभी देश की आजादी के लिए मर मिटने को तैयार थे। उस समय राजकोट, अंबा और सरधार बापू के आन्दोलनों का मुख्य कार्यक्षेत्र था। माता शिवकुंवर बहन और पुत्री भानुमति पर भी गांधी जी का बहुत प्रभाव पड़ा। वे धीरे-धीरे गांधी जी के सत्याचरणयुक्त व्यक्तित्व एवं उनकी विचारधारा में रंगते गये। 11 वर्ष की आयु में राजकोट के स्वतन्त्रता आन्दोलनों के जलूसों में सहयोग देने लगे। घर की सब सम्पत्ति स्वतन्त्रता सेनानियों को अर्पित कर 13 वर्ष की अल्पायु में मां पुत्री दोनों ने सन्यास धारण कर लिया। माता का नाम साध्वी शीलवती श्री जी और पुत्री का नाम साध्वी मृगावती श्री जी रखा ● गया। सौभाग्य से साध्वी जी महाराज को दीक्षा के पश्चात पंजाब केसरी, अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरू, युगद्रष्टा, For Private & Personal Use Only www.jainelion

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