________________
विश्व विश्रुत वल्लभ स्मारक प्रियधर्मा श्री
ATMA
TIMErrrrr
दिल्ली में निर्माणाधीन वल्लभ स्मारक से शायद ही कोई चतुर्थ-महत्तरा साध्वी श्री मृगावती श्री जी महाराज। जिन्हें अपरिचित होगा। दिल्ली और वल्लभ स्मारक मानों एक ही लड़ी बड़ौदा साधु साध्वी सम्मेलन में पूज्य समुद्र सरि जी म. सा. ने की कड़ी में पिरोये हुए हो। क्या कोई ऐसा जैन होगा जो दिल्ली अन्य की अपेक्षा अधिक योग्य और सक्षम जानकर दिल्ली जाकर जाये और वल्लभ स्मारक की भूमि का स्पर्श न करें? वल्लभ स्मारक बनवाने के लिए आदेश दिया। साध्वी मृगावती
श्री जी ने कहा-"गुरुदेव! मेरे में ऐसी कोई भी योग्यता एवं भले ही गुजरात, राजस्थान, सौराष्ट्र महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश,
सामर्थ्य नहीं है फिर भी आप श्री जी कृपा दृष्टि प्रेरणा एवं पंजाब आदि अनेक स्थलों पर पूज्य वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा.
आशीर्वाद मेरे साथ होगा तो अवश्यमेव आप श्री जी की अन्तरंग की अनेक स्मृतियाँ हैं परन्तु यह विशाल भव्य अनुकूलतायुक्त
भावना को पूर्ण करने का प्रयास करूंगी।" आचार्य भगवंत की रमणीय, कमनीय स्मारक विश्व भर में अद्वितीय है। इसलिए इसे
आज्ञा शिरोधार्य कर साध्वी जी म. अनेकानेक कष्टों को समता विश्व विश्रुत कहा जाए तो कोई अव्युक्ति नहीं होगी।
भाव से सहते हुए सब इस भव्य स्मारक के निर्माण में अपना वल्लभ स्मारक के साथ चार महान विभूतियों की स्मृतियाँ जीवन समर्पित कर दिया। भले ही आज वे हमारी दृष्टि से ओझल श्रृंखला रूप में जुड़ चुकी हैं। प्रथम, पंजाब केसरी कलिकाल हो चुके हैं किंतु काश! इस प्रतिष्ठा के सुअवसर पर हमारे बीच कल्पतरु आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा. जिनका होते तो कितना अच्छा होता। किंतु भवितव्यता ही ऐसी थी। भव्य स्मारक बनाया जा रहा है। जिनके उपकारों से कोई भी जैन हमें कई बार वल्लभ स्मारक जाने के सुअवसर मिलते रहे। विशेषरूपेण पंजाबी भक्त कभी उऋण नहीं हो सकते। द्वितीय, सचमुच वहाँ का वातावरण अत्यधिक रमणीय, शान्त एवं राष्ट्रसन्त शान्ततपोमूर्ति पूज्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी आह्लादकारक है। स्वाध्याय, ध्यान एवं आत्मिक शांति का म. सा.। जिनके हृदय में तीव्र तमन्ना थी कि भारत एवं विशाल केन्द्रस्थल है। जिन मन्दिर गुरुमन्दिर, पद्मावती माता का स्मारक बनना चाहिए। तृतीय-परमार क्षत्रियोद्वारक चरित्र मन्दिर समाधिस्थल उपाश्रय भोजनशाला पुस्तकालय आदि चड़ामणि, जैन दिवाकर, तपोनिधि, आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सरि अनेक स्थलों का निर्माण हो चुका है। अनेकानेक कार्यों का निर्माण जी म. सा.। गतवर्ष जिनके स्मारक प्रवेश के समय आधुनिक अभी चल रहा है। स्मारक की चर्चा करते हुए उसके कार्यकर्ता, भामाशाह थी अभयकुमार ओसवाल ने धर्म के सातों क्षेत्रों के बुद्धिशाली, सूझ-बूझ के धनी उदार गुरुभक्त भाई राजकुमार जी सिंचन के लिए सौ लाख का दान दिया और उन्हीं आचार्य श्री की को भुलाया नहीं जा सकता जो रात-दिन स्मारक निर्माण के कार्य निश्रा में अंजनशलाका प्रतिष्ठा हो रही है।
में जुटे हुए हैं। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
जगता का शिक्षक
मेरे अन्तर्मन के तम को, अपनी आभा से दूर भगा। शशि किरणों सी शीतल वाणी, से ज्ञानामृत का पान करा।।
मेरे विवेक बुद्धिबल को कर दे प्रेरित त पल भर में। मनसा-वाचा मैं पुण्य करूं, गण गाऊँ तेरा जग भर में।।
तेरी निर्मल यशगाथाएँ,
अभिलाषाएँ हैं मुखर यहाँ। संस्कृति सिखाता है जगती को,
वल्लभ स्मारक है खड़ा नया।। हे विश्वशान्ति के सूत्रधार! हे ऐक्य नीति के सृजनहार! हे युगदृष्टा ! हे युगवल्लभ! है बार-बार तुझको प्रणाम।।
आरआर
S
MRIKSHET
For Private &Personal use Only