Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 246
________________ वल्लभ स्मारक की प्रतिष्ठा की पावन घड़ी आ गई जिसकी एक भी बच्चा जब एक तक अज्ञानी या भूखा रहेगा तब तक यह चिरकाल से प्रतीक्षा हो रही थी। जिस गुरु की याद में यह स्मारक गोचरी आराम से कैसे गले उतर सकती है। उद्योग धन्धों के बिना बनाया गया है वे गुरू भी एक महान् हस्ती थे। आओ जरा उस गुरु बेकार बनी हुई जैन जनता की बेकारी दूर करूँगा उसको सुखी की जीवन ज्योति की कछ किरणों को लेकर अपने जीवन को बनाने का प्रयत्न करूँगा। लक्ष्मी नन्दनों का ध्यान सामान्य जनता प्रकाशित करें। के दुख दूर करने की तरफ आकर्षित करूँगा। गुरुदेव ने अपने बड़ौदा का छगन, माता के वचनों पर मग्न बन कर, आत्म जीवन की अन्तिम घड़ी तक अपने निर्णय को पूर्ण करने का प्रयास का वल्लभ बन कर जग का वल्लभ बन गया था। करने का प्रयत्न किया। आज सभी प्रयत्नों का मधुर फल खा रहे हैं। यह भारतवर्ष महापुरुषों का देश है। इस विषय में संसार का है। कोई भी देश या राष्ट्र भारत की तुलना नहीं कर सकता। यह आचार्य श्री जी का जीवन सूत्र था कि एक साथ मिलकर बैठो, अवतारों की जन्मभूमि है, सन्तों की पुण्यभूमि है, योगियों की योग विचार विनिमय करो, जो निर्णय हो उसे आचरण में लाओ। भूमि, वीरों की कर्मभूमि और विचारों की प्रचार भूमि है। यहाँ गुरुदेव समाज कल्याण हेतु अपने शरीर को कष्ट देते थे। संयम अनेकों नररत्न, समाजरत्न, धर्मरत्न, राष्ट्ररत्न तथा देशभक्त और क्रिया में सदैव सजग रहते थे, अभिमान तो उनको छ भी नहीं पैदा हुए हैं जिन्होंने मानव मन की सूखी धरती पर स्नेह की सर पाया था। महान पुरुषों का जीवन अनेकों विशेषताओं से अलकत सरिता प्रवाहित की, जन मन में संयम और तप की ज्योति जगाई, होता है। ऐसी ही करुणा की साकार मूर्ति, प्रेम, दया, क्षमा, समता की दिव्य फल का सौरभ फल के साथ ही रहता है, चन्द्रमा की प्रतिमा, श्रमण संस्कृति के ज्योर्तिमान नक्षत्र पंजाब केसरी आचार्य शीतलता उसके साथ ही रहती है सूर्य का प्रकाश और तेज उसके विजय वल्ल्भ सूरीश्वर जी म. थे। उनकी महानता और साथ ही बंधे रहते हैं परन्तु महापुरुषों की गुण सुगन्ध उनके साथ चमत्कारिक जीवन का कहां तक वर्णन किया जाए, मेरी जिह्वा तो रहती ही है कितु जब महापुरुष इस धरती से अपनी साधन में इतनी क्षमता कहाँ? जिस पर आपकी दृष्टि पड़ जाती थी उसकी और कर्तव्य का पालन करके चले जाते हैं तो उनके जीवन का आधि-व्याधि सब नष्ट हो जाती थी। आपकी वाणी में मधु का मौरभ युग-युगान्तरों तक संसार को सौरभान्वित करते रहते हैं। माधयं या, आँखों में आलोकिक तेज था, जीवन में संयम तथा ऐसा ही जीवन था गरु बल्लभ का। वे युगपुरुष और यगद्रष्टा थे साधना की चम्बकीय शक्ति का पूर्ण तथा निवास था, जो भी एक साथ ही यगवीर भी थे। उनकी वाणी में युग की वाणी बोलती थी, -साध्वी प्रगणा श्री बार आपके दर्शन कर लेता था वह सदा के लिए आपका हो जाता उनके चिन्तन में युग का चिन्तन चलता था। अपने कार्यों के द्वारा था। तभी तो किसी कवि ने कहा है कि: वे जन-जन के वल्ल्भ बन गए थे। तभी तो आज भारत की राजधानी दिल्ली में उनकी स्मृति में विशाल स्मारक बन कर कितना प्यारा नाम है वल्लभ, कितना सुन्दर बना है जो भी निकलता श्री मुख से वही पूर्ण हो जाता था, तैयार हो रहा है। वल्लभ स्मारक। ऐसी मधुर मनोहर वाणी जो सुनता वो हर्षाता था, वल्लभ के मिशन की पूर्ति करने वाला वल्ल्भ स्मारक, दिव्य तेज ही कुछ ऐसा था कि संसार झुक जाता था, हम सभी गुरु भक्त कहलाते हैं। तभी हम गुरुदेव के सच्चे जन-जन की श्रद्धा का केन्द्र है बल्लभ स्मारक, आपकी तेजोमय आभा के आगे रविमंडल भी शरमाता था। अनुयायी कहला सकेंगे जबकि हम उनके आदशों पर उनके बल्लभ के नाम को अमर करने वाला है वल्लभ स्मारक, गुरुदेव की भावनाः-सचमुच आचार्य श्री जी ने अपना सम्पूर्ण पर चरणचिन्हों पर चलंगे। गुरुदेव तो जैन शासन के कोहिनूर हीरे बल्लभ की याद दिलाने वाला है बल्लभ स्मारक, जीवन संघ और समाज के लिए समर्पित कर दिया था। गुरुदेव थे। यद्यपि मेरे इन नयनों ने गुरुदेव का दर्शन नहीं किया फिर भी ज्ञान ध्यान और मौन की साधना कराने वाला है वल्लभ स्मारक, कहा करते थे कि "मैं अपने प्राण देकर भी अज्ञान के अन्धकार को माधना की उस महान् विभूति के सम्बन्ध में जो कछ पढ़ा एवं जैन भारती मृगावती श्री जी म. के प्रयासों का सफल है । दूर करने के लिये कालेज, स्कूल, गुरुकुल, पाठशाला साला मना है उसी के आधार पर अपने कुछ श्रद्धा सुमन प्रस्तुत किए है। बल्लभ स्मारक, खुलवाऊँगा, विश्व विद्यालय की ज्योति जलाऊँगा, सम्प्रदायों में अन्त म...... विश्व की प्रसिद्ध वस्तुओं में विश्व विश्रुत बना है भेद डालने वाली दीवारों को भमिसात करूँगा, उपाश्रयों के बाहर चुप है लेकिन सदियों तक गूंजेगी सदा ए साज तेरी, वल्लभ स्मारक भी महावीर के सन्देश को पहँचाऊँगा, नवकार मन्त्र बोलने वाला दनियां को अन्धेरी रातों में ढाढ़स देगी आवाज तेरी। "गुरु वल्लभ और वल्लभ स्मारक" in Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org/

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