Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 252
________________ पूर्व इतिहासः - परमपूज्य 1008 श्री विजयानंद सूरीश्वर जी महा. सा० ने एक स्वप्न संजाया था कि पंजाब के जुदा-जुदा ग्रामों में रखे हुए हस्तलिखित पुस्तक भंड़ारों को एक स्थान में एकत्र किया जाए। उनकी इच्छानुसार पंजाब केसरी पं. आ. विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महा. ने बहुत से शहरों के ग्रन्थो गुजरांवाला में एकत्र किए थे। और ज्ञानमंदिर लाहौर में बनवाने की धारणा थी। भारत का विभाजन हुआ और गुजरांवाला पाकिस्तान में चला गया। जैनभाई विकट स्थिति में आ गए परन्तु गुजरांवाला के श्री संघ के भाईयों ने जिस कमरे में पुस्तकें थी उसके आगे पक्की दीवार बनवा दी। और गुजरवाला छोड़कर आ गए। इस दीवार के पीछे कोई कमरा है, किसी को खबर भी नहीं पड़ती थी। कितने वर्षो बाद शांति हुई। पाकिस्तान सरकार की परमिशन लेकर सेठ कस्तूरभाई लाल भाई तथा गवर्नर श्री धर्मवीर के सहयोग से गुजरांवाला में दीवार तोड़कर पुस्तकों की 56 पेटियां दिल्ली रूपनगर मंदिर में लायी गई। सन् 1954 में पू. आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी महा. बम्बई में कालधर्म को प्राप्त हुए। उस समय पू. सा. श्री शीलवती जी महा. सा., पू. सा. श्री भृगावती श्री जी महा. तथा सा. सुज्येष्ठा श्री जी महा. अंबाला में थे। उन्होंने गुरु महा के भव्य स्मारक बनवाने का श्री आत्मानन्द जैन महासभा में निर्णय करवाया और उन्होंने इस कार्य के लिए गांव गांव में भ्रमण करके सुन्दर वातावरण बनाया और लगभग 40,000 (चालीस हजार) रु. का फंड भी एकत्रित करवाया जो रूपनगर में लाई गई पुस्तकों के लिए अलमारियाँ तथा ग्रंथों की सूचि बनवाने में खर्च हो गया। पू. सा. शीलवती श्री जी महा. तथा पू. सा. मृगावती श्री जी महा. साहब पंजाब से विहार करके दिल्ली, गुजरात सौराष्ट्र महाराष्ट्र, बम्बई, पूना आदि में भ्रमण किया। बम्बई में पू. सा. शीलवती श्री महा. का कालधर्म हो गया। बाद में पूना, बंगलौर, मैसूर भ्रमण करके दिल्ली पधारे और वल्लभ स्मारक के लिए निरन्तर प्रेरणा देते रहे और आज हम स्मारक का उद्घाटन प्रसंग देख रहे हैं। सन् 1983 में साध्वी जी महा. दिल्ली पधारे और पं. श्री लक्ष्मण भाई जी की भेजी रिपॉट के अनुसार गुजरांवाला से आई हुई पुस्तकों की सुचारू ढंग से व्यवस्था करने का विचार किया। ग्रंथों की समान्य सूची पं. श्री हीरालाल जी दुग्गड़ ने की थी परन्तु Jain Education International पुस्तकों की सर्वमान्य पद्धति से ग्रन्थों की सूची एवं विशेष सुरक्षा के लिए अहदाबाद से ता. द. विद्यामन्दिर से पू. लक्ष्मण भाई भोजक जी को बुलाया और उनके मार्गदर्शन में पू. साध्वी श्री मृगावती जी महा. की शिष्याएं साध्वी सुज्येष्ठा श्री जी, सुव्रता जी सुयशा श्री जी एवं सुप्रज्ञा श्री जी महा. पुस्तक भंडार का कार्य करने के लिए उत्साहित हुए। पहले प्राचीन लिपि पढ़ना सीखे, फिर कैटलोग बनाने की पद्धति जानी। ग्रंथों में लगी हुई धूल को सावधानी से एक एक पन्ना करके साफ किया, उनके पत्र गिन कर रैपर करके, उनके ऊपर नाम लिखकर ग्रंथों के परिचय कार्ड लिखे, ग्रंथों को विषयवार करने के पश्चात उनके एक साईज बनाकर उनके क्रम से नम्बर करके रैपर ऊपर तथा कार्डों पर नम्बर लिखा । यह तमाम कार्य पं. श्री लक्ष्मण भाई भोजक के मार्गदर्शन में पूज्य साध्वी जी महा. ने बड़ी मेहनत से किया है। लगता है हस्तलिखित ग्रंथों के कैटेलोग का काम जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक समाज में पू. साध्वी जी महा. ने किया हो ऐसा यह प्रथम प्रसंग है। जिन शहरों से यह ज्ञान भंडार आए हैं उनके नाम निम्न अनुसार हैं: 1. गुजरांवाला 2. लुधियाना 3. जम्मू 4. नकोदर 5. शियारपुर 6. पट्टी 7. जंडियाला गुरु 8. जंडियाला गुरु 9. पं. हीरालाल दुग्गड़ 10. बन्नू पाकिस्तान पंजाब काश्मीर जालंधर पंजाब पंजाब पंजाब जैन संघ भंडार यतिका भंडार सपुत्र श्री दीनानाथ दुग्गड़ पाकिस्तान 11. फुटकर 12. पू. आ. श्री विजय समुद्र सूरि 13. श्री हंसराज नौलखा एम ए जीरा 14 ब्रहमचारी शंकर लाल अमृतसर फरीदाबाद 15. जीरा 16. देव श्री जी महा. का भंडार मालेरकोटला 17. समाना भंडार 18. सुनाम भंडार 19. बड़ौत भंड़ार पंजाब पंजाब For Private & Personal Use Only 20. साध्वी चित्त श्री जी 21. फरीदकोट 22. अम्बाला जैन संघ 23. बिनौली जैन संघ इस भंडार में लगभग १२,००० हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहित हैं। इसमें 1. मालेरकोटला से प्राप्त 4. 5. यू.पी. ताड़पत्रीय "वासुदेवहिड़ी" जैसा ग्रंथ अनु. 13वीं शताब्दि का है। 2. विक्रम स. 1400 में लिखा हुआ षडावश्यक बालावोध की कागज की प्रति भी इसमें है। 3. पू. उपा. श्री विनयविजय जी रचित "हेमलघु प्रतिक्रिया" की पोथी जिसका र.स. 1710 है वह पोथी स. 1710 में लिखी हुई इस संग्रह में है। उपदेशमाला, कर्ता: मलधारी हेमचन्द्र सूरि धातुतिलक शतक, कर्ताः प्रभादित्य व्यास 6. शब्दप्रभेद टीका ज्ञान विमल र. स. 1652 ले. सं. 1655 7. रसराज बोध प्रकाश (सुवर्ण सिद्धि) क. कविनंद इस संग्रह में आगम, प्रकरण, व्याकरण, न्याय, ज्योतिष, वैद्यक काव्य, अलंकार, कोष, रास, चौपाई, कथा, भक्ति साहित्य, स्तुति स्त्रोत्र, स्तवन, सज्झाय, पट्टावली, प्राचिक काम. शास्त्र, रत्नशास्त्र, सामुद्रिक, निमित, शकुन और बौद्ध दिगम्बर वेदान्त, वैशेषिक पुराण आदि ग्रंथ भी संगृहीत किए गए हैं। पू. महतरा सा. मृगावती श्री जी महा. की प्रेरणा से सेठ श्री प्रताप भाई द्वारा स्थापित " भोगीलाल लहरचन्द इन्स्टीट्यूट आफ इण्डोलोजी - दिल्ली इसकी व्यवस्था कररही है जो वल्लभ स्मारक का ही एक भाग है। पू. गणि श्री नित्यानंद विजय जी महा. एवं मुनि श्री धर्म धुरन्धर विजय जी म. की प्रेरणा से गुजरात में से कपड़वंज, जम्बूसर, जोधपुर तथा कच्छ माण्डवी से भी कुछ हस्तलिखित संग्रह एवं प्रिंटेड पुस्तकें यहां आई हैं। 12000 हस्तलिखित ग्रंथों के कैटेलोग का काम पूरा हो गया है। और पीछे से आए हुए भंडारों का काम चल रहा है। पुस्तकों के रक्षण के लिए एल्युमीनियम के डिब्बे "श्री मुलखराज जी ने महावीर मैटल वालों की ओर से बन रहे हैं। और गोदरेज की अलमारियां आ गई हैं। 29 www.jainelibrary.org

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