________________
धर्म-चित्त की शुद्धता
अनुराधा, दिल्ली
श्री बल्लभ स्मारक से हस्तिनापुर तीर्थ तक जो छरीपालित मानसिक विचार उच्च होना चाहिए। हमारे मन में इतनी शक्ति संघ यात्रा हुई थी उसकी साक्षी मैं भी थी। घर आने के पश्चात् है कि जीवन में यह सबसे बड़ा मित्र और शत्रु भी हो सकता है। अचानक मेरे मन-मस्तिष्क में यह चिन्तन शरू हुआ मैंने और
क्षण भर में अच्छे विचारों से एवं अच्छे भावों से यह मन हमें मुक्ति दसरे भाई-बहनों ने इस पदयात्रा संघ में शामिल होने के लिए घर
के प्रासार में ले जाकर शोभायमान कर सकता है। और दूसरे ही
के पामार में ले जाकर प्रोभायमान कर ग की सुख-सुविधा छोड़ी वे सब पैदल चले। लू का सामना किया,
क्षण यह मन हमें बुरे विचारों से पतन के गहरे गर्त में धकेल देता
है। अतः मोक्ष की प्राप्ति के लिए अरोग्य तन के साथ ही, आरोग्य क्या सीखा और हमारी उपलब्धि क्या रही जो चिरस्थायी एवं मन का होना नितान्त आवश्यक है। आरोग्य मन में आरोग्य आत्मोत्थान की उन्नति को छूने वाली हो। क्या मैं व्यक्तिगत रूप आत्मा का निवास होता है। आरोग्य आत्मा का अभिप्राय है जो से वहीं की वहीं तो नहीं खड़ी हूँ। क्या हमारा नैतिक स्तर कुछ आत्मा राग द्वेष मोह-माया आदि सभी विकारों से विमुक्त हो। ऊँचे उठा? क्या हमने जीवन को रंचमात्र भी धर्ममय बनाया
परन्तु अब हमारे सामने प्रश्न है कि इन सभी बातों का ज्ञान क्योंकि धर्म केवल पैदल चलने से नहीं है। धर्म तो जीवन जीने की
कैसे हो। हम किस प्रकार अपने चरम लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। कला है। यदि इन सभी धार्मिक क्रियाकांडों के अभ्यास से जीवन
आरोग्य तन के लिये संतुलित आहार क्या है?आरोग्यमन के लिए मूल्य ऊँचे नहीं उठते। हमारा लोक व्यवहार नहीं सुधारता तथा
विचारों पर अंकुश कैसे रखा जा सकता है। और आरोग्य आत्मा हम अपने लिये और दूसरो के लिए मंगलमय जीवन नहीं जी
के लिए कषायों से कैसे मुक्त हो सकते हैं। क्योंकि आज के भौतिक सकते तो ऐसा धर्म और धार्मिक क्रियाकांड व्यर्थ है। धर्म तो एक
युग में इन सभी बातों के लिए किसी व्यक्ति के पास समय नहीं हैं। आदर्श जीवन की शैली है। सुख से रहने की पावन पद्धति है तथा
इसके लिये हमारे साधु एवं साध्वी महाराज सहायक सिद्ध हो शान्ति प्राप्त करने की विद्या है।
सकते हैं। आप पूछोगे कि वह कैसे अगर साध-साध्वी मंडल के इसके अतिरिक्त हमें ज्ञात है कि सभी का चरम लक्ष्य मोक्ष श्रावकों को दूसरे व्रतों के साथ-साथ स्वाध्याय करने का नियम प्राप्ति है। मोक्ष प्राप्ति के लिये हमें बाहरी क्रियाकांड में न पड़कर दिलायें तो श्रावकों के ज्ञान में वृद्धि होगी। अगर वे उस ज्ञान पर सम्यक्ज्ञान-दर्शन एवं चरित्र की प्राप्ति करनी है। इसके लिए चिन्तन-मनन करके जीवन में उतारें तो धर्ममय बन सकता है। आरोग्य तन,आरोग्य मन एवं आरोग्य आत्मा की आवश्यकता है। उससे मानव अच्छा इन्सान बन जाता है। आरोग्य तन का तात्पर्य है कि हमारा शरीर स्वस्थ होना चाहिये
अन्त में दो पंक्तियाँ लिखती हुई समाप्त करती हूँ। क्योंकि कोई भी काम करने के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना नितान्त आवश्यक है। इसके लिए संतुलित आहार होना चाहिए।
कर्मकांड न धर्म हउ धर्म न बाहघाचार। यह कहा भी गया है कि जैसा हम खाते हैं वैसा ही हमारा मन
धर्मचित्त की शुद्धता, सेवा करुणा प्यार।। विचार बन जाता है। आरोग्य मन से तात्पर्य है कि हमारा
मेरे पास
रेडियो सेट है सोफासेट है कैसेट है डीनर सेट है
अरे टी.वी. सेट भी है परन्तु
हे युवक मेरी एक बात सुन इन सभी सेट के बीच तू स्वयं ही अपसेट है। क्यों?
dainEducation internatio
www.jainelibrarvor