Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 237
________________ श्री विद्या सागरी जी ओसवाल, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री जी उग्र विहार कर वहीं पहुंचते रहे हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान, महत्तरा श्री मृगावती जे महाराज ने स्मारक के प्रांगण में एक हुए। गुरू देव के यह कहने पर, कि उन्होंने पिछले दिन एक करोड़ गुजरात, कच्छ, उत्तर प्रदेश आदि चहु और उनका ध्यान विशाल धर्मशाला तथा एक आदर्श स्कूल तथा स्त्री प्रशिक्षण के फण्ड की भावना व्यक्त की थी, श्री ओसवाल ने तुरन्त यह आकृष्ट रहता है। उनकी कृपा से अनेक अलभ्य ग्रंथ एवं जीर्ण केन्द्र स्थापित करने की योजना बनाई थी। दानी महानुभाव तैयार उत्तरदायित्व स्वीकार कर लिया। अभय कुमार जी की इस मूर्तियां एवं अन्य उपयोगी वस्तु हमें प्राप्त हो चुकी हैं। स्मारक के भी हुए थे और कुछ धनराशि भी एकत्रित हुई थी। निर्माण के घोषणा से गुरु देव का जय जय कार हो उठा। सारे देश में धूम मच तलधर में एक संग्रहालय का प्राथमिक रूप से श्रीगणेश भी कर प्लान भी बनाए गये थे। पूर्ण विश्वास है कि निकट भविष्य में ये गई। बीस लाख रूपये तो स्मारक निर्माण कार्य हेतु दे भी दिये हैं। दिया जा चुका है। निकट भविष्य में इस दिशा में विशेष प्रगति निर्माण काम भी चालू कर दिये जाएंगे और चरित्र चूड़ामणि दि० 31.3.1988 को गुरुदेव की भावनानुसार एक छःरी होने की सम्भावना एवं आशा है। गच्छाधिपति आचार्य विजयेन्द्र दिन्न सूरि जी महाराज की कृपा से पालित पैदल यात्रा संघ श्री हस्तिनापर के लिये विजय बल्लभ पिछले 9 महीने से स्मारक निर्माण कार्य में विशेष गति आई सभी बाधाएं तथा आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे। गुरुभक्त कृत स्मारक से आचार्य देव विजयेन्द्र दिन सरि जी की निश्रा में है। लगभग 250-300 शिल्पी दिन रात काम कर रहे थे। पत्थर संकल्प हैं अतः सफलता भी अवश्यम्भावी है। निकाला गया। तीन सौ यात्री, गरू महाराज तथा श्रमणी मंडल द्वारा स्मारक के अभूतपूर्व गुम्बद का निर्माण एक अति कठिन. विजय वल्लभ स्मारक के प्रागंण में नव निर्मित जिन मन्दिर साथ था। 12 दिन में विधिवत यात्रा निर्विधन सम्पन्न हुई। जटिल तथा जोखम का काम था। देव, गुरू तथा धर्म के प्रताप से , में चतुमुर्ख जिन बिम्बों का अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव दि० हस्तिनापुर पहुंचते-पहुंचते 2000 यात्री तथा 67 मुनिराज एवं एवं माता पद्मावती जी के आशीर्वाद से वह विविध रूप से सम्पन्न । 1.2.89 से दि०11.2.89 तक मनाया जा रहा है। मुख्य प्रासाद में साध्वी जी महाराज का दिल्ली मेडी पनि दिन हुआ है। इस गुम्बद की कला और निर्माण अद्वितीय तथा चकित विजय वन्लभ सरि जी की भव्य प्रतिमा भी स्थापित होने वाली है। बैण्ड, साथ-साथ पैदल चलता रहा। पंक्तिबद्ध चलना तथा कर देने वाले हैं। वस्तुकला के विद्यार्थियों, दर्शकों तथा गुरु भक्तों जिन मंदिरों के रंग मंडपों में गुरु गौतम स्वामी जी, पू० आचार्य अनुशासन सराहनीय था। हस्तिनापुर से मुरादाबाद होकर गणि अर्थात् सभी के लिये यह विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गया है। आत्मा राम जी, पू० विजय वल्लभ सूरि जी तथा विजय समुद्र सूरि नित्यानंद विजय जी ने भंदर राजस्थान की ओर विहार कर दिया। भगवान की प्रतिमाएं भी उतनी ही मन मोहक एवं आकर्षक का जी की मूर्तियां भी विराजित होंगी। मुख्य आयोजन दि08.9 तथा तथा गणि श्री जगचन्द्र विजय जी पावागढ़ से विहार कर केन्द्र बन गया है। भगवान की प्रतिमाएं भी उतनी ही मन मोहक 10 फरवरी को होंगे। 9 फरवरी को अंजनशलाका तथा 10 हस्तिनापुर में आचार्य के पास पहुंच गए एवं वहां पर ही चातुर्मास एवं आकर्षक हैं। समस्त निर्माण कार्य में एक विशेष निखार आया तारीख को शुभ मुहूर्त में प्रतिष्ठा सम्पन्न होगी। दि011.2.89 को किया। है। जिन मन्दिर जी के गुम्बद का सामरण भी निर्मित हो चुका है। अन्य सभी सामरणों का काम अभी शेष है। विशाल क्रेन उपलब्ध द्वारोद्घाटन होगा। और दि0 12.2,89 को सक्रांति का कार्यक्रम अब गुरु देव, मुरादाबाद समाधि प्रतिष्ठा, मुजफ्फरनगर हो जाने पर, उसके प्रयोग से निर्माण कार्य में अवर्णनीय सुगमता है। अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स का 25वां (रजत) तथा आगरा के नूतन जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठा विधि सम्पन्न महाधिवेशन भी श्री दीपचंद जी गाडी.बार-एट-ला निवासी की और तीव्रता आई है। यदि क्रेन हमारे पास न होती, तो हमारा काम करवा कर अपने विशाल श्रमण-श्रमणी परिवार के साथ दिल्ली अभी अधुरा ही होता। निष्पात शिल्पियों की छैनी की झंकार से अध्यक्षता में सम्पन्न होने जा रहा है। जिस में समाज की वर्तमान पुनः पधार चुके हैं। मुनि श्री धर्म धरूधर जी उग्र विहार कर परिस्थिति तथा समाजोत्थान की भावी योजनाओं पर विचार वातावरण दिन रात गुजायमान रहता है। महत्तरा जी कहा करते पालीताना से सीधे वल्लभ स्मारक के दर्शनार्थ एवं प्रतिष्ठा में थे कि एक साथ कई पत्थर घड़ने की टिक टिक ध्वनि उन्हें बड़ी विमर्श होंगे। कुछ विद्वतजनों का बहुमान भी करने का आयोजन भाग लेने के लिए पधार गए हैं। वे पुनः शोध कार्य तथा आगम प्यारी लगती है। वे इसे मधुर संगीत कहते थे। श्री विनोद लाल है। युवा सम्मेलन तथा महिला सम्मेलन भी सम्पन्न होंगे। देश अध्ययन हेतु वापिस पाटन गजरात पधारने की भावना रखते हैं। दलाल जी का स्वास्थ्य अति कमजोर होते हुए भी जिस निष्ठा और विदेश से हजारों धर्मबन्ध एवं गुरुभक्त इस महा महोत्सव में गणिवर्य श्री नित्यानंद विजय जी अपने ज्येष्ठ भ्राता मुनि जयानन्द योजना बद्ध ढंग से वे परम कुशल अभियन्ता के रूप में काम कर भाग लेने के लिये पधार रहे हैं। विजय जी, सूर्योदय विजय एवं अन्य मनिमंडल के साथ दिल्ली रहे है अथवा उत्तरदायित्व निभा रहे हैं, उसके लिये संघ और पधार गए हैं। उन्होंने भंदर चातुर्मास कर वहां देव और गुरू विजय बल्लभ स्मारक जिसे महत्तरा मृगावती श्री जी समाज उनका आभार मानता है। वे एकमेल ऐसी विभूति हैं महाराज ने आत्म वल्लभ संस्कृति मन्दिर का नाम दिया था, अब भगवन्तों के नाम का खूब डंग बजाया। उपधान प्रतिष्ठा तथा जिनका सानी मिलना कठिन है। जिस प्रकार पू० महत्तरा दीक्षाएं सम्पन्न करवा के वे भी उग्र विहार कर यहां समय से पहुंचे उन्नति के पथ पर अग्रसर है। जैन दिवाकर, परमार मृगावती श्री जी ने स्मारक योजना बनाकर उसे कार्यान्वित करने क्षत्रियोद्धारक चरित्र चूड़ामणि, गच्छाधिपति आचार्य विजय इन्द्र हैं। हम उन सभी के आभारी हैं। के लिये अपने जीवन का सर्वस्व ही अर्पण कर दिया था, उसी दिन सरि जी महाराज की कृपा से यह संस्थान उत्तरोत्तर उन्नात ___ गत तीन वर्ष से गणि श्री नित्यानंद विजय जी बल्लभ स्मारक प्रकार उनकी शिकाएं भी उन्हीं की भांति तल्लीनता से स्मारक करेगा और गरुदेव विजय वल्लभ सरि जी के मिशन का आग के ग्रंथाकार के लिये प्राचीन ग्रंथ एवं संग्रहालय के लिये पुरातत्व के विभिन्न कार्यों में जुटे हुए हैं। कार्य में अनेक बाधाएं आती रहती बढाएगा एवं भगवान महावीर, की शास्वती वाणी के प्रचार आ की अमूल्य सामग्री इकट्ठी करवा रहे हैं। दूर अथवा नजदीक हैं। परन्त गुरू कृपा से उनका निवारण भी होता जाता है। आर्थिक प्रसार के लिये मेरू दण्ड सिद्ध होगा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह जहां कहीं से जरा सी भनक पड़ी कि यह सामग्री उपलब्ध है, गणि विषमता तथा कार्यकर्ताओं की कमी सदैव खलती रहती है। जैन समाज की श्रद्धा तथा प्रवृतियों का केन्द्र बनेगा। Jain Education Interational For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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