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करते कि कभी घबराना नहीं। "स्मारक भूमि पर तो प्रभु कृपा सन्दर भवन बनाना चाहिये। श्री धर्मचन्द जी परिवार ने इसका मई 1987 में विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की दीक्षा रहेगी, धन की इतनी वर्षा होती रहेगी कि धन सम्भालना उत्तरदायित्व लिया। उन्हीं की प्रेरणा द्वारा लाला लाभचन्द शताब्दी की पूर्व भूमिका बनाने के लिये, स्मारक स्थल पर पू० मुश्किल हो जायेगा"। इस प्रकार अन्य भी अनेक लोगों को राजकुमार फरीदाबाद परिवार ने एक सार्वजनिक कैंटीन बनवाने साध्वी सुव्रता श्री जी की निश्रा में एक विकलांग शिवर लगाया प्रोत्साहित कर उन्होंने स्मारक के लिए अनुदान प्राप्त किया। की जिम्मेदारी ली और लाला रत्नचन्द जी अध्यक्ष निधि एवं तीन गया। केन्द्रीय मन्त्री श्री जगदीश टाईटलर मुख्य अतिथि, एवं
आखिर 17 जुलाई 1986 के दिन उनकी शारीरिक व्यवस्था आजीवन ट्रस्टी सर्वश्री सुन्दरलाल जी, खैरायतीलाल जी तथा कार्यकारी पार्षद श्री कुलानंद भारतीय तथा सांसद चौ० भरत अति क्षीण हो गई। परन्तु सायं लगभग 5.00 बजे उनके भीतर रामलाल जी परिवारों ने सामूहिक रूप से निधि के लिए एक सुन्दर सिंह अतिथि विशेष थे। विकलांगों को कृत्रिम पाव, ट्राई साइकल, छिपी हुई दैवी शक्ति ने उनको कुछ ऐसा बल प्रदान किया कि वे कार्यालय निर्माण कर कार्यभार संभाला। एवं भाई श्री अभय सिलाई मशीनें तथा रोजगार की सामग्री जुटाई गई। बिकलांगों ने उठकर बैठ गये। श्री विनोद लाल दलाल से क्षमापना की एवं कुमार सुपुत्र श्री विद्या सागर जी ओसवाल लुधियाना ने अतिथि श्रद्धा भाव से मांस मदिरा त्याग के नियम साध्वी जी से भरी सभा वचन लिया कि वे निर्माण कार्य को योजना बद्ध कर के ही विश्राम गृह निर्माण के लिये विपुल एवं सराहनीय आर्थिक योगदान देने का में लिये। करेगें। सर्व श्री राम लाल जी, रत्नचन्द जी,शान्ति लाल खिलौने वचन दिया। दि0 22.8.86 तथा 14.9.86 को इन्हीं परिवार
महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज की एक प्रबल वाले तथा राजकुमार आदि से भी मिच्छामि टुक्कड़ कहा। प्रमुखों के कर कमलों द्वारा उपरोक्त तीनों भवन तथा दो उपाश्रय
भावना थी कि जैनाचार्य विजय वल्लभ सूरि जी के दीक्षा शताब्दी तदुपरान्त अपनी साध्वियों तथा श्रावकों से नाता तोड़ विदाई भवनों के शिलान्यास कार्यक्रम साध्वी सुव्रता श्री जी म. की निश्रा
वर्ष के उपलक्ष्य में एक विशेष समारोह स्मारक स्थल पर सन लेकर भगवान संखेश्वर पार्श्वनाथ जी की फोटो के समक्ष 5 घंटे में सम्पन्न हुए। परन्तु डी.डी.ए. की अनुमति के अभाव के कारण
1987 में गच्छाधिपति विजयेन्द्रदिन्न सरि जी महाराज की निश्रा तक स्माधिस्थ रहे। विस्मित दर्शनार्थियों का तांता लग गया। उनका निर्माण कार्य अभी आगे नहीं बढ़ सका है। महत्तरा जी के
में सम्पन्न होना चाहिए। इस सन्दर्भ में उन्होंने आचार्य भगवान ____ 18 जुलाई 1986 को प्रातः उनके श्वास धीरे धीरे घटने शुरू देवलोक हो जाने के पश्चात साध्वी सुव्रता श्री जी समस्त कार्य
को 5 वर्ष पूर्व ही लिखित प्रार्थना कर दी। आचार्य देव विजयेन्द्र हो गये और लगभग 8.00 बजे उनकी आत्मा ने नश्वर शरीर भार सुचारू रूप से संभाल रहे हैं। महत्तरा जी ने कुशल शिल्पी
दिन सरि जी महाराज ने इसके लिए अपनी स्वीकृति भी प्रदान कर त्याग दिया। सारे भारत विशेषतया पंजाब और हरियाणा से की तरह इन्हें घड़कर निपुण बना दिया है।
दी थी। इस भावी समारोह में भाग लेने के लिए विशाल रूप में अन्तिम दर्शनों के लिए आने वाले लोगों की भीड़ लग गई। रेडियों
दि.27.28 और 29 सितम्बर 1986 को स्मारक भूमि पर श्रमण और श्रमणी मंडल को एकत्र करने का भी निर्णय किया और टेलीविजन ने उनके देवलोक के समाचार प्रसारित किये। भोगीलाल लेहरचन्द संस्थान के तत्वावधान में जैनाचार्य हरिभद्र
गया। स्मारक स्थल पर श्रमण मंडल के आवास की समस्या निधि दिनांक 10 जलाई 1986 को एक विशाल आयोजन के बीच सार पर एकविशषात्रादवसीय गोष्ठीहई। इसमें मुख्य आताथ थ के कार्यकर्ताओं और महत्तरा जी के समक्ष थी। उपाय केवल एक महत्तरा जी को भारत के गणमान्य लोगों तथा संस्थाओं ने मूधन्य विद्वान डा० लाकश चन्द्र। पू० महत्तराधा जी म. का ही था कि श्रमण तथा धमणी मंडल के लिए भिन्न भिन्न उपाश्रय श्रद्धांजलियां अर्पण की और सैकडों दोशाले चढाए भारत के भावनानुसार, आचार्य हरि भद्र सूरि जी की साहित्य और दशनक स्मारक स्थल पर बनवाये जायें। महत्तरा जी महाराज ने इसके तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने भी निजी मिलिट्री प्रति अनन्य सेवा के उपलक्ष्य में, संस्थान के भवन का नामकरण ला पेरणा और सैक्रेटी भेजकर पष्पमाला द्वारा श्रद्धा समन अर्पित किये। चन्दन "आचार्य हरिभद्र सूरि हाल" किया गया। दि०21.22.23 और बीन मानाजी मार जित
दन आचाय हारभद्र सार हाल किया गया। दि0 21, 22, 23 और बीच महत्तरा जी हमसे बिछड़ चुके थे। और यह कार्यभार उनकी को चिता बनाकर उनकी अन्तयेष्टी स्मारक स्थल पर ही की गई। 24 मार्च 1987 को भोगीलाल लेहरचंद संस्थान के अन्तर्गत प्रिया
सुशिष्या परम विदूषी साध्वी श्री सुव्रता श्री जी को उठाना पड़ा। अन्तयेष्टी का लाभ लाल लघु शाह मोती राम परिवार "अर्हन पार्श्व" पर एक महत्वपूर्ण गोष्ठी हुई। इसकी मुख्य वार अहन पाश्व पर एक महत्वपूर्ण गाष्ठा हुई। इसका मुख्य उपाश्रय भवनों के लिए सुन्दर प्लान बनवाकर दिये गये। भरसक
धा गजरांवालिया ने प्राप्त किया। इसी स्थान पर महत्तरा जी की आंतथि थी श्रीमति कापला वात्सायन। तत्पश्चात दिनाक 25. प्रयास के बाद दिल्ली प्राधिकरण के भवन निर्माण की अनुमति ली समाधि एक गुफा के रूप में बन कर तैयार हो गई है। जहां उनकी 26 और 27 सितम्बर को आचार्य हरिभद्र सूरि पर दूसरी गोष्ठी
गई। यह अनुमति उपराज्यपाल श्री एच.एल, कपूर तथा केन्द्रीय मर्ति स्थापित की जाएगी। महत्तरा जी के प्रति विशाल जन समह का आयोजन हुआ। इसके मुख्य अतिथि थे ऐतिहासज्ञ डा० सचिव श्री सकथंकर महोग्य के
सचिव श्री सुकथंकर महोदय के सहयोग द्वारा प्राप्त हुई। इसी ने अपनी सच्ची श्रद्धा व्यक्त करने के लिये एक स्थाई ट्रस्ट बनाने इरफान हबीब।
योजना के फलस्वरूप दोनों उपाश्रय अब तैयार हो चुके हैं। का भी निर्णय उसी श्रद्धांजलि सभा में कर दिया। लाखों रुपये के विजय वल्लभ स्मारक के निर्माण कार्य के लिये आर्थिक संकट प्रत्येक उपाश्रय का बान्ध काम 2786 वर्ग फुट है। दोनों उपाश्रयों वचन तत्काल प्राप्त हो गए। ट्रस्ट का नाम रखा गया "महत्तरा सिर पर मंडराने लगा। एक शिष्टमंडल ने बम्बई जाकर श्री के नीचे उपासना गृह बनाये गये हैं। यह भी प्रत्येक 2786 वर्ग फुट साध्वी मृगावती जी फाउण्डेशन" जिसके माध्यम से अनेक दीपचंद भाई गाडी जी से योगदान हेतु प्रार्थना की।पहले उन्होंने का है। एक उपाधय भवन का नाम प्यारी तिलक चंद जैन लोक-कल्याण तथा शिक्षा प्रसार के कार्य किये जाते हैं। स्मारक को सात लाख का योगदान दिया था, जिसे बढ़ा कर उपाश्रय", दूसरे का नाम 'प्रकाशवती देवराज मुन्हानी उपाश्रय . महत्तरा श्री मृगावती जी महाराज ने अपने जीवन की उन्होंने अब 21 लाख कर दिया। अतः हमारी समस्या का एवं एक उपासना गृह का नाम "कमला बहन जयन्तीलाल एच.
अन्तिम वेला में प्रेरणा दी कि चिकित्सालय के लिए एक स्वच्छ सामायिक उपाय मिल गया। श्री गार्डी जी के हम ऋणी हैं। शाह उपासना गृह तथा दूसरे उपासना गह का नाम "मवाना Jain Education Interational
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