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दशमी के दिन माता पद्मावती देवी के मंदिर में अर्चना और लाभ प्रदान करने के लिए एक चिकित्सालय चाल करने की स्थापना की गई है। जिसके मूल की आवक से धर्मार्थ काम किये आराधना हेतु प्रतिमास मेले लगने लगे।
योजना बनाई गई। लाला धर्मचन्द जी (दिल्ली) ने इस कार्य को जाते हैं। महत्तरा जी के आदेश एवं परामर्श से स्मारक निधि के करने का उत्तरदायित्व लिया और श्रीआत्म वल्लभ जसवन्त दिनांक 15 जन 1986 के शुभ दिनस्मारक स्थल पर विजयानन्द मन्त्री श्री राज कमार जैन सपत्नी अपने निजी खर्च पर विश्व का धर्म मैडिकल फाउंडेशन की स्थापना की। ला. धर्मचंद जी के सरि जी महाराज की पुण्य तिथि ज्येष्ठ वदि अष्टमी मनाई गई भ्रमण करने | सितम्बर 1984 में गए। स्थान-स्थान पर उन्होंने वरद हस्त से चिकित्सालय का दि० 15.6.85 को विधिवत और साथ ही संक्रान्ति का कार्यक्रम भी सम्पन्न हुआ। उसी दिन सम्पर्क स्थापित किये जो स्मारक कार्य के लिये उपयोगी सिद्ध हो उद्घाटन किया गया। वे इस ट्रस्ट के अध्यक्ष बने। इसके अन्तर्गत श्री आत्मानन्द जैन महासभा उत्तर भारत का एक अधिवेशन रहे हैं।
एक होम्योपैथिक चिकित्सालय सुचारू रूप से सतत् जन सेवा का भी पूज्य महत्तरा जी महाराज की निश्रा में सम्पन्न हुआ। दो वीर दिसम्बर 1984 में स्मारक निधि का कार्यालय एवं भोगीलाल काम कर रहा है।
बालक और बालिका सर्वश्री सतीश कुमार जैन आगरा और लेहरचन्द संस्थान को रूप नगर से स्मारक भूमि के नये भवन में . पू० महत्तरा श्री जी की निश्रा में दिनांक 3, 4 और 5 अगस्त श्रीमति रेनु बाला जैन जालन्धर को उनके परम साहस के स्थानांतरित कर दिया गया। और सकल कार्य को सुचारू रूप से 1985 को भोगीलाल लेहरचन्द संस्थान के तत्वाधान में एक उपलक्ष्य में कालकाचार्य शौर्य पदक प्रदान किये गये। वयोवृद्ध चलाने के लिए एक नया उत्साह और उमंग पैदा हो गई। कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें देश के गणमान्य शीघ्र सरश्री देवराज जैन गुजरांवालिया एवं कपूरचन्द जैन
महत्तरा जी महाराज ने क्रांति का एक और पग पठाया। जैन स्नातक तथा विद्वान शामिल हुए और महत्वपूर्ण निर्णय लिये गुजरांवालिया तथा नाजर चन्द जैन चंडीगढ़ को उनकी समाज श्रमणी इतिहास में सर्वप्रथम अपनी आज्ञानुवर्ती साध्वियों सबता गये। शीघ्र कार्य के लिए दिशा निर्धारित तय हुई।
सेवाओं के उपलक्ष्य में सम्मानित किया गया। दर्शकों और श्री जी एवं सुयशा श्री जी. महाराज को शोध एवं ग्रंथ सरंक्षण महत्तरा श्री मृगावती जी महाराज के अन्तःकरण में विद्वानों श्रोताओं ने उन महानुभावों का दिल खोलकर तालियों से कार्य में जोड़ दिया। पुरातन ग्रन्थों का आधुनिक ढंग से वर्गीकरण और श्रद्धेय पुर्वाचार्यों के प्रति बड़ा आदरभाव था। आचार्य हरि अभिनन्दन किया। आदि सम्बद्ध सभी कार्यभार उन्हें सौंप दिया। आज तक वे भद्र सूरि जी ने साध्वी याकिनी महत्तरा जी से प्रतिबोध पाकर महत्तरा श्री मृगावती जी का निजी स्वास्थ्य मास फरवरी 12000 ग्रन्थों का सुचारू सुन्दर और यथेष्ट वर्गीकरण कर चुके 1444 ग्रन्थों की रचना की थी। वे अपने नाम के साथ महत्तरा 1986 से ही कुछ बिगड़ने लग गया था। उनको एक असाध्य रोग हैं। इस भागीरथ कार्य में सा० सुयशा श्री जी विख्यात लिपि सूनू लिखते थे। अतः मृगावती श्री जी की यह प्रबल इच्छा थी कि ने घेर रखा था। 15 जून 1986 के कार्यक्रम में उन्होंने शारीरिक विशेषज्ञ पं० श्री लक्ष्मण भाई भोजक के मार्ग दर्शन में, अहर्निश तलघर के शोध पीठ हाल का नाम "आचार्य हरि भद्र सूरि हाल" पीड़ा होते हुए भी 5 घंटे तक कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान किया। जुटे हुए हैं। उन्होंने छोटी साध्वी सुप्रज्ञा श्री जी को अंग्रेजी भाषा में रखा जाए। उनकी यह भावना पूरी कर दी गई। उन्होंने यह भी लेकिन उनका शरीर अन्दर से जर्जरी भूत हो चुका था। बैठने एम.ए.पास करवाया ताकि वे युवा पीढ़ी का समुचित मार्ग दर्शन फरमाया था कि शान्त मूर्ति आचार्य समुद्र सूरि जी की श्रद्धांजली और चलने की ताकत दिन प्रतिदिन क्षीण होने लगी। बम्बई और कर सकें।
रूप, मुख्य प्रासाद का तल घट समुद्र सूरि महाराज सा० को ही दिल्ली के विशेषज्ञ इलाज कर रहे थे परन्तु उनके स्वास्थ्य के बारे दिनांक 8, 9 और 10 फरवरी 1985 को नई दिल्ली में तृतीय समर्पित।
में कोई पूरा विश्वास हमें नहीं दे पा रहा था। अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस का अधिवेशन हुआ। देश-विदेश से महत्तरा जी महाराज की प्रमुख शिष्या साध्वी सुज्येष्ठा श्री अपने जीवन के अन्तिम 3-4 महीनों में उन्होंने कई नई आये प्रतिनिधियों के सम्मानार्थ स्मारक निधि एवं भोगीलाल जी अति सरल और सेवा भावी थीं। सकल साध्वी मंडल का वे योजनायें बनाईं। समाज के आगेवानों को प्रेरणा देकर अनेक लेहरचन्द संस्थान की ओर से एक स्वागत समारोह 10 फरवरी मातृवत पोषण करती थीं सेवा, साधना एवं समर्पण उनके जीवन निजी धर्मार्थ ट्रस्टों की स्थापना करवाई। और लोगों से वचन लिये को स्मारक स्थल पर रखा गया। जिसको मुनि सुशील कुमार जी के ज्वलन्त लक्ष्य थे। परन्तु दिनांक 9 नवम्बर 1985 को सायं कि इन ट्रस्टों की आधी आय सदैव स्मारक को मिलती रहेगी। 50 एवं अन्य मुनिराज तथा महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज 10.00 बजे उनका स्वास्थ्य एकदम बिगड़ा और देखते ही देखते लाख रुपये के ट्रस्ट बनाने के वचन उनको प्राप्त हुए। आदि साध्वी मंडल ने सान्निध्य प्रदान किया। समाज के प्रमुख बिना किसी डाक्टरी सहायता के हदय रोग के कारण वे देवलोक नेता श्री श्रेणिक कस्तूरभाई मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर सिधार गये। समाज को बहुत धक्का लगा और महत्तरा जी भगवान वासुपूज्य मंदिर जी में प्रतिष्ठित होने वाली चार जिन पदासीन हुए और इस आयोजन की अध्यक्षता श्रीमति डा०मधुरी महाराज का दिल तो मानो टूट सा गया। परन्तु उस त्यागी आत्मा बिम्ब तथा 4 गुरुमूतियों की बोलियां करवा कर उन्होंने 15 जून बैन आर. शाह (अध्यक्षता यू.जी.सी.) ने की। देश-विदेश से ने साहस कर अपने आपको संभाला और पुनः शासन सेवा में 1986 को इसके आदेश दे दिये। महत्तराजी अस्वस्थ तो रहते ही गवेषकों ने निर्माण कार्य और शोध कार्य को देखकर मुक्त कंठ से तल्लीन हो गये। सा. सुज्येष्ठा श्री जी का अग्नि संस्कार स्मारक थे और दर्शनाथीं दूर दूर से आते रहते थे। उनके दिन में प्रारम्भ से प्रशंसा की।
भूमि पर ही किया गया तथा समाधिस्थल पर सुन्दर गुलाबी ही एक उच्च स्तर का स्कूल बनाने की बड़ी तीब्र अभिलाषा थी। साध्वी जी महा. की प्रेरणा से स्मारक स्थल पर काम करने पत्थर जड़ कर उसे सत्कार योग्य एवं वन्दनीय बना दिया गया एक दिन मन्त्री राजकुमार को कहने लगे "जिस दिन स्कूल बन
वाले शिल्पियों तथा निकटवर्ती गांव निवासियों को चिकित्सा है। उनकी याद में "साध्वी सुज्येष्ठा श्री चैरिटेबल ट्रस्ट" की भी जायेगा मेरा संकल्प पूरा हो जायेगा" पुनः कई बार यह भी कहा Jain Education Interational For Prvate & Personal Use Only
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