Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 236
________________ ट्रांसपोर्ट उपासना गृह" रखे गए। इनके उद्घाटन दि 1.2.1988 को सम्पन्न हो चुके हैं। आचार्य विजयेन्द्र दिन सूरि जी महाराज अकोला महाराष्ट्र से बम्बई, अहमदाबाद का उग्र विहार कर बड़ौदा होते हुए पावागढ़ पंहुचे। उन्होंने वहां के निर्माणाधीन जिन मंदिर की प्रतिष्ठा सम्पन्न करवा कर ही दिल्ली आने का निर्णय लियो । अतः आदेश दिया कि वल्लभ स्मारक के प्रतिष्ठा समारोह आदि कार्यक्रम एक वर्ष पश्चात अर्थात 10 फरवरी 1989 को ही रखे जायें। परन्तु गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की दीक्षा शताब्दी वर्ष को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह भी आदेश दिया कि एक फरवरी 1988 के शुभ दिन अत्र विराजमान साध्वी सुव्रता श्री जी महाराज की निश्रा में चारों भगवान और विजय वल्लभ सूरि महाराज की भव्य प्रतिमा आदि के द्वारा प्रवेश करवा दिये जायें। फलस्वरूप 31 जनवरी 1988 और 1 फरवरी 1988 को दो दिवसीय विशाल समारोह रखा गया। 31.1.1988 को नूतन प्रतिमाओं की शोभा यात्रा निकाली गई और पंच कल्याणक पूजा भी पढ़ाई गई। दिनांक 1.2.88 को शभु मुहुर्त में प्रातः 10.55 पर मूलनायक श्री वासुपूज्य जी का शुभ प्रवेश मंदिर जी में करवाया गया और साथ ही अन्य प्रतिमाओं का प्रवेश भी सम्पन्न हुआ। अहमदाबाद निवासी श्री जेठाभाई हेमचन्द विधिकारक इस कार्य हेतु स्मारक स्थल पर आमंत्रित किये गये थे। मूल नायक भगवान वासुपूज्य जी के मंदिर जी का प्रवेश लाला धर्मचन्द जी के परिवार ने करवाया और भगवान पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा का प्रवेश मोतीलाल बनारसीदास परिवार भगवान ऋषभदेव जी की प्रतिमा का प्रवेश लाला रामलाल इन्द्रलाल जी द्वारा तथा मुनि सुव्रत स्वामी भगवान की प्रतिमा का प्रवेश नरपतराय खैरायतीलाल परिवार ने क्रमशः करवाया। गुरू गौतम स्वामी की प्रतिमा के प्रवेश का लाभ भी मोतीलाल बनारसी दास ने प्राप्त किया। r आचार्य देव विजय सरि जी महाराज की भव्य प्रतिमा का द्वारा प्रवेश सुश्रावक श्री शैलेश हिम्मतलाल कोठारी बम्बई निवासी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। श्रीमति रामप्यारी तिलकचन्द परिवार ने एक उपाश्रय का उद्घाटन तथा श्री देवराज मुन्हानी सिंगापुर निवासी ने दूसरे उपाश्रय का उद्घाटन सम्पन्न किया। उपासना गृहों के उदघाटन का लाभ श्री जयन्तीलाल एच शाह कोबे जापान तथा सवानी ट्रांसपोर्ट प्रा. लि. Jain Education International के मालिक श्री माणेकलाल वी सवानी एवं श्री रसिक लाल सवानी ने प्राप्त किया। जन मानस का उत्साह असीम था। हजारों रुपये न्योछावर में इक्ट्ठे हो गए। शेष अन्य गुरू विजयानन्द सूरि जी विजय वल्लभ सूरि जी एवं विजय समुद्र सूरि जी महाराज की प्रतिमाओं के प्रवेश प्रतिष्ठा महोत्सव के समय करवाये गए। इनके लाभ सर्वश्री राज कुमार राय साहिब चन्द्र प्रकाश कोमल कुमार एवं लाला रत्न चंद जी ने प्राप्त किए। महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज का समाधि भवन तैयार हो चुका है। इस भवन के ऊपर तथा चारों तरफ मिट्टी चढ़ा कर इसे पर्वतीय गुफा का रूप दिया गया है, क्योंकि महत्तरा जी को एकान्त वास अति पसन्द था। साध्वी जी महाराज की प्रतिमा इस समय निर्माणाधीन है। मूर्तिकार से प्राप्त होने के पश्चात इस प्रतिमा का प्रवेश भी समाधि स्थल पर करवा दिया जायेगा। समाधि भवन का शिलान्यास श्री अभय कुमार जी ओसवाल लुधियाना के कर कमलों द्वारा 16 जनवरी 1987 को सम्पन्न हुआ था। श्री आत्म बल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि तथा दिल्ली श्रीसंघ के शिष्टमंडल कई बार गच्छाधिपति आचार्य विजयेन्द्र दिन सूरि जी महाराज के पास हाजिर होता रहा तथा बम्बई, अकोला एवं बडोदरा में गुरुदेव को भाव भरी विनती की गई। अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी श्री ब्रह्म कुमार जोशी ने दि० 10.2.88 का प्रतिष्ठा मुहूर्त निकाला। आचार्य भगवान से इसके अनुसार स्मारक की प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाने की विनती की गई परन्तु उन्होंने स्वीकृति नहीं दी कारण कि अकोला से वापसी पर गुरुदेव पावागढ तीर्थ पर नवनिर्मित मन्दिर जी का प्रतिष्ठा महोत्सव, उत्तर भारत एवं दिल्ली की ओर प्रस्थान से पूर्व ही करवाना कहते थे। पावागढ़ तथा राजस्थान में कुछ भगवती दीक्षाएं भी होनी थीं । सम्भवतः गुरुदेव ने यह सोचा होगा कि निर्माण कार्य काफी शेष है, उसे आगे बढ़ने दिया जाए। अतः गुरु देव ने बड़ोदरा पहुंचने पर ज्योतषियों को अपने पास बुलाकर पुनः मुहूर्त निकलवाए। गुरुदेव की आज्ञा से वसन्त पंचमी माघ शुक्ला 52045 तदानुसार दि० 10.2.89 को प्रतिष्ठा करवाने का शुभ मुहूर्त निश्चित हुआ। जिसकी तैयारियां होने लगी। आगरा तथा मुजफ्फरनगर में नव निर्मित जिन मन्दिरों एवं मुरादाबाद में गुरु समुद्र सूरि जी समाधि मन्दिर आदि के प्रतिष्ठा मुहूर्त निकलवाए गए। बीकानेर में दि० 12.2.88 को सक्रांति महोत्सव के For Private & Personal Use Only सुअवसर पर गुरुदेव ने कहा कि वे दि० 13.3. 88 को दिल्ली वल्लभ स्मारक पहुंचने का विचार रखते हैं तथा वहां पर ही गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी दीक्षा शताब्दी मनाएगें। तदुपरान्त वे एक पैदल यात्रा संघ को साथ लेकर श्री हस्तिनापुर जाना चाहते हैं। आचार्य भगवान, अकोला महाराष्ट्र से ही 30-35 कि०मी० का प्रतिदिन उग्र विहार करते बड़ोदरा पावागढ़, राणकपुर, सादड़ी, फल वृद्धि पार्श्वनाथ तथा बीकानेर होते हुए और धर्म देशना देते हुए एवं मुमुज्ञओं को भगवती दीक्षाएं देकर दिनांक 13.3.1988 को विजय वल्लभ स्मारक स्थल पर पधारे। उनका भव्य प्रवेश करवाया गया श्री आत्मानंद जैन महासभा, दिल्ली एवं अन्य श्रीसंघों की ओर से तोरण द्वार बनवाए गए। बैण्ड, बाजा, नफीरी, हाथी, घोड़ा, स्कूटर सवार, महेन्द्र ध्वजा, गुरु देवों के चित्र, कलशधारी सुसज्जित बहनें, बच्चे तथा अनेक भजन मण्डलियां साथ थीं। नाचते गाते श्रमण एवं श्रमणी मंडल की भावभरी आगवानी की गई। स्मारक के भूमि प्रवेश समय रु० 5000 ( की गोहली हुई। स्मारक भवन की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते गुरु देव के प्रत्येक कदम पर रु0 51) वारणा हुआ। गुरू भक्तों ने अपना दिल ही उण्डेल कर रख दिया। भगवान की चारों प्रतिमाएं तथा आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी की विशाल मुंह बोलती प्रतिमा देखकर, गुरुदेव मन्त्र मुग्ध हो गये। तत्पश्चात धर्म सभा हुई। सभी श्रीसंघों ने गुरुदेव को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। एयर मार्शल पी. के. जैन अतिथि विशेष थे और भारत सरकार के केबिनेट मंत्री श्री एच. के. एल. भगत मुख्य अतिथि थे। उन्होंने भी गुरुदेव का भाव भरा स्वागत किया और स्मारक निर्माण तथा प्रवृतियों की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कहा कि मेरी सेवाएं हाजिर हैं। गुरु देव ने अपने प्रवचन में, समस्त पंजाब हरियाणा आदि अनेक स्थानों से पधारे गुरु भक्तों को आशीर्वाद दिया। और यह भावना व्यक्त की कि सातों क्षेत्र के संचिन के लिये एक करोड़ रुपये का फण्ड बनाना चाहिये। गणि श्री नित्यानंद विजय जी का ओजस्वी प्रवचन भी हुआ। रात्रि को सांस्कृतिक कार्यक्रम था। दिनांक 14.3.88 की दीक्षा शताब्दी के उपलक्ष में एक बृहत धर्म सभा हुई। विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के जीवन पर प्रकाश डाला गया। सभा में श्री अभय कुमार जी ओसवाल सु० 13 www.jainelibrary.org

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