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मातृ-शिक्षा
गया।
जीवन का एक अमूल्य अवसर था। उस समय उनके जैसा प्रतापी की निर्वेद भावना जागृत होती है। पंचममहाभूतों से बना शरीर वक्ता कोई न था। उनकी अस्खलित वाणी की धारा रुकी और जब चिता में जलता है तब लगता है-यह संसार असार है। जीवन प्रवचन समाप्त हो गया। आनंदित चेहरे बिखर गये। उपाश्रय की यही नियति है। मनुष्य कितना ही भागदौड़ कर रुपये, धन,
खाली होगया। आनंदित चेहरे बिखर गये। उपाश्रय खाली हो सम्पत्ति एकत्र करें आखिर उसे सब कुछ छोड़कर श्मशान में संध्या का समय था। सूर्यास्त हो रहा था और उसके साथ ही
जलकर राख बन हवा में उड़ जाना पड़ता है। इस माया मोह में माता इच्छाबाई के जीवन का भी अन्त हो रहा था। भय, शोक
फंसने से तो अच्छा है धार्मिक जीवन यापन किया जाए आदि और चिन्ता में डबा, परिवार माता के पलंग को घेर कर बैठा हुआ एक कोने में एक किशोर अभी भी बैठा कुछ चितन कर रहा विचार आते रहते हैं। पर यह विचार या भाव श्मशान तक ही था। छगन माता के चरणों में बैठा रो रहा था। माता की बंद आँखें था। उसके कर्ण पटल में मधुर वाणी का रव अभी भी गुजित हो सीमित होते हैं। श्मशान से बाहर निकलने के बाद वही मार्केट की खुली धीरे-धीरे सब को देखा। छगन को भी देखा वह रो रहा था। रहा था। आचार्य श्री की वैराग्यपूत वाणी ने किशोर के व्यक्तित्व चर्चा, शेयर बाजार की चर्चा, ऑफिस की चिन्ता, घर की याद उसे रोता देखकर माता ने लड़खड़ाती आवाज से पूछा-"बेटा को झकझोर दिया था। उसकी नस-नस में स्नायु-स्नायु में प्रारंभ हो जाती है। क्यों रो रहा है?"
रोएं-रोएं में वैराग्य का बास हो गया। गुरुदेव की अमृत वाणी ने माता इच्छाबाई, जो छगन का एकमात्र सहारा थी। जिसके उसकी माता की अंतिम शिक्षा याद दिला दी'दू अरिहंत की शरण यह वैराग्य परिस्थिति जन्य है और क्षणजीवन है। पूर्वजन्म वात्सल्य सागर में छगन का निर्दोष बचपन बीत रहा था। वही में चले जाना।'
के सुकृत, माता के जीवन व्यापी धर्मोपदेश और साधओं की उसे नहलाती, मंदिर ले जाती, पजा करना सिखाती थी। और।
संगति इन तीनों ने मिल कर छगन में चिरस्थायी वैराग्य पैदा कहानियां भी सुनाती थी। वह थोड़े दिन बीमार रही और इस
आचार्य श्री की दृष्टि उस किशोर पर पड़ी। उन्होंने प्रेम से ।
किया। उसने निश्चय कर लिया कि मैं दीक्षा लूंगा संसारी हरगिज संसार से विदा हो रही थी। अपने करीब बुलाया। पूछाः 'क्यों, सब घर चले गये तुम्हें घर नहीं
नहीं बनूंगा। छगन के चार साथी थे उन्हें धार्मिक मित्र कहा जा जाना?' किशोर: नहीं। आचार्य श्रीः 'नहीं, तो तुम क्या चाहते क्यों रो रहा हैं इस प्रश्न ने छगन को और रुला दिया। माता
सकता है। प्रत्येक धार्मिक क्रिया में वे सम्मिलित होते थे। उन हो?' किशोरः 'धन'। आचार्य श्रीः 'धन!...भोले बच्चे हम अपने से लिपटते हए उसने सिसकियां भरते हए बस इतना ही
चारों के मन में वैराग्य भाव आता था। पर उनका वैराग्य पास धन नहीं रखते हैं। किशोर :'आप के पास धन है, वैसा धन कहा-मां...मां...तू मुझे किसके सहारे छोड़ कर जाती है?
क्षणजीवी होता था। कोई तीस वर्ष का था कोई पच्चीस वर्ष का किसी के पास नहीं है। मुझे धर्मधन, संयमधन चाहिए' जो
था। सभी को कोई न कोई किसी न किसी प्रकार का दुःख था। . माता के मुख से अविराम 'अरिहंत...अरिहंत...' की रटन आपके पास है।"
किसी को पत्नी का दुःख था। किसी को माता-पिता का दुःख चल रही थी। उसने कहा-"बेटा, मैं तुझे अरिहंत की शरण में
आचार्य श्री को उसकी विस्मयकारी याचना सुन कर बड़ा तो किसी को दुकान का झगड़ा। और किसी को घर से दीक्षा छोड़कर जा रही हूं। वे ही शाश्वत शरण हैं। तू अरिहंत की
आश्चर्य हुआ। और साथ ही इतनी छोटी अवस्था में उसकी लेने की अनुमति मिल नहीं रही थी। एक दिन पांचों ने मिलकर शरण में चले जाना। वे अनाथ के नाथ, बल के निर्बल विकसित प्रतिभा देखकर हर्ष भी हुआ।
घर से चुपचाप दीक्षा लेने के लिए चले जाने की योजना हैं।" इतना कहकर माता ने एक गहरी सांस ली। ततक्षण
आचार्य श्री ने कहा-'तथास्तु'
बनायी। कई दिनों तक पांचों की बन्द किवाड़ों में गप्त मातृ-भक्त छगन ने इस आज्ञा को शिरोधार्य कर लिया। माता ने आशीर्वाद दियाः तेरा मार्ग प्रशस्त हो। और माता की आंखें मंद। वे आचार्य थे पंजाब देशोद्धारक आचार्य श्रीमद् विजयानंद मंत्रणाएं होती रहीं। अन्त में तारीख,वार, और समय निश्चित गयीं सदा सदा के लिए।
सूरीश्वर जी म.सा. और वह किशोर था छगन आचार्य विजय किये गये। सब ने तैयारी कर ली। किसी को कानोकान पता वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा.
न चला। दूसरे दिन प्रातःकाल तड़के जना निश्चित हो गया।
वे पांच मित्र थे छगन, हरिलाल, सांकलचंद, खूबचंद खंभाती, वाडीलाल, गांधी और मगन लाल।
एक किशोर की याचना
श्मशान वैराग्य
बड़ौदा जानीशेरी का उपाश्रय खचाखच भरा हआ था। सारा
नगर उनकी धर्मवाणी-सुधावाणी सुनने के लिए उमड़ पड़ा था। indu आचार्य श्री की ओजस्वी, गहन, एवं मधुर वाणी का श्रवण करना
रात हुई, अंधेरा बढ़ा। हरिलाल का वैराग्य जवाब दे गया। ।
उसका मनोबल टूट गया। साधु के दैःसह जीवन की कल्पना से ही वैराग्य के तीन-चार प्रकार हैं। उसमें एक प्रकार श्मशान वह कांप गया। चुपके से उठा और शेष चार मित्रों के घरों में । वैराग्य है। इसका अर्थ है, किसी आप्त जन का निधन हो जाने पर जाकर उनके परिवार वालों को सचेत कर आया। षड्यन्त्र खुल उसे श्मशान लेजाकर जलाले समय मनुष्य के मन में एक प्रकार गया। योजना निष्फल गयी। घरों के द्वार बंद हो गये। rayan