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जागे भाग हमारे
मानव सद्भावना के महान् संत
श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि
-सुशील "रिन्द"
- श्री अविनाश कपूर जागे भाग हमारे, जागे भाग हमारे
गुजरात प्रांत की पावन धरती पर श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न "नरसंडा" गांव जिला खेड़ा (गुजरात) में इनकी दीक्षा हर्षोल्लास इन्द्र सूरि के रूप में मिल गए हमको वल्लभ प्यारे।
सूरीश्वर का जन्म बड़ौदा से 70 कि.मी. दूर, बोड़ेली के पास से सम्पन्न हुई। इस प्रकार परमार क्षत्रियों में सर्वप्रथम जैन मुनि बाल बहन रणछोड़ भाई का दीपक बन कर आया।
सालपुरा गांव में संवत् 1980 में कार्तिक कृष्णा नवमी को परमार होने का गौरव मुनि इन्द्र विजय जी को प्राप्त हुआ। आचार्य विजय सालपूरा गुजरात देश का, हीरा वह कहलाया क्षत्रिय श्री रणछोड़ भाई के घर हुआ। उनका बाल्यावस्था का बल्लभ सूरीश्वरजी के आचारों-विचारों और आदर्शों का इनके कौम क्षत्रिय जन्म लिया, पर जैन धर्म अपनाया नाम मोहन था।
जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ा। नाम था मोहन, मोह ले सबको ऐसा रूप था पाया
संवत् 2027 में आचार्य की पदवी प्राप्त करने के बाद गत छोटी उमर में दीक्षा लेकर बन गए सबके प्यारे...... आचार्य भगवान को बचपन में ही माता-पिता से धार्मिक 18 वर्षों में जैनाचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी ने भगवान् कोमल दिल था, देख न पाए जीवों की कुर्बानी सस्कार मिल। चाचा या साता भाइ क सामाप्यस्प्रातभाशाला महावीर के सिद्धांतों का प्रचार करने, जैन तीर्थों, मंदिरों का कठिन तपस्या, प्रभु भक्ति के अर्पण हुई जबानी
की बोध हुआ कि जीवन का उद्देश्य परमतत्व की प्राप्ति है। जीणोद्धार एवं प्रतिष्ठा करवाने, शिक्षण संस्थाएं, अस्पताल, आत्म जैसी काया इनकी, बल्लभ जैसी वाणी विचारा आर पूर्वजन्म क सस्काराक कराण माहन भाइमवराग्य कन्या-छात्रावास आदि अनेक संस्थाएं स्थापित करने के लिए समुद्र जैसे गंभीर हैं यह, चेहरा नूराणी भाव दृढ़ होने लगा।
प्रेरणा देने का सराहनीय कार्य किया है। विनय विजय गुरु की सेवा से हो गए हिन्द के तारे.....
17 वर्ष की अल्प आयु में ही इच्छा न होते हुए भी इनकी
संवत् 2034 में आचार्य समुद्र सूरीश्वरजी का मुरादाबाद में कुबेर जैसे इनके खजाने, जो मांगो मिलता है
शादी सम्पन्न हो गई। मगर मन न लगा। आत्मा इस सांसारिक ।
TRA समाधिपूर्वक देवलोकगमन हुआ तो आचार्य विजय इन्द्रदिन्न इनकी शरण में बदकिस्मत भी, भाग्यवान बनता है
जाल को काटने का अवसर खोजने लगी। एक रात स्वप्न देखा कि सूराश्वर जा आचार्य समुद्र सूरीश्वर जी के पट्टधर हए। बहार हो जिस फल से रूठी, वह भी यहाँ खिलता है। एक महात्मा उन्हें संकेत करके कह रहे थे कि बेटा, मोहन, कब श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी का मानना है कि प्रभु कोई समस्या कैसी हो उलझन पल में ही हल मिलता है | तक सोते रहोगे। क्या तुम्हें ऊषा का आलोक प्रिय नहीं है? म
तक सोते रहोगे। क्या तुम्हें ऊषा का आलोक प्रिय नहीं है? महावीर भगवान का मुख्य उपदेश अहिंसा है। अहिंसा मनुष्य को आत्म वल्लभ समुद्र के भी इनमें हैं गुण सारे........ तत्काल ही वह उठे और मुनि विनय विजय जी के पास पहुंचे। ही नहीं, जीव जंतुओं, दृश्य अदृश्य प्राणियों, पेड़ पौधों व समुद्र सरि की थी यह भावना. वल्लभ स्मारक बनाएँ | स्वयं दीक्षित होने का आग्रह किया। मुनि जी उनके वैराग्य भाव से वनस्पतियों की भी होनी चाहिए। इसका प्रचार और पालन गुरू भक्ति पंजाब की क्या है, कर के तो दिखलाएँ | परिचित थे। अतः संतव् 1998 फाल्गुन शुक्ल पंचमी के दिन प्राणिमात्र का धर्म है। मृगावती ने सबको जगाया, कहा कि देर न लाएँ आज्ञा गुरु की सर आंखों पर धर्म की शान बढ़ायें
मनुष्यता का निवास इन्द्र सूरि की हुई जब कृपा, लग गई नइया किनारे...
जहां आकृति से भी मनुष्य हो, प्रकृति से भी वहीं मनष्यता का निवास होता है। ऐसी मानवता पैसे से, कौम के आज्ञावानों आओं आया समय सुहाना
सत्ता से, बल से या बद्धि से नहीं मिलती. ऐसी मानवता मिलती है देश, वेश, धर्म, सम्प्रदाय, जाति, कर लो योजनाएं सब पूरी खली है अब तो खजाना धन की वर्षा करने आया सेठ बड़ा मस्ताना ।
कौम, प्रान्त, भाषा आदि की दीवारों को लांघ कर दनियां के हर मानव के साथ मानवता का व्यवहार मंदिर, गुरुकुल कालेज बनाओ जैसा कहे जमाना
करने से ही। देवी देवता सेवक हैं "रिन्द" चलते हैं इनके इशारे......
-विजय वल्लभ सरि Santonhimanon जागे भाग हमारे...
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