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है। कुंडपुरे के साथ नगर शब्द जुड़ा हुआ है जो वैशाली और के घर जाकर किया खीर से। जैन सूत्रों के अनुसार कोल्लाग थान क्षत्रिय कुंड है (2) वासुकुंड को पिदेह को राजधानी वैशाली कुंडपुर को एक होना सत्यसिद्ध करता है। कुंडपुर के साथ सन्निवेश दो है। एक बाणिज्य ग्राम के पास और दूसरा राजगृही के का एक मोहल्ला माना है। 5 प्रो० योगन्द्र मिश्र ने भी वैशाली के सन्निवेश शब्द का भी प्रयोग हुआ है। यह कुंडपुर के लिये पास। ये स्थान लछवाड़ से चालीस मील से अधिक दर है। वहां निकट कुंडग्राम को माना है। 6 इन सबके अतिरिक्त इनका नहीं किंतु उत्तर तरफ के क्षत्रियकुंड के लिए तथा दक्षिण पहुंच कर दूसरे दिन पारणा करना असंभव है। अतः भगवान ने अन्धानुकरण करने वाले अनेक हैं। तरफ के ब्राह्मण कुंड के भेद के लिये ही है। अर्थात् सिद्धार्थ वैशाली के पास क्षत्रियकुंड के ज्ञातवंत खंड में दीक्षा ली और दूसरे वैशाली नगर के कोल्लाग महल्ले का क्षत्रियों का मुख्य दिन वाणिज्य ग्राम के निकट कोल्लाग में जाकर पारणा किया था। प्राचीन जैनागम और श्वेताम्बर जैनों की सरदार था इससे स्पष्ट है कि महावीर की जन्मभूमि 4. भगवान ने दीक्षा के वर्ष में क्षत्रियकुंड से विहार कर कुमार
मान्यता कोल्लाग ही थी।
ग्राम मोराक सन्निवेश आदि स्थलों में विचर कर अस्थिग्राम में जात वंश के क्षत्रियों ने अपने गरु को ठहरने के लिये चौमासा किया। दूसरे वर्ष मोराक, वाचाल, कनखल, आश्रमपद,
अर्द्धमागधी भाषा के प्राचीन जैनागम आचारांग, कल्पसूत्र दुतिपलाश चैत्य की स्थापना की थी। जब महावीर ने संसार का श्वेदांबी होकर राजगृही आकर चौमासा किया। ऐसा उल्लेख
आदि मूल, उन पर लिखी गयी नियुक्ति, चर्णि, टीका, भाष्य आदि त्याग किया, तब प्रथम कुंडपुर के निकट ज्ञातकल के इसी उधान मिलता है, इसके अनुसार भगवान (पहले) चौमासे के बाद
सब ने एकमत से भगवान महावीर का जन्म स्थान मगध जनपद में जाकर निवास किया था। एक बौद्ध कथा के अनुसार वैशाली के श्वेताम्बी आते हैं और वापिस लौटते हुए गंगा नदी पार करके
में कंडग्गाम (कंडग्राम) बतलया है। यह ग्राम छोटा नहीं था। तीन नामों में 7000 सोने के कलश वाले, मध्यवाले भाग में 1000 राजग्रही पधारते हैं। (श्वेतांबी गंगा के उत्तर में है चादी के कलश वाले और 1000 तांबे के कलश वाले घर थे। और राजग्रही दक्षिण में इससे निश्चित है कि लछवाड
अपितु महाग्राम (नगर) था। इसके लिए ग्राम, नगर, पुर,
शनिवेश आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। इसके दो मुख्य उनमें उत्तम, मध्यम और नीच वर्ग के लोग रहते थे। अन्तभाग वाला क्षत्रियकुंड असली नहीं है। वहां से राजग्रही जाते
विभाग थे। दक्षिण में महाणकुंडग्गाम (ब्राहमणकंडग्राम) एवं में जैन सत्र में वाणियग्राम के लिये उच्च, नीच और मंजिझम समय गंगा पार नहीं करनी पड़ती। मानना पड़ता है कि क्षत्रियकुंड
उत्तर में खत्रियकंडग्गाम (क्षत्रियकुंडग्राम) यह ब्राह्मण और लिखा है। जिसका उक्त वर्णन के साथ मेल खाता है। गंगा के उत्तर में बिहार (विदह जनपद) में था। वह वैशाली के
क्षत्रियों का सम्मिलित महानगर था। भगवान महावीर के जीवन अतः हार्नल ऐसा मानता है कि ।. कोल्लाग वैशाली का पास था। जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ था। 5 वैशाली के
चरित्र में इस महानगर के दोनों भागों को समान रूप से स्थान मोहल्ला ही क्षत्रियकंड है। वासुकंड वर्तमान में उसका अवशेष पश्चिम में गंडकी नदी थी। उसके पश्चिम में ब्राह्मण कुंड,
दिया गया है। कंडग्राम के भौगोलिक परिवेश में आने वाले रूप है। 2. ज्ञातवनखंड और दतिप्रलाश चैत्य एक ही उद्यान क्षत्रियकंड, वाणिज्यग्राम, कमारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश
आसपास के कुछ स्थानों का विवरण भी प्राचीन जैनागमों में था। वह वैशाली में था, जहां महावीर ने निवास (दीक्षा) ली थी। आदि उस (वैशाली) के मुहल्ले थे। ब्राह्मण कुंड एवं क्षत्रियकुंड,
मिलता है। क्षत्रियकुंड के बाहर ईशानकोण में णायवणखंड नाम 3. सिद्धार्थ कोल्लाग के ज्ञात क्षत्रियों के सरदार थे। पन्यास वाणिज्यग्राम, कुमारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश आदि उस
का एक उद्यान कुण्डपुर के णाय (ज्ञात) क्षत्रियों का है। कल्याण विजय जी अपनी पुस्तक श्रमण भगवान महावीर में (वैशाली) के मुहल्ले थे। ब्राह्मण कुंड एवं क्षत्रियकुंड एक दूसरे
गृह-त्याग के बाद वर्द्धमान महावीर चंद्रप्रभा नामक पालकी में लिखते हैं कि ( भगवान महावीर का जन्म लछवाड़ के निकट के पश्चिम पूर्व के मोहल्ले थे। मध्य में बहुशाल चैत्य था। इन
बैठकर क्षत्रियकुंड नगर के मध्य से होते हएणायवण खण्ड उद्यान क्षत्रियकुंड में हुआ था, मैं इसे सच्च नहीं मानता। क्योंकि सूत्रों में दोनों मोहल्लों में उत्तर और दक्षिण ऐसे दो भाग थे। दक्षिण कुंड भगवान महावीर के लिये पिदेह, पिदेहदिन्न, पिदेहजच्चे में बाह्मणों के अधिक घर थे जबकि उत्तर कुंड में क्षत्रियों के
में आये और वहां पर उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की। उसी दिन एक पिदेहसमाले तीस वासाइ निकट यह पाठ है और बेसाली नाम भी अधिक घर थे। सिद्धार्थ राजा उत्तर क्षत्रिय कुंड के नायक थे।
मुर्हत (48 मिनट) दिन रहते हुए वे कमार ग्राम में स्थलमार्ग से
गये। उसी दिन वहाँ से मोराक सन्निवेश में गये। कोल्लाक मिलता है। इससे मानना पड़ता है कि भगवान महावीर का जन्म ज्ञात क्षत्रियों के स्वामी थे और वह जैन था। अतः आपका मानना
सन्निवेश में ज्ञातृकल की पौषधशाला थी। इस विवरण से पता स्थान पिदेह जनपद में वैशाली के एक मुहल्ले में हुआ था। है कि । विदह में वैशाली के निकट एक मोहल्ला ही क्षत्रियकुंड
चलता है कि यहाँ नायकल के क्षत्रियों का विस्तार था और वे (2) क्षत्रियकुंड एक बड़ा नगर था तो भी भगवान महावीर के भगवान महावीर का जन्म स्थान है। 2. लछवाड़ के निकट एक भी चौमासा करने का उल्लेख नहीं मिलता। क्षत्रियकुंड में भगवान ने कोई चौमासा एवं विहार नहीं किया
जैनधर्मानुयायी थे। जबकि भगवान ने 12 चौमासे वैशाली और वाणिज्य इसलिये यह भगवान का जन्म स्थान नहीं हो सकता है 3 ग्राम में किये। इससे लगता है कि क्षत्रियकुंड एवं ब्राहमण श्वेतांबी से राजग्रही जाते हुए भगवान को गंगा नदी पार करनी जनागमा म भागाालक अवास्थात कंड वैशाली के पास के ही मोहल्ले थे। इससे 12 चौमामों का पड़ी थी इसलिये वैशाली का एक मोहल्ला ही सच्चा क्षत्रियकंड लाभ उन्हीं को मिला था। 3. भगवान महावीर दीक्षा के दूसरे है। 4. आचार्य विजयेन्द्र सरि-वैशाली नामक पुस्तक लिखते हैं जम्बद्वीप से भारतवर्ष के भरतक्षेत्र में दक्षिणार्द्ध भरतखंड में । दिन कोल्लाग सन्निवेश में जाकर छठ का पारणा बाहूल बाहमण (1) वासुकंड या आत्रिक अथवा वैशाली या कोटिग्राम का कोइ दक्षिण दिशा में ब्राह्मण कण्डपुर नगर सन्निवेश था। जैन