________________
यह वही पावन नगरी पाली है जहाँ मेरे गुरुदेव का वि. सं. चार्तुमास बाद मैं भी उधर आ रहा हैं। दिल्ली में गुरुदेव की ऐसी अपना पूरा जीवन ही स्मारक के निर्माण में लगा दिया किन्तु धन 1948 में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को जन्म हुआ था। गुरुदेव अमिट निशानी बनवाई जाये कि जिसे देखकरलोग युगों-युगों तक संग्रह के लिए वर्तमान गच्छाधिपति चारित्रचूड़ामणि आचार्य श्री के बाल्यजीवन के प्राप्त प्रसंगों से ज्ञात होता है कि प्रारम्भ से ही वे गुरुदेव का नाम याद रखें। जब गुरुदेव साध्वी श्री जी ये बातें कर विजय इन्द्र दिन्न सूरि जी म. सा. नूतन आचार्य जनक चन्द्र सरि अत्यन्त गम्भीर,शान्त, एकान्तप्रिय, साधु सन्तों की सेवा करने रहे थे तब मैं देख रहा था कि साध्वी श्री जी कितने ध्यान से सारे जी, गणि जगच्चन्द्र विजय जी, गणि नित्यानन्द विजयजी तथा वाले धर्म के प्रति अगाध आस्था रखने वाले बालक थे। आप श्री आदेशों को सुन रहींथी उनके चेहरे पर एकदढ़ संकल्प और आत्म प्रमुख साध्वी मण्डल ने समाज को स्मारक निर्माण के लिए खले की प्रवृत्ति से यह पता चलता था कि एक न एक दिन आप पूरे जैन विश्वास की आभा झलक रही थी। बाद में साध्वी श्री जी ने अपनी हृदय से दान देने की प्रेरणा दी। जब पूज्य गुरूदेव विजय वल्लभ समाज के लिए प्रेरणा श्रोत व आदर्श बनेंगे। गुरुदेव पंजाबकेसरी शिष्याओं के साथ दिल्ली की ओरविहार किया वल्लभ स्मारक के सूरीश्वर जी म. सा. की दीक्षा शताब्दी का समापन समारोह आचार्य श्रीमद् विजय बल्लभ सूरि जी म.सा. के सम्पर्क में आए निर्माण की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर वहन करने के लिए। स्मारक पर हो रहा था उस समय मैं पालीताणा में था। मुझे सारे और 19 वर्ष की अवस्था में ही भागवती दीक्षा ली और उसके बाद महत्तरा जी ने स्मारक के महान कार्य को प्रारम्भ करने के समाचार कार्यकर्ताओं से, पत्रोंसे, समाचार पत्रों से मिलते रहे। शनैः शनैःज्ञान ध्यान की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आपने आत्मोत्थान लिए समाज को प्रेरित किया, अपने प्रभावशाली व्याख्यानों में वर्तमान गच्छाधिपति जी के प्रेरक आशीर्वचनों से स्मारक के कार्य किया साथ ही पूज्य गुरुदेवों के आदेशों का अक्षरशः पालन पूज्य गुरूदेवों के प्रति अनन्य भक्ति और निष्ठा का परिचय दिया
पज्य गदेवों के प्रति अनन्य भक्ति और निष्ठा का परिचय दिया को तेजी से आगे बढ़ने के लिए जो धन वर्षा (विशेषकर श्री अभय करना अपना परम कर्तव्य समझा, गुरुदेव द्वारा संस्थापित की
और स्मारक देत जमीन ले ली गई। इसी बीच सन 1974 में पज्य
और स्मारक हेतु जमीन ले ली गई। इसी बीच सन् 1974 में पूज्य ओसवाल द्वारा एक करोड़ की राशि जो उन्होंने गुरूदेव के दीक्षा देख-रेख करना अपना दायित्व माना और मुरादाबाद में वि. सं. गुरूदेव समुद्र सूरि जी म. सा. का जन्म महोत्सव दिल्ली में बड़े शताब्दी के उपलक्ष्य में दिए थे) हुई ऐसी तो कभी नहीं हुई थी और 2035 में ज्येष्ठ वदि अष्टमी को प्रातःकाल अखण्ड समाधि से पूर्व धूमधाम से मनाया गया। गुरूदेव के साथ व्यतीत समय को मैं आगे भी शायद ही हो। दरअसल यह सब पूज्य गुरुदेवों के प्रति तक अपने उद्देश्यों को पूरा करने में लगे रहे।
अपने जीवन के सर्वाधिक भाग्यशाली समय मानता हैं अनगिनत असीम भक्ति का परिणाम था जो प्रत्येक गरूकल के मन को. हम तीनों भाई-मुनि जयानन्द विजय जी,मैं और गणि श्री यादें जुड़ी हैं किन्तु दिल्ली में आयोजित प्रभु महावीर के 2500 वें भाव-विभोर किए हुए थी। नित्यानन्द विजय जी अभी बालक थे। पुज्य गरुदेव हमें साध निर्वाण महोत्सव में आप श्री को सकल श्री संघ की ओर से कोई भी महान कार्य किसी एक के प्रयास से पुरा नहीं हो योग्य क्रियाओं को बड़े स्नेह से सिखाते हैं, पढ़ाने की व्यवस्था जिनशासनरत्न की उपाधि से विभूषित कर विभिन्न जैन पाता। वल्लभ स्मारक को इन ऊँचाईयों तक पहुँचाने में जहाँ । करते, छोटी से छोटी बात समझाते। कभी हमसे किसी प्रकार की सम्प्रदायों के साधुमण्डल के बीच प्रधान पद पर आसीन करने का पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा रही, महत्तरा जी के समाधिपर्यन्त गलती हो जाती तब लगता इन्हें शान्त तपोमूर्ति कहना कितना प्रसंग अविस्मरणीय है। हम रूपनगर उपाश्रय में ही ठहरे थे। सफलीभूत प्रयास रहे। पूज्य आचार्य श्री जी का आशीर्वाद रहा सार्थक है। गरुदेव जरा भी क्रोध किए बिना बड़े ही प्यार से सधार उसके बाद पंजाब की ओर बिहार करते हुए गुरूदेव स्मारक की वहाँ राजकुमार जी जैसे समाज के समर्पित कार्यकर्ताओं के कराते। मुझे सन् तो ठीक से याद नहीं आ रहा शायद 1972 की जमीन देखते गए। दिल्ली से बाहर एकदम निर्जन स्थान था एकनिष्ठ योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। इसके बात हैं। गुरुदेव का चातुर्मास बड़ौदा था वहाँ एक विशाल किन्तु, मैं देख रहा था कि गुरूदेव पूरे गम्भीर थे। उन्होंने नींव के अतिरिक्त साध्वी मृगावती श्री जी की शिष्यागण जिन्होंने स्मारक साधु-साध्वी सम्मेलन रखा गया था। इस सम्मेलन में साध्वी चारों ओर परिक्रमा की वासक्षेपलेकर मुंह में ही कुछ मंत्र पढ़े और में स्थिरता कर वहाँ के कार्य को अपना कर्तव्य मान कर गति दी। मृगावती श्री जी भी सम्मिलित हुई थी। इससे पहले गुरुदेव वासक्षेप नींव में डाल दिया। वे क्षण आज भी मेरी स्मृति में वे भी कम अनुमोदनीय नहीं हैं। यदा-कदा समुदाय की चर्चाओं के बीच कहा करते थे कि पूज्य तरोताजा हैं। साध्वी मृगावती श्री जी म. के साथ विभिन्न बल्लभ स्मारक पूज्य गुरूदेव विजय वल्लभ का एक ऐसा गुरुदेव विजय बल्लभ सूरीश्वर जी म. सा. ने नारी उत्थान एवं योजनाओं पर विचार किया। निर्माण कार्य में आने वाली बाधाओं बाग हैं जिसमें कहीं प्रभमंदिर कल्पवृक्ष के समान, भोगीलाल समाज में इनकी सम्मानित स्थान देने की बात कहकर इस समाज को जाना किन्तु साध्वी श्री जी के उत्साह और जोश को देखकर लेहरचंद शोधपीठ एक सरभित ज्ञानपुष्प के समान, उपासना गृह पर बड़ा उपकार किया है। आज साध्वी-समदाय में मुगावती श्री गुरूदेव का मन प्रफुल्लित हो उठा। आज जब वल्लभ स्मारक की तप, त्याग और साधना पुष्प के समान, औषधालय, दया और जी एक कर्तव्यनिष्ठ साध्वी हैं। इनकी कार्यकशलता.जिनशासन प्रगति और प्रतिष्ठा की बात सुन रहा हूँ तो मन में अत्यन्त आनन्द करूणा पष्प के समान, खिलकर अपनी सगंध फैला रहे हैं। अब प्रभु एवं पूज्य गरुदेवों के प्रति भक्ति देखकर मझे लगता है कि ये का अनुभव हो रहा है और लगता है कि पूज्य गुरूदेव का नींव में वहीं प्रभ की अजनशलाका प्रतिष्ठा एवं पज्य गम्टेवों की पर्ति एक दिन गुरुदेवों का नाम रोशन करेंगी सम्मेलन के बाद गुरुदेव वासक्षेप डालना ही स्मारक के विकास एवं अभ्युदय की निर्णायक
स्थापना आदि भव्य कार्यक्रम आचार्य श्री जी की निश्रा में होने जा ने उन्हें बुलाया और कहा कि दिल्ली श्री संघ की साग्रह विनती है। घड़ी थी।
रहे हैं। मेरा मन तो कब का स्मारक में पहँच चका है और शरीर अतः पूज्य गुरुदेव विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा.का स्मारक महत्तरा साध्वी श्री मृगावती श्री जी ने स्मारक के निर्माण कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए तीव्र गति से विहार कर रहा
का जो कार्य अभी कल्पना में है उसे साकार रूप देने के लिए आप कार्य को आगे बढ़ाया किन्तु अर्थ संकट किसी भी योजना को हैं। noun दिल्ली की ओर विहार करें और चार्तुमास करें, एक क्रियान्वित करने में सबसे बड़ी बाधा है। साध्वी जी महाराज ने तो ओ मेरे गुरू ! तेरी जय हो! .