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40 मुसलमान बन जाएँ?'
आचार्य श्री जी: "हम लोग लाला कीर्तिप्रसाद जी के मकान में क्या आज्ञा है?" हरिजनों का यह अटपटा प्रश्न सुनकर आचार्य श्री अचरज में ठहरे हुए हैं। कल दो बजे वहां उपदेश होगा। गांव के प्रायः सभी
विजय वल्लभः "ऐसे कामों में हम आज्ञा क्यों दें? यह तो पडे। कछ समझ में नहीं आया कि ये लोग कहना क्या चाहते हैं। लोग आएंगे। उस समय तुम भी वहा आना। आशा है कि तुम्हारी तुम्हारा कर्तव्य है। हमारा काम है तम्हें कर्तव्य का भान करना।" उन्होंने फिर पूछाः "मैं तुम्हारे प्रश्न का आशय समझ नहीं समस्या का हल हो जाएगा।"
उसी समय तत्काल कुआं बनाने का निर्णय किया गया रूपये पाया। तुम कहना क्या चाहते हो?"
दूसरे दिन ठीक दो बजे प्रवचन प्रारंभ हो गया। मकान का एकत्र हुए। और हरिजनों से कह दिया गया कि एक महीने के हरिजनः "हम मूलतः हिन्दू हैं, गौ माता की रक्षा करते हैं
विशाल प्रांगण भर गया था। गांव के सभी छोटे-बड़े लोग भीतर तुम्हारे लिए कओं तैयार हो जाएगा। और रामकृष्ण का भजन करते हैं। परंतु जीना मुश्किल हैं। अगर उपस्थित थे। आचार्य विजय वल्लभ की अस्खलित वागधारा हम मुसलमान बन जाते हैं तो हमारी पानी की समस्या बड़ी प्रवाहित हो रही थी। सभी तन्मय होकर प्रवचन श्रवण कर रहे
दरसन बिन अटके प्राण सरलता से हल हो सकती है। अब आप ही बताइए कि हम हिन्दू रहकर पानी-पानी करते हुए प्यास से तरसते प्राण छोड़ दें या
अचानक पीछे के लोग उठने लगे। आवाज आने लगी। मुसलमान बनकर सुखी हो जाएँ।" आठ-दस हरिजन भाई आ गए थे। आचार्य श्री जी ने उन्हें देखा वे
गोड़वाड़, राजस्थान क्षेत्र में जो आज शिक्षण संस्थाएँ, ___ आचार्य श्रीः "यहां पानी का अभाव कहां है वह सामने कुआं लोग एक कोने में जगह पाकर बैठ गए। सभी हैरत की नजर से विद्यालय, कॉलेज, छात्रालय आदि विद्यमान हैं, उन्हें उस समय है। फिर पानी का कष्ट तुम्हें कैसे है?".
देख रहे थे। फिर ग्राम वासियों संबोधित करते हुए कहा-"गांव बनाया गया था जिस समय वहां अज्ञानता का व्यापक साम्राज्य हरिजनः "पानी तो बहुत है, परंतु हिन्दू लोग हमें कुएं के पास के प्रतिष्ठित महानुभावों, रईसों, आज ये तुम्हारी सेवा करने वाले फैला हुआ था। जब कोई साधन सरलता से उपलब्ध नहीं होता भी आने नहीं देते और छीटें उड़ने के डर से हमारे बरतनों में पानी सेवक हरिजन भाई तुम से यह पूछने आए हैं कि हम हिन्दू रहें या था, और न लोग इस कार्य में दान देते थे। ऐसी विकट भी नहीं डालते। पर मुसलमान पानी भरने आते हैं तो हिन्दू लोग । मसलमान बन जाएं। इसका उत्तर आज तुम्हें देना है। ये तुम्हारे परिस्थितियों से जझते हए जिन्होंने शिक्षण संस्थाएँ निर्मित उनके लिए जगह देते हैं। वे लोग हमारे बरतनों में पानी भी डाल ही गांव में रहने वाले तुम्हारे ही गांव घर और गलियों को साफ करवाई होंगी उन्होंने कितना परिश्रम किया होगा, यह देते हैं । इसलिए हम सोचते हैं कि हम मुसलमान बन जाएंगे तो स्वच्छ रखने वाले, तुम्हारी ही सेवा करने वाले, तुम्हारे ही धर्म का कल्पनातीत है। इन शिक्षण संस्थाओं की नींव में अनेक नामी हमारा पानी का कष्ट दूर हो जाएगा। परंतु बाप-दादाओं का धर्म पालने करने वाले हरिजन भाई कितने दुःखी हैं। धर्म की ओट अनामी कार्यकर्ताओं के खून का सिंचन हुआ है। इस ज्ञान यज्ञ में छोड़ते हए मन को दुःख होता है, हम इसी समस्या में उलझे हुए लेकर तम उनका कितना अनादर, शोषण और अपमान करते अपने प्राणों की आहुति देने वाले एक गोड़वाड़ के प्रखर हैं। इसलिए आपसे मार्ग पूछ रहे हैं।"
हो। वे आज पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। पानी न मिलने कार्यकर्ता अनन्य गुरुभक्त की यह विरल कहानी है।
के कारण वे आज अपने धर्म, सम्प्रदाय, गुरु और भगवान को आचार्य श्री: "यदि तुम्हारी पानी की समस्या हल हो जाती है
आचार्य विजय वल्लभ पंजाब से विहार कर गोड़वाड़ में छोड़ने के लिए विवश और लाचार हुए हैं। उनकी विवशता और तब तो मुसलमान नहीं बनोगे न।"
पधार रहे हैं। उनके प्रमुख शिष्य आचार्य विजय ललित सूरि जो लाचारी का कारण तुम लोग हो। क्या हरिजन होने से वे पानी पीने हरिजनः "महाराज, पानी मिल जाये तो फिर मुसलमान के भी अधिकारी नहीं रहे।
गोड़वाड़ में अनेक कष्टों, परिसहों और उपसर्गों को सहते हुए घूम
घूम कर शिक्षा प्रचार कर कार्य कर रहे थे, उन्हीं के अनन्य बनने की जरूरत ही क्या?" |
एक मानव के नाते तुम लोग आज उनका दर्द दुःख और पीड़ा सहयोगी गोड़वाड़ के रत्न, श्रावक घाणेराव निवासी जसराज आचार्य श्रीः "तुम्हारा दुःख कैसे दूर हो सकता है?" सुनो। तुम्हारे गांव में रहने वाला प्रत्येक भाई चाहे वह किसी भी संघवी थे, जिन्होंने इस कार्य के लिए अपना तन, मन और धन
हरिजनः "हमारे लिए यदि एक अलग कएँ की व्यवस्था हो । जाति का हो तुम्हारा भाई है। उनका दुःख, तुम्हारा दुःख है। अर्पित कर दिया था। वरकाणा के पार्श्वनाथ जैन विद्यालय बनाने जाए तो न हिन्दुओं का मुंह ताकना पड़ेगा न मुसलमानों से आशा उनकी समस्या तुम्हारी समस्या है। आज उन्हें एक कुएँ की के लिए उन्होंने रात-दिन एक कर खून का पसीना बहाकर इतना रखनी पड़ेगी।"
आवश्यकता है। जैन धर्म, हिन्दू धर्म, मुस्लिम धर्म इन सभी अत्यधिक परिश्रम किया कि वे अस्वस्थ हो गये। शरीर किसी का आचार्य श्रीः "तुम्हारी ऐसी योजना है तो क्यों नहीं नया
धर्मों से ऊपर एक धर्म है मानव धर्म। तुम्हारा पहला धर्म यह है सगा नहीं होता। दिन प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य गिरता गया। यहां कुआं बनवाते?" कि तुम दुःखियों के दुःख को दूर करो।"
तक कि अब अन्तिम समय भी आ गया। उनकी यह हार्दिक इच्छा हरिजनः "हमारे पास जमीन है, पर कुआं खोदने का कोई
आचार्य विजय वल्लभ के इस ओजस्वी मार्मिक प्रवचन को थी कि अन्तिम बार मैं अपने आराध्य गुरु आचार्य विजय वल्लभ
सुनकर सभी में हलचल मच गयी। सभी के सिर शर्म से झुक गये। के दर्शन कर मृत्यु को सफल करूं। lan to: सामान खरीद सकें।"
बाब कीतिप्रसाद जी खड़े हए। हाथ जोड़कर बोले: 'गुरुदेव, एक दिन उन्होंने आचार्य ललित सूरि जी म.से जांखों में आंसता