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वल्लभ की अमोघ शक्ति और भक्ति
- प्रो. राम जैन
"बल्लभ" यह नाम स्मरण आते ही मुझे तो ऐसा लगता है कि आत्मा का कर्मों के साथ अठारह दिन का महाभारत का युद्ध हो रहा है। पीला (केसरिया बाना पहने गुरुदेव न्यायाम्भोनिधि माधव का रूप धारण कर अपने पार्थ वल्लभ को समझा रहे हैं। हे वल्लभ । महाभारत का युद्ध अठारह दिन चला था। आत्मा और कर्मों का युद्ध भी अठारह दिन में समाप्त हो सकता है। क्योंकि मुख्य दोष भी तो अठारह ही हैं। यदि संयम और तप तथा ज्ञान की तीन अमोघ शक्तियाँ तेरे पास हैं तो कौरवों की अठारह पापों की महान अभिग्रहसेना अवश्य परास्त होगी। वल्लभ उठ, जाग, आत्मा का पुरुषार्थ जगा ।
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न्यायाम्भोनिधि-माधव ने फिर कहा- हे वल्लभ तू मेरा सर्वप्रिय शिष्य है। मैं तुझे एक अमोघ शक्ति देता हूँ। उसे हस्तगत कर कभी पराजय का मुख नहीं देखेगा। वह अमोघशक्ति है "सम्यग्ज्ञान" क्या मैंने तुझे पहले आगम का सन्देश नहीं सुनाया कि "पढभंणाणं तओ दया"। गीता का भी यही सन्देश है "ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मासात्कुरुतेऽर्जुनः ।
ज्ञानयोगवाला प्राणी (भक्त भगवान को सर्वाधिक प्रिय होता है। गीता में यह स्पष्ट उल्लेख है)।
लिए राधनपुर दे दिया। वैराग्य की जो बेल बड़ौदा उपाश्रय में बोई गई, अश्रुजल से सींची गई, राधनपुरी में पल्लवित एवं पुष्पित हो गई। तभी से छगन का वल्लभ का वल्लभत्व प्रस्फुटित होता गया। सौरभ प्रसारित हो गया उस सौरभ ने सभी विश्वभ्रमरों को मोहित कर लिया उस समय की इतिहास पीठिका से जो दृष्य उपस्थित हुए वे प्रायः सर्वविदित हैं।
बस फिर क्या था । महाभारत पानीपत में हुआ। यह महाभारत राधन पुरी में आरम्भ हुआ। क्योंकि अठारह दोष तो आराधना से ही परास्त हो सकते हैं। अतः प्रकृति ने अराधना के
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महाराज श्री ने कल्याणकारी कार्यों की सिद्धि के लिए लगभग सात बार कठिन अभिग्रह धारण किये। आत्मा तप कर कंचन बन गई। तब मेरी दृष्टि उन्हें सच्चा स्थितप्रज्ञ मानने लगी।
उनकी पारदर्शी दृष्टि
इस दृष्टि ने ही हमें श्री समुद्रगुरु श्री इन्द्रसूरि महाराज दिये। जिन्होंने शासनोपकार कर उन्हीं की परिपाटी को अविच्छिन्न रखा। तुम्हारी मेहर जिस पर हो गई वह महान बन गया तुम्हारी नजर जिस पर पड़ी, गौरव बन गया।
अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। इस मंगल प्रार्थना को गुरुदेव ने साकार किया। लगभग 200 ज्ञान संस्थाओं की उन्होंने स्थापना की। वे भारतीय उपमहाद्वीप के प्रकाश स्तम्भ बन गये।
विद्धन्ता की प्रांजलता
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अनके शास्त्रार्थ तथा अहमदाबाद साधु सम्मेलन इसके साक्षी हैं।
चरित्राचार के चक्रवर्ती
गुरुराज की संयम चादर पर कहीं भी दाग नहीं। वे श्री महावीर स्वामी की पद परम्परा पर 74 वें क्रम पर शोभायमान हैं। श्री विजया नन्द गुरुराज का साधु परिवार सबसे बड़ा है और उसमें "वल्लभ नाम सबका मुकुटमणि है।'
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छगन तथा वल्लभगुरु, से दो प्यारे नाम, सुधा भरे दो पात्र हैं या अमृत के जाम।
विश्व वल्लभ
"नहि माने न सदृशं पवित्रमिह विद्यते"
प्रसिद्ध तीन वल्लभ हुए पुष्टिमार्ग वैष्णव सम्प्रदाय के महान्
हे वल्लभ ! रत्नत्रय में ज्ञान को मध्य में क्यों रखा है। क्योंकि
ज्ञान भरिव को सम्बत्वारिच दगाता है। दर्शन को सम्यग्दर्शन असतो मा सद्गमय के प्रतीक नाचार्य परन्तु एक ही सम्प्रदाय के आधार। दूसरे बल्लभ भाई
चरित्र बनाता है। अतः गुरुकुल बनाना, ज्ञानप्रसार करना, ज्ञान द्वारा शासन की ध्वजा फहराना।
पटेल के कर्णधार परन्तु कूटनीति के भी अवतार। तीसरे वल्लभ गुरु विश्ववल्लभता के प्रत्यक्ष अवतार न मैं हिंदू हूँ, न बौद्ध जैन ईसाई) केवल शुद्ध निर्मल आत्मा, मौक्ष का राहगीर वास्तव ही शुद्ध निर्मल, मानवता के ही अवतार। विराटू में व्याप्त अनन्त, असीमित अपार्थिव दिव्याकार गुरुदेव । तुम्हें कोटि कोटि वंदना । ●
गुरु की निष्ठा में लगभग 24 प्रतिष्ठा महोत्सव हुए। ज्ञान मंदिर, मन्दिर गुरु मन्दिर, अंजनशलाका आदि की गणना अपरिमित है। एक छोटे जीवन में इतने काम। आश्चर्य हैं इस कर्मवीरता पर गुरुवर । तेरे कार्य तेरे ही उपमान।
पाकिस्तान में संघरक्षक
वह कौन सा करिश्मा था कि खूँखारों के हाथ काँपे । हिले खंजर हुए जर्जर, कि भाले साथ साथ काँपे ।
जैन के एक तवांर ने जालिमों के जुल्म रोके। कि इस रूहानी ताकत से, लाख जल्लाद थे कांपे। वल्लभ स्मारक का एक पाषाण तुम्हारा इतिहास वर्णन करेगा। तुम्हारा उपकार ईथर बनकर आकाश में फैल जायेगा।
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