Book Title: Atmavallabh
Author(s): Jagatchandravijay, Nityanandvijay
Publisher: Atmavallabh Sanskruti Mandir

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Page 42
________________ हमारे गुरुदेव :आचार्य विजय वल्लभ -आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वरजी इस पृथ्वी पर कितने ही मनुष्यों ने जन्म लिया, अपनी सुविधा सूत्र में बाँधा और महाराष्ट्र के विदर्भ तक जाकर समाज को पास आई अन्त में मेरी फाँसी रद्द हो गई।" और स्वार्थ के अनसार उन्होंने जीवनयापन किया और अन्त में बचाया। धार्मिक सामाजिक प्रगति एवं उत्थान के लिए कठोर दसरा प्रसंग सं०1992 में गरुदेव पालीताणा में विराज रहे मृत्यु की शरण वरण किया। इन अपार मानव समुदाय के परिश्रम किया। बम्बई में महावीर जैन विद्यालय, राजस्थान में थे। युवक घनश्याम को नीले साँप ने डस लिया। उसे अस्पताल ले अधिकांश व्यक्तियों का संसार को न तो नाम का पता है, न जन्म पार्श्वनाथ जैन विद्यालय वरकाणा में पार्वजैन उम्मेद कालेज, जाया गया डाक्टरों ने जवाब दे दिया। जब बचने की कोई आशा का, न मौत की तारीख का। इन्हीं मानव समुदाय में कुछ व्यक्ति फालना में पंजाब, अम्बाला शहर में आत्मानंद जैन कालेज आज न रही तो उस के मित्र रतनचंद गुरुदेव के पास आए। गुरुदेव ने ऐसे भी हो जाते हैं, जो इस तरीके से जी जाते हैं कि उनका नाम भी उनका गौरव बढ़ा रहे हैं। समस्त विद्यार्थी जगत् उनके इस स्थिति की गम्भीरता पहचानी और वासक्षेप दिया सब कुछ अच्छा लेते हुए हमें एक अलौकिक आनंद का अनुभव होता है। क्योंकि वे ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता। हो जाएगा।" और सचमुच घनश्याम, जो अच्छे संगीतज्ञ हैं मृत्य व्यक्ति अपने पीछे एक ऐसी सुगंध छोड़ जाते हैं जो सदियों तक पं. गुरुदेव ने केवल शिक्षण-संस्थाओं के लिए ही प्रयत्न नहीं के मुख से निकल आए। फैली रहती है। ऐसे व्यक्ति जगत् को जीवन-यापन का एक नवीन किया प्रत्युत जैन शासन की उन्नति और प्रभावना के लिए तीसरा प्रसंग सं०1996 में बड़ौत में जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा दृष्टिकोण दे जाते हैं और सुख-प्राप्ति का एक अद्भुत मार्ग दिखा उपधान, उद्यापन, अंजनशलाका, प्रतिष्ठा, नव मंदिरों का हो रही थी। माघ की ठंड जोरों पर थी। रथयात्रा निकलने वाली जाते हैं। निर्माण, जीर्णोद्वार, उपाश्रयों और धर्मशालाओं के निर्माण को थी। आस-पास के गांवों से हजारों लोग आए थे। दिगम्बर जैन ऐसे ही एक महामानव थे हमारे गुरुदेव विजय वल्लभ भी प्रेरणा दी। उनके प्रवचन जनसाधारण के लिए होते थे। हाईस्कूल में आत्मबल्लभ नगर की रचना की गई थी। प्रतिष्ठा सरीश्वर जी। वे विलक्षण प्रतिभाशाली और दिव्य शक्ति सम्पन्न उनकी वाणी में हर किसी को बांध देने की मृदुता और मधुरता महोत्सब ने एक छोटे से मेले का रूप धारण कर लिया था। बड़ौत थे। उन्हें दुख, पीड़ा और विपत्ति में फंसे समाज को उबारने की थी। उनकी प्रतिभा में अदभुत आकर्षण और तेजस्विता थी। उस नगर में यह अपर्व महोत्सव था। इतने में आकाश काले बादलों से तमन्ना थी और स्वयं एक पवित्र जीवन जीकर संसार को अमूल्य अलौकिक प्रतिभा ने अनेक चमत्कारों का सर्जन किया है। वे संदेश देने की तीव्र अभिलाषा थी। चमत्कार करते नहीं थे न चमत्कारों में विश्वास करते थे। अचानक गर्जने लगे। लगता था अभी वर्षा शुरू हो जाएगी। बचपन में ही उनमें विलक्षण सूझ का उदय हो गया था। कुछ चमत्कार स्वयं घटित हो जाते थे। यह उनके चरित्र का प्रभाव आयोजक घबड़ाए। सारी तैयारी धूल में मिल जाने वाली लगी। नया कर दिखाने और किसी अपकट तत्व की खोज करने में था। एसा चमत्कारिक घटनाएदेख-सुनकर हम आश्चय चाकत आयोजक गरुदेव के पास पहुंचे गरुदेव ने सदा की तरह कह दिया बाल्यावस्था में ही लालसा थी। इस लगन ने अनेक विघ्नों के हो जाते हैं ऐसी ही कुछ घटनाओं को हम देखें। सब कुछ अच्छा हो जाएगा। कुछ समय के बाद,बादल बिखर गए बावजूद उन्हें किशोरावस्था में दीक्षित कर दिया। पूर्ण युवावस्था पू० गुरुदेव का आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं जाता था। एक आकाश साफ हो गया। जैन-जैनेतर बहुत प्रभावित हुए। वे में वे त्यागी और वैरागी बन गए। “वसुधैव कुटुम्बकम्” को बार चौपाटी के मैदान में प्रवचन हुआ। प्रवचन के बाद एक मुसलमान जो रथयात्रा को मस्जिद के आगे से निकलने के लिए उन्होंने अपना जीवन-सूत्र बनाया। इसी सूत्र के आधार पर व्यक्ति आया उनके चरण पकड़ कर बोला-"गुरुदेव, आप मुझे मना करते थे, प्रभावित होकर सहर्ष स्वीकृति दे दी। इस प्रकार की उन्होंने जैन-जैनेतरों, अमीर और गरीबों, ब्राहमण और वर्णिकों, पहचानते हैं? गुरुदेव ने उसे कभी देखा नहीं था। कहाः हम तो अनगिनत घटनाएँ हैं। जो हमें श्रद्धानत कर देती हैं। विकट से हिन्दू और मुसलमानों को बिना भेदभाव वीतराग का शभ संदेश नहीं पहचानते।" व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा : गुरुदेव, विकट परिस्थिति में भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा उनके सुनाया। हजारों मनुष्यों को उन्होंने माँस-मदिरा और दुराचार से आप ही मेरे प्राणों के रक्षक हैं। मैं मेरठ जिले का रहने वाला हूं। विशाल हृदय में सभी के लिए स्थान था। वे सत्य के पुजारी थे बचाया। पंजाब, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, मध्यप्रदेश और वकील हूं। एक बार एक गुनाह में फंस गया फांसी की सजा हो और जो सत्य का पुजारी था वह उनका पुजारी था। जिस सत्य को महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में धूम-घूमकर अपनी ज्ञान-शक्ति और गई। तारीख भी निश्चित हो गई। उस समय आप मेरे गाँव उन्होंने अनुभूत किया उसी को प्रकट किया। उनके नेत्रों से चरित्र बल से वे पंजाब के प्राण, राजस्थान, गुजरात के गौरव, पधारे। मेरी पत्नी आपके दर्शन के लिए आई। उसने रोते हुए वात्सल्य की धारा सदा प्रवाहित होती रहती थी। उन्होंने जो सौराष्ट्र के सिरमौर कहलाये। उन्होंने पंजाब को सुसंस्कारों से मेरी कथा सुनाई। आपसे उसका दुःख देखा नहीं गया, आपने उसे उपकार किए, जीव और व्यक्तित्व की जो पहचान काल के भाल सिंचित किया, राजस्थान को जाग्रत किया, गुजरात को एकता के आशीर्वाद दिया और वासक्षेप भी। वासक्षेप लेकर वह जेल में मेरे पर ऑकत की, चिरस्मरणीय रहेगी। FO.Private Speesonal uine-Only

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