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अधूरी भावना
-अगरचन्द नाहटा
रूबाईयां
20वीं शताब्दी के यवकहृदय आचार्य विजयवल्लभ सूरि जी नई-नई योजनाएँ होंगी। मैं भी अपना एक सुझाव इस प्रसंग पर ने अपने 84 वर्षों की दीर्घ आय में जो महान सेवाएँ की, वे सर्व देना चाहता है। विदित हैं। अभी उनके स्वर्गवास हुए अधिक वर्ष नहीं हुए। अतः जैन समाज भारतीय जनगणना के अनुसार अल्प हजारों लक्ष्याधिक व्यक्ति उनके सम्पर्क में आने वाले आज भी संख्यकसमाज है, तो भी वह एक प्रतिष्ठित प्रसिद्ध तथा समृद्ध मौजूद हैं। उनके द्वारा स्थापित विद्यालय आदि संस्थाएं व समाज है। अहिंसामूलक जैन धर्म के अनुयायी शान्त और | दिलों से गर्दे नफरत पाक हो गम दूर हो जाएं प्रतिष्ठित मूर्तियाँ तो विद्यमान हैं ही। पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात सविचारक होने ही चाहिएं। धार्मिक कार्यों में जैन समाज खूब ! | सितमगर भी महब्बत के नशे में चर हो जाएं एवं राजस्थान के अनेक स्थानों में उनकी कीर्तिकला और हजारों
उदारतापूर्वक प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करता है। लाखों और भक्त विद्यमान हैं। पंजाब और बम्बई के भक्तों का तो कहना ही करोड़ों की अनेक योजनाएँ चल भी रही हैं पर वल्लभ सूरि जी की |
अहिंसा एक ऐसे प्यार के जादू का शीशा है क्या? वास्तव में पंजाब में तो उनके भक्त उन पर न्योछावर है, एक उदात्त और भव्य भावना जो अधूरी रह गयी है, उसकी पूति
कि इस शीशे में ढल जाएं तो शोला नूर हो जाएं फिदा हैं। वल्लभ गरु का नाम लेते ही उनमें सात्विक जोश का की ओर भक्त और समद्धजन अभी तक प्रयत्नशील नहीं दिखायी उपदेश अहिंसा का सुनाया तूने उफान-सा प्रकट होने लगता है। गुरु के प्रति ऐसी भक्ति अत्यन्त देते। मैं आशान्वित हैं कि आत्मवल्लभ जैन स्मारक शिक्षण अमृत भरा इक आम पिलाया तूने दलभ आर अनुकरणीय है। बम्बई के भक्तों ने भी उनकी स्मृति निधि उसकी शीघ्र ही योजना बनाकर एक महान कमी को परा भारत पै थे छाये हए जब जल्म के बादल में जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये व कर रहे हैं, वे बेजोड़ और सराहनीय करेगा।
यह चांद सा मुखड़ा था दिखाया तूने हैं। पूज्य वल्लभसूरि जी अच्छे कवि थे। उन्होंने कई सुन्दर पूजाएँ
यह भी सभी जानते हैं कि जैन धर्म भारत का प्राचीनतम मेरी निगाह में यं आज शादमानी है व स्तवन आदि बनाये हैं। खेद है कि उनके धर्म प्रवचनों को लिखा
धर्म व विश्वकल्याणकारी धर्म है। जैन साहित्य भी बहुत समृद्ध, कर सुरक्षित रखने का जैसा चाहिये, ध्यान नहीं रखा गया अन्यथा
नया जमाना नया दौरे-जिन्दगानी है वैविध्यपूर्ण और ज्ञानोपयोगी है। जैन सिद्धान्त वैज्ञानिक और उनकी प्रभावशाली वाणी युग-युगों तक असंख्य जनों के हृदय को
दिखाया अमनो अहिंसा का रास्ता हम को विश्व प्रचार योग्य हैं। फिर भी जैन धर्म का प्रचार बहुत सीमित प्रभावित करती रहती। फिर भी जो कुछ किया गया वह उपयोगी है। जैन साहित्य और कला की जानकारी थोड़े से ही व्यक्तियों को
कौम पर वल्लभ गुरू की यह मेहरबानी है है ही।
होगी। इसका प्रधान कारण है जैन विश्वविद्यालय का न होना। पंजाब की इक शान बना आन के बल्लभ
जैन विश्वविद्यालय की स्थापना से इन सब दिशाओं में बहुत बड़ा पंजाब की इक जान बना आन के वल्लभ दिल्ली में पूज्य वल्लभ सूरि जी की स्मृति में जैन स्मारक बन काम हो सकता है। विश्व की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं है फख़र हमें कौम के इस रहबर पर रहा है, यह जानकर बड़ी खुशी हुई। अवश्य ही भारत की से हमारा सम्बन्ध सहज ही जुड़ सकता है। जैन विश्वविद्यालय
आत्म ने जो सौंपा था रतन जान के वल्लभ राजधानी में यह "वल्लभ स्मारक" बड़े स्तर पर बहुत बड़ी की उपयोगिता और आवश्यकता के सम्बन्ध में 2-3 लेख जगह में करीब एक करोड़ रुपये की राशि से बनने जा रहा है। प्रकाशित भी हो चुके हैं। महान् योगिराज पूज्य विजयशान्ति सूरि
बड़ौदा में लिया था बने पंजाब केसरी अतः यह पूज्य वल्लभ सरि जी की स्मृति व कीर्ति को चिरस्थायी ने प्रयत्न भी किया था पर सफल नहीं हो पाये। पूज्य
आत्मा के बने पट्टधर थे वो पंजाब केसरी और दीर्घकालीन करेगा। जैन धर्म के शिक्षण, शोध, प्रचार, विजयवल्लभ सूरि जी ने तो कई बार इस पर जोर दिया था। | मिटाई कौम की खातिर थी उसने जिन्दगी अपनी साहित्य, प्रकाशन, स्वधर्मी सेवा आदि अनेक उपयोगी एवम् सम्भव है अभी उदयकाल नहीं आया होगा, जैन समाज ने इस सिधारे बम्बई में स्वर्ग मेरे पंजाग केसरी महत्त्वपूर्ण कार्य स्मारक के माध्यम से सम्पन्न होंगे। इससे जैन ओर ठोस कदम नहीं उठाया। गम्भीरता से विचार ही नहीं किया
अभय कुमार जैन धर्म का अवश्य ही गौरव बढ़ेगा, और शासनप्रभावना होगी। गया। आशा है अब तो इस परमावश्यकता की पूर्ति वल्ल्भ जैन An EOभवन के व्यवस्थापकों के सामने अवश्य ही बहुत बड़ी-बड़ी और स्मारक अवश्य करेगा। lune Only