Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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वेराबल ( सौराष्ट्र ) में १२ वीं सदीके एक संस्कृत लेख सं० २८७में लिखा है ' -
बभूवुः कुंदकुंदाख्या साक्षात्कृतजगत्त्रयाः ॥ १३॥ येषामाकाशगामित्वं व्यात पंचकमुज्वलं ।
इस प्रकार शताधिक शिलालेखादिमें आचार्य कुन्दकुन्दकी यशोगाथा उल्लिखित है । किन्तु मैंने यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण ही प्रस्तुत किये हैं । यद्यपि यहाँ सर्वप्रथम मर्कराके उस ताम्रपत्रवाले लेखका उल्लेख होना चाहिए था जो आचार्य कुन्दकुन्दके उल्लेखवाला सर्वप्राचीन लेख है किन्तु इसकी प्रामाणिकता विवादग्रस्त है । फिर भी कुछ अंश इस प्रकार हैं-
स्वस्ति जितं भगवता गतघनगगननाभेन पद्मनाभेन श्रीमद् जाह्मबीय कुलामलव्योमावभासनभास्करः विभूषणविभूषित काण्वायन सगोत्रस्य विद्वत्सु प्रथमगण्य श्रीमान् कोङ्गणिमहाधिराज अविनीत नामधेय दत्तस्य देसिग गणं कोण्ड कुन्दान्वय गुणचन्द्र भटारशिष्यस्य अभयणन्दि ।
3.
इस तरह आचार्य कुन्दकुन्द और उनके अन्वयको गौरवशाली परम्परा दो हजार वर्षोंसे अबतक निरन्तर चल रही है । तथा कुन्दकुन्दान्वय के रूपमें जिसका उल्लेख आज भी सभी प्रतिष्ठित मूर्तियोंके मूर्तिलेखों में अनिवार्यतः प्रचलित है । जिनके परिपेक्ष्य में हम उनके महान् व्यक्तित्व और कर्तृत्वके साथही भारतीय मनीषाको उनके अनुपम योगदानको परखकर सकते हैं ।'
आचार्य कुन्दकुन्दकी भाषा और साहित्य
आचार्य कुन्दकुन्दकी कृतियोंमें तात्त्विक, आध्यात्मिक और आचार जैसे दुरुह विषयोंके प्रतिपादनमें भी भावों और भाषाकी प्रौढ़ता तथा प्रसन्न, सरल एवं गम्भीर शैलीका जो स्वरूप दिखलाई पड़ता है वह अन्यत्र दुर्लभ है । इन्होंने भारतीय आर्यभाषा के प्राचीन स्वरूपको ध्यानमें रखकर तत्कालीन बोलचालकी
१. जैन शिलालेख सं० भाग ४.
२. देखिए जैन शि० सं० भाग २ की प्रस्तावना पृ० ३ में डॉ० हीरालालजीने बनावटी कहा है ।
३. मर्क का यह संस्कृत कन्नड़ लेख शक सं० ३८८ ( ४६६ ई०) का है । अविनीत कोङ्कणिका मर्करा पत्र ( मर्कराके खजाने मेंसे प्राप्त ताम्रपत्र) लेखमें और राजाओंकी वंशावली इस दानपत्र में दो गई है। इस्तेमें देसिंग ( देशीय ) गण कोण्डकुन्द अवयके गुणचन्द्र भटार ( भट्टारक ) के शिष्य अभयनंदि भटार आदिकी परम्पराका उल्लेख है ।
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