Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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गंगवंश के महाराजा माधववर्मा द्वितीय और उनके पुत्र अविनीत । सन् ४००... ४२५ के करीब ) के लेखों में पाया जाता है । इसी मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख मूर्तिलेखों आदि में करना वर्तमान कालमें भी प्रचलित है।
कुन्दकुन्दान्वय का स्वतंत्र - उल्लेख आठवीं-नौवीं शती के शिलालेख में देखा गया है तथा मूलसंघ कोण्डकुन्दान्वय का एक साथ सर्वप्रथम प्रयोग लेख सं० १८० (लगभग १०४४ ई० ) में इस प्रकार पाया गया है-"श्रीमूलसंघ, देशियगण, पुस्तक-गच्छ कोण्डकुन्दान्वय इङ्गलेश्वरद बलिय""शुभचन्द्रदेवर"२ अन्यान्य शिलालेखों के उल्लेख भी दृष्टव्य हैं ।
श्रवणवेलगोलमें कतिले बस्तीके द्वारेसे दक्षिणकी ओरके पूर्वमुख पर शक सं० १०२२ के लेख सं० ५५ पर भी लिखा है कि
श्रीमतोवर्द्धमानस्य वद्धमानस्य शासने ।।
श्री कोण्डकुन्द-नामाभून्मूलसंघाग्रणी गणी ॥३॥ श्रवणबेलगोल के महनवमी मण्डप में शक सं० १२३५ के लेख सं० ४१ में कहा है
श्री मूलसंघ-देशीगण-पुस्तकगच्छ कोण्डकुन्दान्वये ।
गुरुकुलमिह कथमिति चेद्ब्रवीमि संक्षेपतो भुवने ॥२॥ कुप्पुटरू ( कन्नड़ ) के लेख सं० २०९ शक सं० ९९७ में भी कहा है"
आतक्य-गुण-जलधिकुण्डकुन्दाचार्य्यर् । .
आ-कोण्डकुन्दान्वयदोलु । श्री कुण्डकुन्दान्वय-मूलसंघे""। विन्ध्यगिरि पर्वतपर सिद्धरबस्तीमें उत्तरकी ओर एक स्तम्भपर शक सं०
१. जैन शिलालेख संग्रह २ की प्रस्तावना. २. जैन शिलालेख संग्रह भाग ३. शि० सं० १८० पृ० २२०, यह लेख दोड्ड___कणगालुमें गौड़के खेतके दूसरे पाषाणपर उत्कीर्ण है। ३. जैन शि० संग्रह भाग ३. लेख सं० ३०७, ३१३, ३१४, ३३५, ३५२,
३५६, ३६४, ३७२, ३७७, ३८४, ३८९, ३९४, ४०२, ४११, ४३९, ४४९, ४६६-६, ४७८, ५१४, ५२१, ५२४, ५२६, ५३८, ५४७, ५५१, ५६१, ५७१, ५८०, ५८२, ५८४, ५८५, ५९०, ६००, ६२१, ६७३,
७०२, ७५५, ८३४,८३६. ४. वही भाग १ पृ० ११५. ५. जैन शिलालेख सं० भाग २ पृ० २६९.
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