Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-इस गाथामें कहा है कि पद्मनन्दि (कुन्दकुन्द ) स्वामीने सीमन्धर स्वामी से दिव्यज्ञान प्राप्तकर अन्य मुनियोंको प्रबोधित किया। यदि वे प्रबोधन कार्य न करते तो श्रमण सुमार्ग किस तरह प्राप्त करते ?
जयसेनाचार्यने पंचास्तिकायकी टीकामें उक्त विदेहगमन वाली घटनाको "प्रसिद्ध कथा" कहा है। अनेक शिलालेखोंमें भी उन्हें चारणऋविषारी अर्थात् पृथ्वीसे चार अंगुल ऊपर आकाशमें अनेक योजन तक गमन करने वाला कहा है।' श्रवणवेलगोल नगरके मठकी उत्तर गोशालामें शक सं० १०४१ के शिलालेख संख्या १३९ में इस तरह लिखा है
स्वस्ति श्री वर्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । .
श्रीकोण्डकुन्द नामाभूच्चतुरङ्गुलचारणः ॥२ अर्थात् वद्ध मानके शासनमें परिपूर्ण रूपसे निष्णात चार अंगुल ऊपर जमीनसे चलने वाले कुन्दकुन्दाचार्य हुए।
महनक्मी मण्डपके उत्तरमें एक स्तम्भ पर शक सं० १०.९९ के लेख सं? ४२ में नागदेव मन्त्री द्वारा अपने गुरु श्री नयकीर्ति योगीन्द्रकी विस्तृत गुरु-परम्पराका उल्लेख है जिसमें आचार्य पद्मनन्दी (कुन्दकुन्द ), उमास्वाति-गृद्धपिच्छ, बलाकपिच्छ, गुणनन्दि आदि आचार्योंके नामोल्लेख हैं । इसमें भी आ० कुन्दकुन्दको चारणऋद्धिधारी बतलाया है । यषा
श्री पद्मनन्दोत्यनवद्यनामा ह्याचार्य शब्दोत्तरकोण्डकुन्दः । . द्वितीयमासीदभिधानमुद्याच्चरित्रसञातसुचारद्धिः ॥४॥
यही श्लोक चामुण्डराय वस्तिके दक्षिणकी ओर मण्डपके प्रथम स्तम्भ पर शक सं० १०४५ के लेख सं० ४३ में लिखा है।
श्रवणबेलगोलके विन्ध्यगिरि पर्वत पर सिद्धरबस्तीमें उत्तरकी ओर एक स्तम्भ पर शक सं० १३२० के लेख सं० १०५ में स्पष्ट रूपसे आचार्य कुन्दकुन्दको अनेक विशेषणों सहित भूमिसे चार अंगुल ऊपर गमन करने वाला कहा है१. जैन शिलालेख संग्रह भाग १, शिलालेख सं० ४०, ४१, ४२, १०५, १३९,
२८७ २. वही पृष्ठ २८६ ३. लि संग्रह भाम.१० ४२. ४. वही : लेख सं० ४३ एवं ४७.
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