Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रोमूलसं(घ)ऽजनि नन्दिसंघस्तस्मिन् बलात्कारगणेऽतिरम्य । तत्रापि सारस्वतनाम्निगच्छे स्वच्छाशयोऽभूदिह पदम नन्दी । ___ आचार्यः कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामुनिः ।
एलाचार्यों गदपिच्छ इति तन्नाम पंचधा॥' वि० सं० ९९० में रचित आचार्य देवसेनने अपने 'दर्शनसार' ग्रन्थमें मात्र 'पद्मनन्दी' नामसे उनका उल्लेख किया है। वि० सं० १६वीं शतीके षट्प्राभृतके टीकाकार श्रुतसागर सूरिने उनके पांच नामोंका उल्लेख करते हुए उन्हें आकाशमें गमन करनेवाला (चारणऋद्धिधारी), विदेहक्षेत्र जाकर सीमंधर स्वामीकी दिव्यध्वनि सुनने वाला तथा 'कलिकाल-सर्वज्ञ' रूप विशेषताओंसे युक्त बतलाया है । प्रायः प्रत्येक प्राभृतके अन्तमें इस तरहकी पुष्पिका पाई जाती है
श्रीपद्मनन्दि कुन्दकुन्दाचार्य वक्रग्रोवाचायलाचार्यगृद्धपिच्छाचार्यनामपंचकविराजितेन चतुरंगुलाकाशगमनदिना पूर्वविदेहपुण्डरीकिणीनगरवन्दितसीमन्धरापरनाम स्वयंप्रभजिनेन तच्छुतमानसम्बोधित भरतवर्षभव्यजीवेन श्रीजिनचन्द्रसूरिभट्टारकपट्टाभरणभूतेन कलिकालसर्वशेन विरचिते षट्प्राभृतग्रन्थे सर्वमुनिमण्डली. मण्डितेन कलिकालगौतमस्वामिना श्रीमल्लिभूषणेन भट्टारकेणानुमतेन सकलविद्वज्जनसमाजसम्मानितेनोभयभाषाकविचक्रवर्तिना श्रीविद्यानन्दिगुव॑न्तेवासिना. सूरिवरश्रीश्रुतसागरेण विरचिता बोधप्राभूतस्य टोका परिसमाप्ता।'
श्रुतसागरसूरि द्वारा आ० कुन्दकुन्दके लिए 'कलिकालसर्वश' विशेषण भी. विशेष महत्त्वपूर्ण है। विदेहक्षेत्र गमन और चारणऋद्धि सम्बन्धी उल्लेख .. अनेक ग्रन्थों और शिलालेखोंमें आ० कुन्दकुन्दके विदेहगमन और चारणऋद्धि सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं । यद्यपि आजके कुछ विद्वानोंने विदेहगमन और वहाँ सीमंधर स्वामीके समवशरणमें पहुँचकर दिव्यध्वनि श्रवण की इस घटनाको सही नहीं माना है। किन्तु सदियों प्राचीन इन उल्लेखोंको नजर-अन्दाज भी कैसे किया जा सकता है ? विदेह गमनकी घटनाका सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य देवसेनने किया है
जइ पउमणंदिणाहो सोमंघरसामिदिम्वणाणेण ।
ण विबोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति ॥ १. जैन सिद्धान्त भास्कर ( आरा ) भाग १ किरण ४ पृ० ९०. २. दर्शनसार ४३. ३. अष्टपाहुड : पृष्ठ २०५. श्री शान्तिवीरनगर, श्रीमहावीरजी, १९६८ ४. निसार : गाथा ४३.
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