Book Title: Apbhramsa of Hemchandracharya
Author(s): Hemchandracharya, Kantilal Baldevram Vyas, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 77
________________ ४८ सिद्धहेमचन्द्राभिषशब्दानुशासने तस्यान्वये समजनि प्रबलप्रतापतिग्मतिः क्षितिपतिर्जयसिंहदेव' । येन स्ववंशसवितर्यपरं सुधांशी श्रीसिद्धराज इति नाम निजं व्यलेखि ॥२॥ सम्यग् निषेव्य चतुरश्चतुरोप्युपायान् जित्वोपभुज्य च भुवं चतुरब्धिकाञ्चीम् । विद्याचतुष्टयविनीतमतिर्जितात्मा काष्ठामवाप पुरुषार्थचतुष्टये यः ॥ ३ ॥ . तेनातिविस्तृतदुरागमविप्रकीर्णशब्दानुशासनसमूहकदर्थितेन । अभ्यर्थितो निरुपमं विधिवद् व्यवत्त शब्दानुशासनमिदं मुनिहेमचन्द्रः ॥ ४ ॥ - __ 1 °द्युति B. 2 जयसिंहदेवः B.8 विदेखि B. 4 निसेव्य A. 5 °कांचि B. 6 काष्टा B. 7 निरवमं V. 8 Colophon of A : सर्वसंख्यया श्लोके ग्रंथानं २१८५ शुभं भवतु ॥ अयं ग्रंथः श्रीतपागच्छाधिराज सदर्पकंदर्पकरटिककरटपाटनपाटूपटमृगाधिराज श्री भट्टारकपुरंदर श्रीसोमसुंदरसूरिविष्याणुना प्रतिष्ठासोमगणिना सं. १४९२ वर्षे भाद्रप० २० १३ दिनेऽलेखि।। ___Colophon of B : पं. २१८५ श्लोकसंख्या । सं. १४९३ वर्षे आश्विनवदि १४ दिने क्षेमधीरगणिना महीशानकनगरे लिखिता ॥ छ ॥ व्याकरणात्पदसिद्धिः पदसिद्धेरर्थनिर्णयो भवति । अर्थज्ञानात् तत्त्वं तत्त्वज्ञानात्परं श्रेयः ॥ १ ॥ श्री ॥ Colophon of C: सं. १५१८ वर्षे फाल्गुनशुदितृतीयादिने परमगुरुश्री ८ लक्ष्मीसागरसूरि श्रीसोमदेवसूरि * * * * * * ( ten letter-spaces have been obliterated here ) लेशेनालेखि. Some one has added the following to the colophon, in a different hand : शुभविजयपंडितोसमशिशुना वृद्धेन वृद्धिविजयेन । पुस्तकमेतन्मुक्त चित्कोशे पुण्यवृद्धिकृते ॥२६५४ ॥ प्रे० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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