Book Title: Apbhramsa of Hemchandracharya
Author(s): Hemchandracharya, Kantilal Baldevram Vyas, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
(182)
पढ
(99
पंका
पढें, पइड (प्रविष्टः, प्रविष्टानि)४३२, पडिहाइ (प्रतिभाति) ४४१-१ १४४.४३४०-१
(पठ) पइट्टि
पणट्ठ (प्रणष्टे)४०६-२,४१८-४,६ पइसीसु
पणएण (प्रणयेम) पोहर
पत्तु (प्राप्तः) ३३२-२ पोहरह (पयोधरयोः) ४२००२
पत्ततणं (पत्रत्वम्) ३७०-१ (पङ्कजे) ३५७-२
पत्ताणं (पत्राणाम्)
३७०-१ पंगणइ
४२०३ पत्तेहि (पत्रैः)
३७०-१ पंच
(पञ्चानाम् ) ४२२-१२ पत्तलु (पत्रवान्) ३८७-२ पंथि
(पथि) ४२९.१ पत्थरि (प्रस्तरे) पंथिअहिं (पथिकैः) ४२९ पण्णई (पर्णानि) ४२७-१ पक-फलाई (पक्कफलानि) ३४०.१ पफुल्लिअउ (प्रफुल्लितः) पक्खावडिअं (पक्षापतितम) ४०१-४ पन्भ (प्रभ्रष्टा) पग्गिम्व (=प्रायः) ४१४-४ पमाणु (प्रमाणम् )३९९-१,४१९-२, पच्चल्लिर (प्रत्युत) ४२०.२
१३८-३
(प्रमुष्टः) पच्छइ (पश्चात्) ३६०
पइ (पदे)
४१४.२ पच्छायावडा (पश्चात्ताप:)
पइ पइ (पदे पदे) पच्छि
४०६.१ (पश्चात)
३८८ पच्छिते
(पदानि) (प्रायश्चित्तेन)
४२०.१ ४२८ पज्जत (पर्याप्तम्)
पयई (पदे) ३९५.३
पयम्पह पट्टण-गामह
४२२-९ (पत्तनग्रामयोः)
(प्रजल्पत) ४०७
पयट्ट (प्रवर्तते) पट्रि (पृष्ठम्)
३२९ पठाविअइ
पयडा
(प्रकटान्) (प्रस्थाप्यताम् ) ४२२-६
३३८ पडइ
पय-रक्ख-समाणु (पदातिरक्षकसमम् ) ४१८-२ (पतति)११२-४,४२२-१४ पहि (पतन्ति)
(प्रकाराभ्याम् ) ३६७.४
३८८ पडति (पतन्ति )
४२२.१५
पयासइ (प्रकाशयति) ३५७.१
पयासु पडिउ (पतितः)
('प्रकाशः) ३९६-५
३३७ पडहु (पटहः)
(परम्) ३३५,३६६, ४४३
३७९-१,३९५-५, पडिपेक्खइ (प्रतिप्रेक्षते) ३४९-१
३९६-३,४१४-३, पडिबिंबिध-मुंजाळ (प्रतिबिंबितमुञ्जवत् )
४२०-१,१२२-३, ४३८.१,३,५४१-१
पय
पयारेहि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229