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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] अथ क्षेत्र प्रमाणा विषय।
से किं तं खेत्तप्पमाणे ? दुविहे पण्णत्ते तं जहा-पएस णिप्फणेय विभागणिप्फणेय। से किं तं पएसनिप्फन्ने ? एगपए सोगाढे, दुपएसोगाडे, संखिज्जप०, असंखिज्जप. से तं पएसनिप्पन्ने। से कि तं विभागनिप्पन्ने ? अगुल विहत्थी रयणी कुत्थी गाउयं च बोधव्वं जोयण सेढीपरं लोगम लोगे वियतहेव ॥२॥
पदार्थ-(मे कि तं खेत्तप्पमाणे? दुविहे पण्णते, तं जहा। क्षेत्र प्रमाण किसे कहते हैं? क्षेत्र प्रमाण दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि-(पएसनिप्फन य विभागणिकत्र य) प्रदेश निष्पन्न और विभाग निष्पन्न (से कि त पएसनिप्फनय ? एगपएसोगाई दुपर सो गाहे संखिजपएसोगाडे असंखेजपरसोगाडे, से तं पर सनिप्फत्र) प्रदेश निष्पन्न किस प्रकार से होता है ? जैसे कि-एक प्रदेशावगाही पुद्गल, द्विप्रदेशावगाहो, संख्यात प्रदेशावगाहो, असंख्यात प्रदेशावगाही द्रव्य । ये सर्व प्रदेशनिष्पन्न हैं। क्यों कि प्रदेश निर्विभाग है । उस में द्रब्य यावन्नात्र प्रदेशों पर ठहरता है । इस अपेक्षा से प्रदेश निष्पन्न क्षेत्र प्रमाण होता है । (से किं तं विभागनिप्फन्ने ? अगुल विहत्थी रयणी कुत्थी) विभाग निष्पन्न किसे कहते हैं ? जो क्षेत्र के विभाग से उत्पन्न हो, उसे विभाग रूप क्षेत्र कहते हैं। जैसे कि-अंगुलो प्रमाण जो क्षेत्र है, उसे अंगुल कहते हैं इसी प्रकार वितस्ती हस्त कुक्ष (गाउयं च बोधव्वं) और कोश भी जानना चाहिये
अर्थ-चार अंगुल लम्बा, चार अंगुल चोंडा तथा चार अंगुल गहरा, बांस अथवा लोह आदि के पात्र को 'कुडव' कहते हैं । श्रादि शब्द से यहां पर सोना, चांदी, तांबा, जस्त, रांग, कांसा, शीशा, चाम, सींग, दांत भी लिये जाते हैं । इसके द्वारा दूध, जल, तेल, घृत नापा जाता है।
औषधों का नामकरण । यदौषधं त प्रथमं यस्य योगस्य कथ्यते ।
तन्नाम्नैव स योगो हि कथ्यतेऽसो विनिश्चयः ॥ ३२ ।। अर्थ--जिस प्रयोग में जो प्रथम औषधि है उसी औषधि के नाम से वह प्रयोग कहलाता है । जैसे क्षुद्रादि, गुडूच्यादि क्वाथ । इनमें प्रथम कटेरी, रास्ता और गिलोय है । इसी कारण क्षुद्रादि काढ़ा, रास्तादि काढ़ा और गुडच्यादि काढ़ा कहलाता है । इसी प्रकार चंदनादि तैल, कूष्मांड पाक, हिंग्वष्टक चूर्ण आदि में भी जानना चाहिये।
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