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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम ] अष्टमानं च संशेयं कुडघाभ्यां व मानिका ।
शरावोऽष्टपलं तद्वज्ज्ञ यमत्र विचक्षणः ॥ २४ ॥ अर्थ-दो पल की 'प्रसूति' होती है । उसी को प्रसृत भी कहते हैं। दो प्रसतिकी एक 'अञ्जलि' होती है। उसी को 'कुडव', 'पाव सेर' 'अर्धशरावक' और 'अष्टमाननी' कहते हैं । दो कुडव की एक 'मानिका' होती है । उसको 'शराव' + और 'अष्टपल' भी कहते हैं।
प्रस्थ और आढक का परिमाण । शरावाभ्यां भवेत्तस्थः चतुःप्रस्थैस्तथाढकम् । .
भाजनं कंसपात्रं च चतःषष्टिपलं च तत् ।। २५ ।। अर्थ-दो शराव का एक 'प्रस्थ'-सेर होता है । चार सेर का एक 'आढक' होता है । उसको 'भाजन' और 'कंसपात्र' भी कहते हैं । यह चौसठ पल का होता है। द्रोण से लेकर द्रोणी पर्यन्त का परिमाण ।
चतुर्भिराढोणः कलशोनल्बणोन्मनौ । उन्मातश्च घटो राशिट्टैणपयायसंज्ञकाः ॥ २६ ॥ द्रोणोभ्यां शूर्पकुम्भी च चतःषष्टिशरावकाः ।
शूपाभ्यां च भवेद्रोणी वाहो गोणी च सा स्मृता ।। २७॥ अर्थ-चार आढक का एक 'द्रोण' होता है । उसको 'कलश', 'घट' और 'राशिभी कहते हैं । दो द्रोण का 'सूर्प'-सूप होता है। उसको 'कुभ' भी कहते हैं। उस सूर्पके चौंसठ शराव होते हैं । एव दो सूर्प की एक 'द्रोणी' होती है । उसको 'वाह' और 'गोणी' भी कहते हैं !
खारी का परिमाण । द्रोणीचतुष्टय' खारी कथिता मूक्ष्मबुद्धिभिः ।
चतुःसहस्रपलिका पएणबत्यधिका च सा ॥ २८ ॥ अर्थ--चार द्रोणी की एक 'खारी' होती है। उसके चार हजार छयानवे पल होते हैं।
भार और तुला का परिमाण । पलानां द्विसहस्र च भार एकः प्रकीर्तितः ।
तुला * पलशतज्ञ या सर्वत्र वैष निश्चयः॥ २६ ॥ नोट+:-१२८ टंक का एक शराव होता है। नोट:-तुला पलशतं तासां विंश, तर्भार उच्यते । खारी भारद्वये नैव स्मृता षड् भाजनाधिका ॥
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