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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
परमाणु के लक्षण । जालान्तर्गते भानौ यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः ।
तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणुः सः उच्यते ॥ १६ ॥ अर्थ-जाली झरोखे में सूर्य की किरण उड़ते हुए दीखते हैं उस रज के तीसवें भाग को 'परमाणु' कहते हैं ।
मरीचि आदि का परिमाण । षड्वंशीभिर्मरीची स्यात्ताभिः पभिस्तु राजिका ।
तिसभी राजकाभिश्च सर्पपः पोच्यते बुधैः। ___ यवोऽष्टसर्पपैः प्रोक्तो गुजा स्याच्च चतुष्टयम् ॥ १७ ।। अर्थ-छह वंशी की एक 'मरीची', जो रेतीली जमीन में धल के बारीक कण सूर्य की किरणों से चमकते हैं, होती है । छह मरीचियों की एक 'राई', तीन राई को एक सफेद सरसों होती है, अाठ सफेद सरसों का एक 'यव' होता है और चार यव की एक 'गुञ्जा'-'रत्ती'-'घोघची' होती है।
मासे का परिमाण । पभिस्त रत्तिकाभिस्स्यान्माषको हेमधान्यको । अर्थ-छह रत्ती का एक 'मासा' होता है* । उसको 'हम' और 'धान्यक' भी कहते हैं।
शाण और कोल का परिमाण । मायुश्चतभिः शाणः स्यात् हरणः स निगद्यते ॥ १८ ॥ टंकः स एव कथितस्तवयं कोल उच्यते।
तद्रभो चटकश्चैव द्रंक्षणः स निगद्यते ॥१६॥ अर्थ-चार मासे का 'शाण' होता है उसको 'हरण', 'टंक' भी कहते हैं । जहां जहां मासा श्रावे वहां वहां छह रत्तीका मासा जानना । दो शाण का एक 'कोल होता है। उसको 'क्षुद्रम', 'वटक', और 'क्षण' भी कहते हैं। कोल नाम वेर का है, उसके बराबर होने से इस मान की कोल संशा रक्खी है। नोटः-कोई पांच रत्ती का, कोई सात रत्ती का और कोई दस रसी का भी ‘मासा'
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