________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५
[ उत्तरार्धम् ] अर्थ-दो हजार पल का एक 'भार' होता है और सौ पल की एक 'तुला' होती है । यह तोल केवल मगध देश में ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण देश में मानी जाती है।
सब मानों का परिमाण । मापटंकाक्षविल्वानि कुडवः प्रस्थमाढकम् ।
राशिर्गोणी खारिकेति यथोत्तरचतुर्गुणा ॥ ३० ॥ अर्थ--मासे से लेकर खारी पर्यन्त एक से दूसरी तोल चौगुनी जाननी चाहिये । जैसे ४ मासे का एक शाण, ४ शाण को एक कर्ष, ४ कर्ष का एक बिल्व, ४ विल्व की एक अञ्जलि, ४ अञ्जलि का एक प्रस्थ.४ प्रस्थ का एक आढक, ४ आढक की एक राशि, ४ राशि की एक गोणी, ४ गोणी की एक खारी और इसी प्रकार आगे भी एक मान से दूसरी तौल चौगुनी जाननी चाहिये । गीली, सूखी और दूध आदि पतली वस्तुओं का परिमाण
गुजादिमानमारभ्य यावत्स्यात्कुडवस्थितिः । द्रवाशुष्कद्र ब्याणां तावन्मानं समं मतम् ।। ३१ ॥ प्रस्थादि मानमारभ्य द्विगुणं तवाद्योः ।
मानं तथा तुलायास्तु द्विगुणं न कचिन्मतम् ॥ ३२ ॥ अर्थ-जल श्रादि पतले पदार्थ तथा गीली औषधि लेनी हो तो प्रस्थ से लेकर तुला पर्यन्त इनकी तोल सूखी औषधि की अपेक्षा दुगुनी लेवे तथा तुला से लेकर द्रोण पर्यन्त इनको दुगुना लेवे, अतएव इनका मान सूखी औषधि के समान लेवे । इस अभिप्राय को स्नेहपाक में प्रायः मानते हैं। तत्काल की लाई हूई औषधि को गीली कहते हैं । जो धूप में सुखा ली हो अथवा बहुत दिन की रक्खी हुई हो उस औषधि को शुष्क कहते हैं ।
कुडव पात्र बनाने की रीति । मृ दस्तुबेणुलोहादेर्भाण्डं यच्चतुरङ गुलम् ।
‘विस्तीर्णं च तथेच्चं च तन्मानं कुडवं बदेत् ॥ ३३ ।। नोट:-रक्तिकादिषु मानेषु यावत्र कुलयो भवेत ! शुष्कदव्यागोस्तावत्ता मानं प्रकीर्तिम् ॥१॥
प्रस्थादिमानमारभ्य द्रव्यादिगिगारिला । कुतोऽपि कचिद् हः यथा दन्ती धृते मतः ॥२॥ शुप्कद्रव्यस्य या मात्रा वा स्य द्विगुणा हि सा । शुष्कस्य गुरुतीक्ष्णत्वात्तस्माद) प्रयोजयेत् ॥३॥
For Private and Personal Use Only