Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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जाकर अन्यत्र बसे हैं। अगरोहा से चलकर अग्रवालों ने जो बस्तियां बसाई, उन में महिम प्रमुख थी। वहां के अग्रवाल महमिये कहाने लगे । यद्यपि अब वे महिम से निकल कर अन्य स्थानों पर जा बसे हैं, पर महमिये ही कहते हैं ! इसी तरह, भटिण्डे के आसपास के निवासी जांगले, हरियाना के निवासी हरियानिये, बांगड़ के निवासी बांगड़ी, सहराला ( जिला लुधियाना ) के निवासी सहरा लिये, लोहागढ़ ( जिला रोहतक ) के निवासी लोहिये कहाने लगे । ये सब भेद केवल देश भेद के कारण
हैं । इनके अतिरिक्त मेवाड़ी, काइयां आदि अन्य भी कई भेद देश भेद
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के कारण हुये हैं । यह ध्यान रखना चाहिये, कि इन सब अग्रवालों में परस्पर खान-पान तथा विवाह सम्बन्ध होता है, और इन में रहन-सहन तथा रीति-रिवाज का जो भी भेद है, वह केवल पृथक् प्रदेशों में देर तक बसे रहने के कारण ही है ।
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(२) धर्म-भेद से अग्रवालों के मुख्य भेद जैन, वैष्णव और शैव हैं । अग्रवालों का मुख्य भाग सनातन हिन्दू धर्म का अनुयायी है । हिन्दू अग्रवालों में अधिकांश परिवार परम्परागतरूप से वैष्णव धर्म को मानते हैं । पर कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो शैव हैं। पर शैव अग्रवाल भी मांस मदिरा का सेवन नहीं करते, अहिंसा धर्म का पालन करते हैं, और जीवन की वैयक्तिक पवित्रता तथा आचार-विचार में वैष्णव अग्रवालों के सदृश ही हैं। वस्तुतः, शैव तथा वैष्णव अग्रवालों में कोई भारी भेद नहीं है । मध्यकाल में स्वामी रामानन्द, तुलसीदास आदि सन्त महात्माओं ने हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदायों में समन्वय करने की जिस लहर का प्रारम्भ किया था, उसका प्रभाव अग्रवालों पर पूरी तरह से है । वे
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