Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल-जाति
समुद्र तट के बन्दरगाहों को जाता था, वह मारवाड़ में से गुजरता था। इस व्यापारिक रास्ते में मारवाड़ ठीक बीच में पड़ता था। दिल्ली आने जाने वाले सभी यात्री यहां ठहरते तथा इस आधे रास्ते के पड़ाव ( Half ray house) में विश्राम करते थे । यही कारण है, कि मार. वाड़ के निवासियों को व्यापार के क्षेत्र में उन्नति करने का अपूर्व अवसर मिला । मारवाड़ी अग्रवालों ने भी इस अवसर का पूरा लाभ उठाया और उन में उस अपूर्व व्यापारिक प्रतिभा का विकास हुआ, जिसके कारण वे आज भारत में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । दूसरे अग्रवालों से पृथक् मारवाड़ के सुदूर मरुस्थल में बस जाने के कारण उन में कुछ अपनी पृथक् विशेषताओं का विकास हुआ। उनकी बोलचाल, रहन सहन तथा रीति रिवाज़ों में भेद आगया और वे दूसरे अग्रवालों से कुछ पृथक से हो गये । इसी कारण वे दूसरे अग्रवालों से विवाह सम्बन्ध करने में भी संकोच करने लगे । पर मारवाड़ी तथा दूसरे अग्रवालों में कोई वास्तविक भेद नहीं है । इसीलिये आज उनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध भी होने लगे हैं, और उन में खान-पान में भी किसी तरह का विशेष परहेज नहीं रह गया है । देशवाली वा वैश्य अग्रवालों में भी देश भेद से पुरबिये तथा पछाइये का भेद है । पर यह भेद केवल पूरब में रहने वाले अग्रवालों में है। पूर्वी संयुक्तप्रान्त तथा बिहार में जो अग्रवाल कई सदियों से रह रहे हैं, वे अपने को पुरबिये कहते हैं । इन प्रदेशों में जो अग्रवाल अभी पिछली डेड़ दो सदी से आये हैं, उन्हें पछाइये कहा जाता है । दूसरे देशवाली अग्रवालों में भी महमिये, जांगले, हरियालिये, बांगड़ी, सहरालिये, लोहिये आदि कई भेद हैं । महमिये अग्रवाल वे हैं, जो महिम से
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