Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
अायणे-१
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४७)
तस्स सव्वस्स तिविहेण वाय मणसा य कम्पुणा नी सल्लं सव्वभावेणं दाउं मिच्छामि दुक्कडं (४८) पुणो वि दीयरागाणं पडिमाओ चेइयालए पत्तेयं संधुणे वंदे एगग्गो पत्ति-निष्परो (४९) वंदित्तु चेइए सम्म छुट्टभमत्तेण परिजवे इमं सुयदेवयं विज्रं लक्खहा चेइयालए (५०) उवसंतो सव्वभावेणं एगचित्तो सुनिच्छिओ आउतो अव्ववक्खित्ती रागरइ-अरइ-बजिओ (५१) अउम् न् अ म् ओ ओ अ ध् उ द्ध ई ण् अ म्, अ उम् न् अ म् ओ प्अ य् आ ण् उ स् आ इ ई ण् अम्, अ उम्ण् अ म् ओ स् अ म् म् इण्णू अस् ओई ण् अ म् अ उम् न् अ म्ओ खुई आसव्वलद्ध ई ण् अ म्, अ उम् न् अ म् ओ सव्व् ओ सहिल दुई ण् अ म्
॥४७॥
अ उम् न् अ म् ओ अक्ख्ई ण् अ म् अ आणस लद्ध ईण् अ म्, अ उ म् ण् अ म् ओ भगवओ अरहओ महइ महावीरवद्धमाणस्स धम्मतित्थंकरस्स अउम् णम् ओ सव्व धम्मतित्यंकराणं अउम् ण मूओ सव्व सिद्धाणं अउम् ण मूओ सव्य साहूणं अउम् गम्ओ भगवतो मइ न् आ णस्स अउम् गम्ओ भगवओ सुय ण् आणस्स अउम् ण्अम् ओ भगवओ ओहइन् आणस्स अउम् ण् अ प् ओ भगवओ मणपञ्जव ण् आ णस्स अउम्णम् ओ भगवओ कू ए वलण् आ णस्स अउम् ण मूओ भगवतीए हुय दूए य्अ य् आए सिज्झउ म्ए सु य् आ हि वा [एसा महा] विजा अउम् ण मूओ भगवओ अउम् ण मूओ वअम् अउम् ण् अम् ओ अउम् णम् ओ आ औ अभिवत्तीलक्खणं सम्पद्दंसणं अउम् णम्ओ अट्टआ र स् अ स्ई त् अम् ग-सहस्साहिडियस्स ण्ई स्अम ग ण्इ ण्ण्इ य् आ ण् अ णूई सल्ल ण् इ भय सल्लगत्तण सूअ अ ण्ण सव्यदुक्खनिम्महण-परमनिव्वुइकरस्स णं पवयणस्स परमपवित्तुमस्सेति
ॐ नमो कोट्ठबुद्धीणं ॐ नमो पयानुसारीणं ॐ नमो संभिण्णसोईणं ॐ नमो खीरासवलद्वीणं ॐ नमो सव्वोसहिलद्वीणं ॐ नमो अक्खीणमहानसलद्धीणं ॐ नमो भगवओ अरहओ महइमहावीरवद्धमाणस्स धम्मतित्यंकरस्स ॐ नमो सव्वधम्मतित्यंकराणं ॐ नमो सव्वसिद्धाणं ॐ नमो सव्यसाहूणं ॐ नमो भगवतो मइनाणस्स, ॐ नमो भगवओ सुयनाणस्स, ॐ नमो भगवओ ओहिनाणस्स ॐ नमो भगवओ मणपज्जवनागस्स ॐ नमो भगवओ केवलनाणस्स नमो भगवतीए सुयदेवयाए सिज्झउ मे सुयाहिदा विखा ॐ नमो भगवओ ॐ नमो वं ॐ नमो ॐ नमो आ औ अभिवत्ती लक्खणं सम्मद्दंसणं ॐ नमो अट्ठारससीलंगसहस्साहिट्टियस्स नीसंगणिण्णियाण नीसल्लनिमय सल्लगत्तण सरण्ण सव्वदुक्ख निम्महण-परम-निव्वुइकरस्स णं पवयणस्स परम पवित्तुत्तमस्सेति |४|
॥४४॥
For Private And Personal Use Only
॥४५॥
॥४६॥
५
(५२) एसा बिजा सिद्धतिएहिं अक्खरेहिं लिखिया एसा य सिद्धंतिया लीवी अपुणियसमयसम्मावाणं सुयधरेहिं णं न पण्णवेयच्या तह य कुसीलाणं च ॥५॥
(५३) इमाए पवर- विज्जाए सव्वहा उ अत्ताणगं अहिमंतऊण सोवेजा खंतो दंतो जिइंदिओ
॥४८॥

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 154