Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० महानिसीहं - ८/-/१४८४ पाणाईणं तु चउव्विहेणेव राईमोयणच्चाओ उग्गमुप्पायणेऽसणाईसु णं सुविसुद्धपिंड गहणं संजोयणाइ पंच-दोस - विरहितएणं परिमिएणं काले भिन्ने पंच-समिति - विसोहणं ति-गुत्ती-गुत्तया इरिया - समिईमाइओ भावणाओ अणसणाइतवोवहाणाणुद्वाणं मासाइभिक्खु-पडिमाओ विचित्ते दव्याई अभिग्गह अहो णं भूमी सयणे केसलोए निप्पडिकम्प- सरीरया सव्व कालमेव गुरुनिओगकरणं खुहा-पिवासाइपरिसहहियासणं दिव्वाइउवसग्गविजओ लद्धावलद्धवितिया किं बहुजा अञ्चंत दुव्यहे भो वहियव्वे अवीसामंतेहिं चैव सिरिमहापुरिसत्तवूढे अट्ठारस-सीलंगसहस्सभारे तरियच्वे य भो बाहाहिं महासमुद्दे अविसाईहिं च णं भो भक्खियव्वे निरासाए वालुयाकवले परिसक्केयव्वं च भो निसियसुतिक्खदारुण-करवालधाराए पायव्वा य णं भो सुहयहुयवह जालावली भरीयव्वे णं भो सुहुम-पवण-कोत्थलगे गमियव्वं च णं भो गंगा-पवाहपडिसोएणं तोलेयव्वं भो साहस- तुलाए मंदर-गिरं जेयव्वे य णं भो एगागिएहिं चेव धीरत्ताए सुदुञ्जए चाउरंग-बले विधेयव्वा णं भी परोप्पर-विवरीय-ममंत अट्ठ-चक्कोवरिं वामच्छिम्मि उ धीउल्लिया गयव्वणं मो सयल-तिहुयण- विजया निम्मला जस- कित्ति -जय पडागा ता भो भो जणा एयाओ धम्मागुडाणाओ सुदुक्करं नत्थि किंचि मन्नं ति ॥१-१ ( १४८५) बुज्झंति नाम भारा ते चिय उज्झति वीसमंतेहिं सील - परो अइगरुओ जायञ्जीवं अविस्तामो (१४८६) ता उज्झिऊण पेम्मं घरसारं पुत्त-दविणमायं नीसंगा अविसाई पयरह सव्युत्तमं धम्मं (१४८७) नो धप्पस्स भडकूका उक्कंचण-वंचणा च दवहारो निच्छम्मो मो धम्पो मायादी सल्ल-रहिओ हु (१४८८) भूएसु जंगमत्तं तेसु वि पंचेदियत्तमुक्कोसं सुविय माणुसतं मयत्ते आरिओ देसो (१४८९) देसे कुलं पहाणं कुले पहाणे य जाई-मुक्कोसा तीए रूव-समिद्धी रूवे य बलं पहाणयरं (१४९०) होइ बले चिय जीयं जीए य पहाणयं तु विष्णाणं दिण्णाणे सम्मत्तं सम्मत्ते सील-संपत्ती (१४९१) सीले खाइय-भावो खाइय-भावे य केवलं नाणं केवलिए पडिपुत्रे पत्ते अयरामरो मोक्खो (१४९२) नय संसारम्मि सुहं जाइ - जरा भरण- दुक्ख-गहियस्स जीवस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाओ उ (१४९३) आहिंडिऊण सुइरं अनंतहुतो हुजोणि-लक्खेसु तस्साण सामग्गी पत्ता भो भो बहू इहि (१४९४ ) ता एत्थ जं न पत्तं तदत्य मो उज्जमं कुणाह तुरियं विबुह- -जण-निंदियमिणं उज्झह संसार - अनुबंध For Private And Personal Use Only 11911 ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ||21| 11811 119011

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