Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अय-८: बिया चूलिया
नगे साणं सुहाएस णं जामाउगे एसा णं माया एस णं जणगे एसो भत्ता एस णं इट्ठे मिट्ठेपिए-कंते सुही सयण मित्त-बंधु-परिवग्गे इह पचक्खमेवेयं वि दिने अलिय-मलिया चेवेसा बंधवासास कजयी चैव संभयए लोओ परमत्यओ न केइ सुही जाव णं सकजं ताव णं माया ताव
जगे तावणं धूया तावणं जामाउगे ताव णं नत्तुगे ताव णं पुत्ते ताव णं सुण्हा ताव णं कंता ताब णं इट्ठे मिट्ठे पिए कंते सुही-सयण-जण मित्त-बंधु-परिवग्गे सकज्जसिद्धी विरहेणं तु न कस्सई काइ माया न करसई केइ जणगे न कस्सई काइ धूया न कस्सई केइ जामाउगे न कस्सई के पुत्ते न कस्सई काइ सुण्हा न कस्सई केई भत्ता न कस्सई केइ कंता न करूंई केइ इट्ठे मिट्ठे पिए-कंते-सुहीसयणजण मित्त-बंधु-परिवग्गे जे गं ता पेच्छ पेच्छ मए अणेगोवाइयसउलद्धे साइरेग-नव-मासे कुच्छीए वि धारिऊणं च अणेग-मिट्ठ- महुर-उसिण- तिक्ख गुलिय-सद्धि- आहार-ययाण-सिणाणउव्वट्टण-धूयकरण-संबाहण-यत्र पयाणईहि णं एमहंत मणुस्सीकए जहा किल अहं पुत्त- रजम्मि पुत्र पुत्र - मनोरहा सुहं सुहेण पणइयण पूरियासा कालं गपिहामि ता एरिसं एवं वइयरं ति एयं च नाऊणं माधवाईसुं करेह खणद्धमवि अणुं पि पडिबंधं जहा णं इमे मज्झ सुए संवुत्ते तहा णं गेहे गेहे जेके भए जे केई वट्टति के केई भविसु सुए तहा वि एरिसे वि बंधु-वग्गे केवलं तु स-कज-लुद्धे चेव घडिया मुहुत्त परिमाणमेव कंचि कालं भएज्जा वा ता भो भो जणा न किंचि कर्ज एतेणं कारिम-बंधुसंताणेणं अनंत-संसार-घोर दुक्ख-पदायगेणं ति एगे चेवाहनिसाणुसमयं सययं सुविसुद्धासए भयह धम्मे, धम्मे यणं इसे पिए कंते परमत्ये सुही-सयण मित्त-बंधु-परिवग्गे धम्मे य णं हिट्टिकेरे धणं पुरे धणं बलकरे धम्मे य णं उच्छाहकरे धम्मे य णं निम्मल- जस- कितीपसाहगे धणं माहप्पण धम्मे य णं सुद्ध-सोक्ख-परंपरदायगे से णं सेव्वे से णं आराहणिजे से यणं पोसणिज्जे से य णं पालणिज्जे से य णं करणिजे से य णं चरणिजे से य णं अनुवणिज्जे से य णं उबइस्सणि से य णं कहणिजे से य णं भणणिज्जे से य णं पन्नवणिजे से य णं कारवणिज्जे से य णं धुवे सासए अक्खए अव्यए सयल सोक्ख-निहीघम्मे से य णं अलज्जणिजे से य णं अउल-बलबीरिए सरिय-सत्त- परक्कम संजुए पवरे घरे इडे पिये कंते दइए सयल- दुक्ख-दारिद्द-संतायुवेगअयस-अब्मक्खाण-जम्म-जरा-मरणाइ-असेस-मय-निवासगे अणण्ण-सरिसे सगहाए तेलोक्केक्कसामिसाले, ता अलं सुही-सयण- जण- मित्त-बंधुगण-धण-धण्ण-सुवण्ण-हिरण्ण-रयगोहनिही-कोस-संचयाइ सक्क- चाव-विजुलयाडोवचंचलाए सुमिनिंदजाल - सरिसाए खण-दिट्ठ-नट्ठभंगुरा अधुवाए असासयाए संसार - वुड्ढि - कारिगाए निरयाचयारहेउभ्याए सोग्गइ-मग्ग-विग्धदायगाए अनंत- दुक्ख-पदायगाए रिद्धीए सुदुल्ला खलु भो धम्मस्स साहणी सम्म- दंसण-नाइणचारिताराहणी निरुत्ताइ- सामग्गी- अणवरय- महन्निसाणुसमएहिं णं खंड-खंडेहिं तु परिसडइ आउं दढ-घोर-निराज्झ चंडा जरासणिसष्णिवाया संचुण्णिए सयजञ्जरमंडगे इव अकिंचिकरे अवइ उ दियगादियगेणं इमे तणी किसल-दलग्ग- परिसंठिय-जल-बिंदुमिचाकंडे निमिसद्धमतरेणेव लहुं ढलइ जीविए अविढत्त-परलोगपत्ययणाणं तु निष्फले चैव मणुयजम्मे ता भो न खमे तणुतणुयतरे बि ईसिपि पमाए, जओ णं एत्यं खलु सव्वकालमेव समसत्तु मित्त-भावेहिं भवेयव्वं- अप्पमत्तेहिं च पंच महव्व धारियव्वे तं जहा- कसिणपाणाइवायविरती अणलिय-मासितं दंत-सोहणमेत्तस्सवि अदिन्नस्स वज्रणं मणो वइ-काय जोगेहिं तु अखंडिय - अविराहिय-नव-गुत्ती - परिवेढियस्स णं परपवित्तरस सव्वकालमेव दुद्धर बंभचेरस्स धारणं वत्य- पत्तं संजमोवगरणेसुं पि निष्मत्तया असण
3919
For Private And Personal Use Only
१२९

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154