Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(८७०) तेण वि भवियव्ययं एयं कलिऊणेयं पभाणियं जहा जाते विही इट्ठा तीए दव्वं पयच्छसु (८७१) गहिऊणाभिग्गहं ताहे पविट्ठी तीए मंदिरं
एवं जहा न ताव अहयं न भोयण- पाण-विहिं करे (८७२) दस-दस न बोहिए जाव दियहे अणूणगे
पइण्णा जान पुत्रेसा काइय-सोक्खं न ता करे (८७३) अन्नं चन्न मे दायव्या पव्वज्जीवस्सि वि
जारिसगं तु गुरूलिंगं भवे सीलं पि तारिसं (८७४) अक्खीणत्थं निही काउं लुंचिओ खोसिओ वि सो तहाराहिओ गणिगाए बद्धो जह पेम-पासेहिं (८७५) आलावाओ पणओ पणयाओ रती रतीए वीसंभो वीसंभाओ नेही पंचविहं वड्ढे पेम्पं
(८७६) एवं सो पेम्म-पासेहिं बद्धो वि सावगत्तणं होवइ करेपाणी दस अहिए वा दिने दिने (८७७) पडिबोहिऊणं संविग्गे गुरु पामूलं पयेसई संपयं बोहिओ सो वि दुम्हेज जहा तुमं (८७८) धम्मं लोगस्स साहेसि अत्त- कजम्मि मुज्झसि नूणं विक्केणुयं धम्मं जं सयं नाणुचेट्ठसि (८७९) एवं सो वयणं सोचा दुम्मुहस्स सुभासिय थरथरस्स कंपंतो निंदिउं गरहिउं चिरं (220) हा हा हा अकज्जं मे पट्ट-सीलेण किं कयं
जेणं तु मत्तोऽघसरे डिओऽसुइ किमी जहा (८८१) धी धी धी अहन्नेणं पेच्छ जं मेऽणुचिट्ठिय
जन- कंचन-समुऽत्ताणं असुइ-सरिसं मए कयं (८८२) खण-भंगुरस्स देहस्स जा विवत्ती णं मे भवे
ता तित्थयरस्स पामूलं पायच्छित्तं चरामिऽहं (८८३) एस मा गच्छती एत्वं चिताणेव गोयमा
घोरं चरिऊणं पच्छितं संदिग्गोऽम्हेहिं पासिउं (८८४) घोर-वीर तवं काउं असुहं-कम्मं खवेत्तु य
सुक्कज्झाणे समारुहिउं केवलं पप्प सिज्झिही (८८५ ) ता गोयममेय-नाएणं बहु-उबाए वियारिया
लिंगं गुरुस्स अप्पेउं नंदिसेणेणं जहा कयं (८८६) उस्सग्गं ता तुमं बुज्झ सिद्धतेयं जहट्ठियं तवंतरा उदयं तस्स महंतं आसि गोयमा (८८७) तहा विजा विसए उइण्णे तवे घोरं महातवं अट्ठ- गुण तेणमणुचित्रं तो बी विसए न निज्जिए
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महानिसीहं ६//८७०
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