Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 116
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ ॥३७६॥ ।।३७८॥ ॥३८२॥ अन्त्य (१३१५) पुणोतं एवं पुच्छंमी तित्यकरे चउन्नाणी ससुरासुर-जगपूइए निछियं सिन्झियव्ये वितमिज न अन्न-जम्मे (१११६) तहावि अणिगृहिता बलं विरियं पुरिसायार-परक्कम उग्गंकई तवं धोरंदुक्कर अनुचरंतिते ॥३७७॥ (१५१७) ता अण्णेसु विसत्तेसु चउगइ-संसार-घोर-दुक्ख-भीएसुजंजहेव तित्ययरा भणंति, तं तहेव समगुडियध्वं गोयमसब्बंजहडियं (१३१८) जंपुण गोयम ते भणियं-परिवाहिए कीरइ अत्यक्के-हुडि-दुद्धेणं कशं तं कत्य लब्मए ॥३७९॥ (१३११) तत्थ वि गोयम दिद्रुतं महासमुद्दम्मि कच्छमो ___ अन्नेसि मगरमादीणं संघट्टा-भीउद्दुओ ॥३८॥ (१३२०) बुङ निबुकरेमाणो सबली शालोग्झलि पेल्ला-पेल्लीए कत्थई उल्लरिजंतो तहोनासंतो धावितो पलायंतोय दिसोदिसिं ॥३८॥ (१५२१) उच्छल्लं पच्छालं हिलणं बहुविहंतहि । ___ असहंतो ठाम अलहंतोखण-निमिसं पिकत्या (१५२२) कह कह विदुक्ख-संतत्तोसुबाहु-कालेहिं तंजलं अवगाहिती गो उवरिपउमिणी-संडं सघणं ||३८३॥ (१३२३) छिडं महया किलेसेणं लटुंता जत्थ पेच्छई गह-नक्खत्त-परियरिय कोमुइ-चंदं खहेऽमले (११२४) दिप्पंत-कुवलय-कलारं कुमुय-सयवत्त-वणफई कुरिलिते हंस-कारंडे चक्कवाए सुणेइया (११२५) जमदिटुं सत्तसुवि साहासु अब्युयं चंदमंडलं तंदटुं विम्हिओखणं चिंतइ एयंजहा होही ॥३८॥ (१५२३) एयंत सगं ताहंबंधवाण पयंसिमो बहु कालेणं-गवेसेउते घेत्तूण समागो ॥३८७॥ (११२७) घनघोरंघयार-यणीए पदव-किण्ह-वउहसिहिंतु नपेछे जावतं रिद्धि बहुकालं निहालिउं ॥३८८॥ (११२८) पुण कच्छमोजाओ तहा वितं रिद्धिं नपेच्छए एवं चउगई-भव-गहणे दुलभे माणुसत्तणे (१३२९) अहिंसा-लक्खणं धर्म लहिऊणंजो पमायइ सो पुण बहु-भव-लखेसुदुक्खेहि माणुसत्ताणं लटुंपिन लमई धम्मं तं रिद्धिं कच्छमो जहा ॥३९॥ (१३५०) दियहाई दो व तिष्णि व अद्धाणं होइ जंतुलग्गेण सव्यायरेण तस्स विसंवलयं लेइ पवसंतो ॥३९॥ (१५३१) जो पुण दिह-पवासो चुलसीई जोणि-लक्ख-नियमेणं तस्स तब-सील-मइयं संवलयं किं न चिंतेह (१५३२) जहजह पहरे दियहे मासे संवच्छोयबोलेंति तह तह गोयम जाणसुदुक्के आसत्रयं मारणं ॥३९३॥ ||३८४॥ ॥३८५॥ |३८९॥ ॥३९२॥ For Private And Personal Use Only

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