Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 118
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अायणं-६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३५१) सुर-धनु-विजू - खग-दिट्ठ-नट्ठ- संझाणुराग - सिमिण समं देहं इंति तु पणइ-आमयभंड व जल-भारियं (१३५२) इय जाव न चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स घोरं चर तवं नत्थि परिवाडि (१३५३) गोयमा त्ति वास - सहस्सं पि जई काऊणं संजमं सुविउलं पि अंते किलिङ-भावो न विसुज्झइ कंडरिओ व्व (१३५४) अप्पेण वि कालेणं केइ जहा गहिय-सील - सामन्ना सार्हिति नियय-कळं पोंडरिय-महा-रिसि व्य जहा (१३५५) न य संसारम्मि सुहं जाइ-जरा-मरण - दुक्ख - गहियस्स जीवरस अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाए उ ॥४१६॥ (१३५६) सब्द पयारेहिं सव्वहा सव्व-भाव-भावंतरेहिं णं गोयमा त्ति बेमि । ४१६-१ गीयत्व - विहारनामं-अज्झयणं समत्तं सत्तमं अज्झयणं-पच्छित्तसुत्तं -: प ८ मा चू लिया-ए गंत निज रा : (१३५७) भयवं ता एय नाएणं जं भणियं आसि मे तुमं (१३५८) हवइ गोयम पच्छित्तं जइ तुमं तं आलंबसि नवरं धम्म विपारो ते कओ सुदियारिओ फुडो (१३५९) न होइ एत्थ पच्छितं पुनरवि पुच्छेज्जा गोयमा संदेहं जाव देहत्थं मिच्छतं ताव निच्छयं (१३६०) मिच्छत्तेण य अभिभूए तित्ययरस्त अवि भासियं वयणं लंघित्तु विवरीयं वाएत्ताणं (१३६१) पविसंति घोरतम तिमिर-बहलंघयारं पायालं नवरं सुवियारियं काउं तित्थयरा सयमेव य भणति तं तहा घेव गोयमा समणुट्ठए (१३६२) अत्येगे गोयमा पाणी जे पव्वजिय जहा तहा अविहीए तह चरे धम्मं जह संसारा न मुच्चए (१३६३) से भयवं कयरे णं से विही- सिलोगो गोयमा इमे णं से विहि-सिलोगो तं जहाचिइ-वंदण-पडिक्कमणं जीवाजीवाइ-तत्त-सदभावं समि- इंदिय- दम-गुत्ति कसाय-निग्गहणमुवओगं (१३६४) नाऊण सुवीसत्यो सामायारिं किया-कलावं च आलोय नसलो आगमा परम-संविग्गो (१३६५) जम्म-जर-मरण-भीओ चउ- गइ संसार-कम्म-दहणठ्ठा पइदियहं हियएणं एवं अणवरय-झायंतो (१३६६) जरमरण-मयर-पउरे रोग-किलेसाइ-बहुविश्-तरंगे कम्मल कसाय-गाह - गहिर - मव- जलहि मज्झम्मि ॥१४१२ ॥ For Private And Personal Use Only ॥४१३॥ जहा परिवाडिए तचं किं न अक्खसि पायच्छितं तत्थमज्झवी ॥ १ ॥ ॥४१४ ॥ 1189411 ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ 11911 let llll 119011 १०९

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