Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१२२
महानिसीह - 9/1१४०३
||२६
1॥२८॥
||२९॥
॥३१॥
॥३२॥
पडिगाहित्ताणं तह ति सपणुट्ठीया सन्दुत्तमं संजम-किरियं समणुपालेजा तिं जहा]।२०। (१४०३) कयाइं पावाइंइमाइंजेहिं अट्ठी न बन्झए
तेसिं तित्ययरवयणेहि सुद्धी अम्हाण कीरउ (१४०) परिचिचाणं तयं कम्मं घोर-संसार-दुक्खदं
मणो-वय-काय-किरियाहिं सीलपारं घरेमि अहं ||२७|| (१४०५) जह जाणइ सव्यनू केवली तित्यंको
आयरिए चारितड्ढे उवग्झाए यसुसाहुणो (१४०६) जह पंच-लोयपाले य सत्ताधमे यजाणए
तहाऽऽ लोएमि हं सव्वं तिलमेत्तं पिण निहवं (१४०७) तस्येवजं पायच्छित्तं गिरिवरगुरुयं पि आवए
तमनुचरेमि दे सुद्धिं जह पाये प्रति विलिजए ||३०|| (१४०८) मरिऊणं नरय-तिरिएतु कुंभीपाएसु कत्थई
कत्यइ करवत्त-जंतेहिं कत्यइ भिण्णो हु सूलिए (१४०१) घसणं घोलणं कहिम्मि कत्थई छेयइ-भेपणं
बंधणलंघणं कहिम्मि कस्थइ दमण-मंकणं (१४१०) नत्थणं वाहणं कहिम्मि कत्यइ घहण-तालणं
गुरु-मारक्कमणं कहिँचि कत्यइ जमलार-विंधणं (१४११) उर-पट्टि-अट्ठि-कडि-मंग पर-वसो तोहं-छुई
संतावुब्वेग-दारिदं विसहीहामि पुणो विहं (१४१२) ता इहइंचेव सब्बं पि निय-दुद्यारियं जह-ष्ट्रिय
आलोएतानिंदित्ता गरहित्ता पाच्छित्तं चरितुणं (१४१३) निहहेमि पावयं कम्मं प्रत्ति संसार-दुक्खयं अद्वित्ता तवं घोरं-धीर-वीर-परक्कम
॥३६॥ (१४१४) अश्चत्तं -कडयई कटुंदुक्करंदुरनुचरं
उपगुग्गयरं जिणामिहियंसयल-कल्लाण-कारणं ॥३७॥ (१४१५) पायच्छित्त-निमित्तेण पाण-संघार-कारयं आयरेणं तं तवं चरिमोजेणुल्भे सोक्खई तणुं
॥३८॥ (१४११) कसाए विहली कट्टइंदिए पंच-निगई पणोवई काय-दंडाणं निग्गहं घणियमारभं
॥३९॥ (१४१७) आसव-दारे निलंभित्ता चत्त-मय-मच्छर-अमरिसो
गय-राग-दोस-मोहो हंनिसंगोनिप्परिग्गहो
॥३४॥
॥३५॥
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