Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 103
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महानिसीई - 5/-११०५ 1॥१९॥ ||१७०11 11१७१॥ ||१७२।। ।।१७३।। ||१७४॥ ।।१७५|| ||१७|| ||१७७ (११०५) ता पडिगओ जिणिंदस्स सयासो जातं न अक्खई भुवणेसं जिनवरं तो चीगणहरं आसीय हिओ (११०६) परिनिव्युयम्मि भगवंते धम्म-तित्थंकरे जिने जिणाभिहियं सुत्तत्थंगणहरोजा परूवती (११०७) तावमालावर्ग एवं वक्खाणम्मि समागयं पुढवी काइगमेगं जो वायाए सो असंजओ (११०८) ताईसरो विचिंतेइ सहमे पुढचिकाइए सव्यस्थ उद्दविनंति को ताईरक्खिाउं तरे (११०९) हलुईकोइ अत्ताणं एत्यं एस महायसो असद्धेयं जणे सयले किमडेयं पवक्खई (१११०) अच्चंत-कडयड एयं बरखाण तस्स वी फुडं कंठसोसो परंलामे एरिसंकोऽणचिट्ठइ (११११) ता एवं विप्पमोतूणं सामनं किंचि मज्झिमं जंवा तं वा कहे धम्मंता लोओऽम्हाणाउद्दई (१११२) अहवा हा हा अहं मूढो पाव-कम्मी नराहमो नवरंजइ नाणुचिट्ठामि अण्णोऽणुचेद्भुती जणो (१११३) जेणेयमनंत-नाणीहिं सव्वन्नूहिं पवेदियं जो एयं अण्णहा वाए तस्स अट्ठो न बज्झइ (१११४) ताहमेयरस्स पच्छित्तं धोरमदुक्करं चरं लहुं सिग्धं सुसिग्ययरंजायमचून मे भवे (१११५) आसायणा कयं पावं आसुंजेण विहुव्वती दिव्वं वास-सयं पुत्रं अह सो पच्छित्तमनुचरे (१११६) तं तारिसं महा-घोरं पायछितं सयं-मती काउं पञ्चेयबुद्धस्स सयासे पुणो विगओ (१९१७) तत्या विजा सुणे वक्खाणं तावऽहिगारम्मिमागयं पुढवादीणं समारंभ साहू तिविहेण वजए (१११८) दढ-मूढो हुँछ जोईता ईसरो मुक्कपूओ विचिंतेवजहेत्थ जए को न ताईसमारभे (१११९) पुढवीए ताव एसेव समासीणो वि चिट्टइ अग्गीए रद्धयं खायइ सव्वं बीय समुडमवं (११२०) अन्नं च-विना पाणेणं खणमेक्कं जीवए कहं ___ ता किं पितं पवक्खे सजं पच्चुयमत्यंतियं (११२१) इमस्सेव समागच्छे न उणेयं कोइ सद्दहे तो चिट्ठउ ताव एसेत्यं वरं सो चेव गणहरो (११२२) अहदा एसोन सो मझं एकको वी भणियं करे अलिया एवंविहं धम्मं किंचुद्देसेण तं पिय ||१७८॥ ||१७९॥ 11१८०॥ ॥१८॥ ||१८२|| ॥१८३॥ १८४॥ ॥१८॥ ॥१८६॥ For Private And Personal Use Only

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