Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिसीहं - ६ // ११४१
(११४१ ) से भयदं का उण सा रज्जज्जिया किंवा तीए अगीयत्थ-अत- दोसेणं बाया - मेत्तेणि पिपावं कम्मं समज्जियं जस्स णं विद्यागऽयं सोऊणं नो धिदं लभेजा गोयमाणं इहेव भारहे वासे मद्दो नाम आयरिओ अहेसि तस्स य पंच सए साहूणं महाणुभागाणं दुवालस सए निग्गंधीणं तत्य य गच्छे चउत्थरसियं ओसायणं तिदंडोऽचित्तं च कढिओदगं विप्पमोत्तूणं चउत्थं न परिभुजई अण्णया रजा नामाए अजियाए पुव्यकप असुह-पाव-कम्मोदएण सरीरंग कुट्ट-वाहीए परिसडिणं किमिएहिं सुमद्दिसिउमारद्धं अह अन्नया परिगलंत - पूइ-रुहिरतणं तं रज्जज्जियं पासिया ताओ संजईओ भांति जहा हला हला दुक्करकारिगे किमेयं ति ताहे गोयमा पडिभणियं तीए महापावकम्पाए भागलक्खणजम्माए रजियाए जहा-एएण फासुग-पाणगेणं आविजमाणेणं विद्वं मे सरीरगं ति जावेयं पलवे ताव णं संखुहियं हिययं गोयमा सव्व-संजइ-समूहस्स जहा णं विवखामो फासुगपाणगं ति तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजतीए जहा णं-जइ संपयं चैव ममेयं सरीरगं एगनिमिसब्यंतरेव पडिसडिऊणं खंडहियं हिवयं गोयमा सव्व-संजइ-समूहस्स जहा णं बिज्जामो फासुगपाणगं ति तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजतीए जहा णं-जइ संपयं चैव ममेयं सरीरगं एगनिमिसब्धंतरेव पडिसडिऊणं खंडखंडेहिं परिसडेज्जा तहावि अफासुगोदगं एत्थ जम्मे न परिमुंजामि फासुगोदगं न परिहरामि अन्नं च किं सचमेयं जं फासुगोदगेणं इमीए सरीरगं विनद्वं सव्वा न सच्चमेयं जओ णं पुव्वकप असुह-पाव- कम्मोदएणं सव्वमेवविहं हवइ त्ति सुट्टयरं चिंतिउं पत्ता जहा णं जहा भो पेच्छ पेच्छ अन्नाण-दोसोवहयाए दढ-मूढ-हिययाए विगय लज्जाए इमीए महापावकम्माए संसार पोर- दुक्ख-दायगं केरिस दुट्ठवयणं गिराइयं जं मम कष्ण-विवरेसुं पि नो पविसेज त्ति जओ भवंतर करणं असुह-पाव-कम्मोदएणं जं किंचि दारिद्द - दुक्ख- दोहग्गअयसब्भक्खाणग- कुट्टाइ वाहि- किलोस सत्रिवायं देहम्मि संभवइ न अण्णह त्ति जे णं तु एरिसमागमे परढिज्जइ तं जहा । २-२ |
(११४२) को देइ कस्स दिजइ विवियं को हरइ हीरए कस्स
सयमप्पणो विदत्तं अल्लिय दुहं पिक्
॥२०५॥
( ११४३) चिंतमाणीए चेव उप्पत्रं केवलं नाणं कया देवेहिं केवलिमहिमा केवलिणा वि नर- सुरासुराणं पणासियं संसय-तम- पडलं अज्जियाणं च तओ भत्तिष्मपनिब्मराए पणाम- पुव्यं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्टमहं एमहंताणं महा-वाहि-येयणाणं भायणं संवुत्ता ताहे गोयमा सजल - जलहर - सुरदुंदुहि- निग्घोस-मनोहारि - गंभीर सरेण भणियं केवलिणा जहा-सुणसु दुक्करकारिए जं तुज्झ सरीर-विहडण- कारणं ति तए रत्त-पित्त दूसिए अय्यंतरओ सरीरगे सिणिद्धहारमाकंठाए कोत्लियग मीसं परिमुत्तं अनं च एत्य सए साहु-साहुणीणं तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालिअंति तायइयं पि बाहिर पाणगं सागारियष्ट्ठाय निमित्तेणावि नो णं कयाइ परिभुजइ तए पुण गोमुत्तं पडिग्गहणणयाए तस्स मच्छियाहिं मिणिहिणित-सिंघाणग-लालालोलिय-वयणस्स णं सडूढगसुयस्स बाहिर - पाणगं संघट्टिऊणं मुहं पक्खालियं तेण य बाहिरपाणय-संघट्टण-विराहणं ससुरासुर- जग-यंदाणं पि अलंघणिजा गच्छ मेरा अइक्कूकमिया तं च न खमियं तुज्झ पवयण देवयाए जहा- साहूणं साहूणीणं च पाणोवरमे वि न छिपे हत्येणा विजं कूवतलाय - पोक्खरिणि-सरियाइ मतिगयं उदगं ति केवलं तु जमेव विराहियं वचगय-सयल - दोसं फालुगं तस्स परिभोगं पत्नत्तं वीयरागेहिं ता सिक्खवेमि ताव एसा हु दुरायरा जेण अत्रो को विन
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