Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहानिसीह - (६४८) तहा अभिग्गहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ तत्य दबे कुम्मासाइयं दव्यं गहेयध्वं खेत्तओ गामे बहिं वा गामस्स कालओ पढमपौरिसिमाईसु भावओ कोहपाइसंपनी जं देहि इमं गहिस्सामि एवं उत्तर-गुणा संखेवओ सम्मत्ता सम्पत्तो य संखेवेणं घरित्तायारो तदायारो यि संखेवेणेहंतर-गओ तहा विरियायारो एएसु चेव जा अहाणी एएसुं पंचसु आयाराइयारेसुं जं आउट्टियाए दप्पओ पमायओ कप्पेण वा अजयणाए वा जयणाए वा पडिसेवियं तं तहेवालोइत्ताणं जं मग्ग-विउ-गुरू-उवासंति तं तहा पायच्छित्तं नाणुचरेइ एवं अट्ठारसहं सीलंग-सहस्साणं जं जस्य पए पमते मवेजा से णं तेणं तेणं पमाय-दोसेणं कुसीले नेए।४। (६४१) तहा ओसन्नेसु जाणे नित्यं लिहीज्झइ पासत्ये नाणामदीणं सच्छंदै उस्सुतुमागगामी सवले नेत्थं लिहिलंति गंथ-विस्थरपयाओ भगवया उण एत्यं पत्थावे कुसीलादी महया पबंघेणं पनदिए एत्थं च जा जा कत्यइ अननवायणा सा सुमुणिय-समय-सारेहितो पओसेयव्दा जओ मूलादरिसे चेव बहुं गंध विप्पणटुं तहिं च जत्य संबंधाणुलग्गं गंथं संबन्झइ तत्थ तत्य बहुएहिं सुयहरेहि सप्पिलिऊणं संगोवंग-दुवालसंगाओ सुय-समुद्दाओ अन्न-मन-अंग-उदंग-सुयक्खंधअझयगुहेसगाण समुधिणिऊणं किंचि किंचि संबज्झमाणं एत्थं लिहियं न उण सकव्वं कयं ति [४२० (६५०) पंचेए सुमहा-पावे जे न वजेन गोयमा संलावादीहिं कुसीलादी भमिही सो सुमती जहा ॥१३३॥ (१५१) भव-काय-द्वितीए संसारे घोर-दुक्ख-समोत्थओ अलमंतो दसविहे धम्मे बोहिमहिंसाइ-लक्खणे ॥१३४॥ (६५२) एत्यं तु किर-दिलुतं संसग्गी-गुण-दोसओ रिसि-भिल्ला समलासेणं निष्फण्णं गोयमा मुणे १३५!! (६५३) तम्हा कुसीलसंसग्गी सब्योवाएहिं गोयमा वजेजा य हियाकंखी अंडज-दिटुंत-जाणगे तइयं अन्यपणं समत्तं. | चउत्थमज्झयणं-कुसील संसगी । (६५४) से भयवं कहं पुण तेण समुइणा कूसील-संसगी कया आसी उ जीए अ एरिसे अइदारुणे अवसाणे समक्खाए जेण-भव-कायद्वितीए अणोर-पारं भव-सायरं भमिही से बराए दुक्ख-संतत्ते अलमंते सव्वन्नुवएसिए अहिंसा-लक्खण खंतादि-दसविहे धम्मे खोहिं ति गोयमा णं इमे तंजहा-अत्यि इहेव भारहे दासे मगहा नाम जणयओ तत्य कुसत्यलं नाम पुरं तम्मिय उवलद्धपुन-पाये सुमुणिय-जीवाजीवादि-पयत्ये सुमती-नाइल नामधेज्ने दुवे सहोयरे महिड्ढीए सड्ढगे अहेसि अहण्णया अंतराय-कम्मोदएणं वियलियं विहवं तेसिं न उणं सलत्त-परक्कम ति एवं तु अचलिय-सत्त परक्कमाणं तेसिं अचंतं परलोग-भीरूणं विरय-कूड-कवडालियाणं पडियण्णजहोवइह-दाणाइ-चउक्खंघ-उवासग-धम्माणं अपिसलुणाऽमच्छरीणं अमायावीणं किं बहुणा गोयमा ते उवासमा णं आवसहं गुणरयणाणं पमवा खंतीए निवासे सुयण-मेत्तीणं एवं तेसिं-बहुबासर-वण्णणिज-गुण-रयणाणं पि जाहे असुप्ह-कम्मोदएणं न पहुपए संपया ताहे न पहुपंति अट्ठाहिया-महिमादओ इट्टदेवयाणं जहिच्छिए पूया-सक्कारे साहम्मिय-सम्माणे बंधुयण-संववहारे ॥१३६॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154