Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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1१०७॥
॥१०९॥
महानिसीह • ५/-/७९७ (७९७) एयंगच्छ-वदतं दुप्पसहानंतरंतुजोखंडे
तंगोयम जाण गणिनिच्छयओऽनंत-संसारी (७९८) जंसयल-जीव-जग-मंगलेकक-कल्याण-परम-कल्लाणे सिद्धि-पहे वोच्छिन्ने पच्छितं होइतं गणिणो
||१०८॥ (७१९) तम्हा गणिणा सम-सत्तु-मित्त-पक्खेण परहिय-रएणं
कल्लाण-कखणा अप्पणोय आणान लंघेया (८००) एवं मेरा गं लंघेयव्वत्ति
एवं गच्छ-ववत्यं लंघेत्तुति-गारवेहि पडिबद्धे संखाईए गणिणो अज वि बोहिं न पार्विति
||११०॥ (८०१) न लभेहिति य अन्ने अनंत-हुतो विपरिममंतेत्यं चउ-गइ-भव-संसारे चेडेज्ञा चिरं सुदुक्खत्ते
॥११॥ (८०२) चोद्दस-रज्जू-लोगे गोयम यालग्ग-कोडिपेतंपि तं नत्थि पएसंजत्य अनंत-मरणे न संपत्ते
॥११२॥ (८०३) चुलसीइ-जोणि-लक्खे साजोणी नस्थि गोयमा इहई जत्त न अनंतहुत्तो सब्वे जीवा समुप्पत्रा
119१३॥ (८०४) सईहिं अग्गि-वत्राहिं संभित्रस्त निरंतरं जावइयं गोयमा दुक्खं गमे अट्ठ-गुणं तयं
॥११४॥ (८०५) गत्माओ निफिडतस्स जोणी-जंत-निपीलणे
कोडी-गुणं तयं दुक्खं कोडाकोडि-गुणं पिया (८०६) जायभाणाण जं दुक्खं मरणाणां जंतूणं तेणं दुक्ख-विवागणं जाईन सरंति अत्ताणि
११६॥ (८०७) नाणाविहासुजोणीसु परिभमंतेहिं गोयमा तेण दुक्ख-विवाएणं संभरिएणन जिव्वए
||११७॥ (८०८) जम्म-जरा मरण-दोग्गच्च-वाहीओ चिटुंतु ता
लज्जेजा गब्म-वासेणं को न बुद्धो महामती (८०९) बहु-रुहिर-पूई-जंबाले असुइ यकलिमल-पूरिए
अणिद्वेय दुब्मिगंधे गब्बे को धिई लभे (८१०) ता जत्य दुक्ख-विविखरणं एगंत-सुह-पावणं से आणं नोखंडेजा आणा भंगे कुओ सुहं
॥१२०|| (८११) सो मयवं अहहंसाहूणमसई उस्सग्गेण वा अववाएण वा चउहि अणगारेहि समं गमणागमणं नियंठियं तहा दसण्हं संजईणं हेट्ठा उसग्गेणं चउण्हं तु अमावे अववाएणं हत्यसयाओ उद्धं गमणं नाणुण्णायं आणं वा अइक्कमंते साहू वा साहूणीओ वा अनंत-संसारिए समक्खाए ताणं से दुप्पसहे अणगारे असहाए मवेज्जा सा वियविण्हुसिरीअणगारी असहाया चेव पवेजा एवं तु ते कहं आराहगे मवेजा गोयमा णं दुस्समाए परियंते ते चउरो जुगप्पहाणे खाइगसम्मत्त-नाण-दंसण-चारित्त-समण्णिए भवेजा तत्य णंजे से महायसे महाणुभागे दुप्पसहे अणगारे से णं अवंत विसुद्ध-सम्म-इंसण-नाण-चारित्त-गुणेहि उदवेए सुदिह-सुगइ मागे आसायणा-भीरू
||११५
119१८॥
||११९॥
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