Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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७४
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महानिसीहं ५/-/८१८
दोसेणं जं दुक्खमणुभवमाणे चिट्ठेति जं चाणुभूयं जं चाणुभविहिंति अनंत-संसार सागरं परिभते तं को अनंतेणं पि कालेणं भाणिऊं समत्यो एए ते गोयमा एगूणे पंच-सए साहूणं जेहिं च णं तारिसगुणवतस्सणं महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमियं नो आराहियं अनंत-संसारीए जाए 1991
(८१९) से भयवं किं तित्थयर-संतियं आणं नाइक्कमेजा उयाहु आयरिय-संतियं गोयमा चउव्विहा आयरिया भवंति तं जहा नामायरिया ठेवणायरिया दव्वायरिया भावायरिया तत्थ णं जे ते भावायरिया ते तित्थयर-समा चैव दट्ठव्या तेसिं संतियाऽऽणं आणा नाइक्कमेजा ११२ |
(८२०) से भयवं कयरे णं ते मावायरिया भण्णंति गोयमा जे अज-पव्वइए वि आगमविहिए पयं पएणाणुसंचरति ते भावायरिए जे उणं वास-सय-दिक्खिए वि होताणं वायामेत्तेणं पि आगमओ बाहिं करिति ते नामट्टवणाहिं निओइयव्वे से भयवं आयरियाणं केवइयं पायच्छित्तं भबेज्जा जमेगस्स साहुणो तं आयरिय-मयहर-पवत्तिणीए य सत्तरसगुणं अहा णं सील खलिए भवंति तओ ति-लक्ख गुणं जं अइदुक्करं नो जं सुकरं तम्हा सव्वहा सव्व-पयारेहिं णं आयरियमयहर- पवित्तिणीए य अत्ताणं पायच्छित्तस्स संरक्खेयव्वं अखलिय-सीलेहिं च भवेयव्वं ॥१३॥
(८२० ) से भयवं जे णं गुरू सहस्साकारणे अण्णयर-द्वाणे चुक्केज था खलेज वा से णं राहगे न वा गोयमा गुरूणं गुर- गुणेसु वट्टमाणो अक्खलिय-सीले अप्पमादी अणालस्सी सव्वालंबणाविप्यमुक्के सम-सत्तु-मित्त पक्खे सम्माग- पक्खवाए जाव णं कहा- भणिरे सद्धम्म- जुत्ते भवेज नो णं उम्मग्ग - देसए अहम्मागुरए भयेना सव्वहा सव्व-पयारेहि णं गुरुणा ताव अप्पमत्तेणं भवियत्वं नो णं पमत्तेणं जे उण पमादी भवेज्जा से णं दुरंत-पंत-लक्खणे अदट्ठव्वे महा-पावे जईगं सबीए हवेज्जा ताणं नियय - दुच्चरियं जहावत्तं स पर सीस-गणाणं पक्खाविय जहा दुरंत-पंतलक्खणे अदट्ठये महा-पाव -कम्मकारी समग्ग-पणासओ अहयं ति एवं निंदित्ताणं गरहित्ताणं आलोइत्ताणं च जहा- भणियं पायच्छितमनुचरेज्जा से णं किंचुद्देसेणं आराहगे भवेज्जा जइ णं नीसल्ले नियडी- विप्पमुक्के न पुणो संमग्गाओ परिभंसेजा अहा णं परिभस्से तओ नाराहे ॥ १४॥
(८२१) से भयवं केरिस - गुणजुत्तस्स णं गुरुणो गच्छ-निक्खेवं कायव्वं गोयमा जेणं सुब्बए सुसीले जे गंदढ व जे णं दढ-चारित्ते जे गं अनिंदियंगे जे णं अरहे जे णं गयरागे जे णं गयदोसे जेणं निट्ठिय-मोह - मिच्छित्त-मल-कलंके जे णं उवसंते जे णं सुविण्णाय - जग-द्वितीए जेणं सुमहा-वेरग्गमग्गमल्लीणे जे णं इत्थि कहा- पडिणीए जे णं भत्त-कहा- पडिणीए जेणं तेज-कहा पडिणीए जेणं रायकहा पडिणीए जे णं जणवय कहा- पडिणीए जेणं अचंतमनुकंप-सीले जेणं परलोग-पञ्चवाय-भीरू जे णं कुसील - पडिणीए जेणं विष्णाय समय-समावे जे णं गहिय-समयपेयाले जेणं अहण्णिसाणुसमयं ठिए खंतादि-अहिंसा-लक्खण-दस-विहे समण-धम्मे जे णं उत्ते अहण्णिसाणु समयं दुवालस-विहे तवो-कम्मे जे णं सुआवडते समयं पंचसमितीसु जे णं सुगुत्ते सययं तीसु गुत्तीसुं जेणं आराहगे स-सत्तीए अट्ठारसण्डं सीलंग-सहस्साणं जे णं अविराहगे एगतेणं स- सत्तीए सत्तरस-विहस्स णं संजमस्स जे णं उस्सग्ग रूई जे णं तत्त रूई जेणं सम-सत्तु-मित्तपक्खे जेणं सत्त-भय-ट्ठाण - विप्पमुक्के जेणं अट्ठ-मय-द्वाण विप्पजढे जे णं नवहं बंमचेर-गुत्तीणं विराहणा- मी जे णं बहु-सूए जेणं आरिय कुलुप्पत्रे जे णं अदीने जे णं अकिविणे जेणं अलसिए जेणं संजई - यग्गस्स पडिवक्खे जे णं सययं धम्मोवएस-दायगे जे णं सययं ओहसामायारी - परूवगे जे णं मेरावट्ठिए जे णं असामायारी - मीरू जे णं आलोयणारिहे जे गं पायच्छित्त
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