Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अन्यपणं-५ (७७९) दिण-दिक्खियस्स दमगस्त अभिमुहा अञ्जचंदणा अज्जा
नेच्छइआसण-गाहणं सो यिणओसव्य-अजाणं । (७८०) वास-सय-दिक्खियाए अज्ञाए अल-दिक्खिओसाहू
पत्तिब्मर-निब्मराए वंदन-विणएण सो पुजो (७८१) अञ्जिय लाभे गिद्धा सएण लाभेणजे असंतुद्वा
भिक्खायरिया-पग्गा अनियउत्तं गिराहिति (७८२) गय-सीस-गणं ओमे भिक्खायरिया-अपञ्चलं घेरं
गणिर्हिति न ते पावे अझियलाभ गवेसंता (७८३) ओमे सीस-पवासंअप्पडिबद्धं अजंगमत्तंच
न गणेज एगखित्ते गणेज घासं नियययासी (७८४) आलंबणाण भरिओ लोओ जीवस्स अजउकामस्स
जंजं पेच्छह लोए तं तं आलंबणं कुणइ (७८५) जस्य मुणीण कसाए चमटिजंतेहि पर-कसाएहि
नेच्छेन समुद्देउंसुणिविट्ठी पंगुलो ब्व तयं गच्छं (७८६) धम्मंतराय-भीए भीए संसार-गम-वसहीणं
नोदीरिज कसाए मुणी मुणीणं तयं गच्छं (७८७) सील-तव-दान-पावण-चउविह-धम्मतराय-भय-भीए
जत्थ बहू गीयत्ये गोयम गच्छं तयं वासे (७८८) जत्थ य कम्मविवागस चेट्टियं चउगईए जीवाणं
नाऊण महवरद्धे विनो पकुपति तं गच्छं (७८२) जत्थय गोयम पंचाँ कहविसूणाण एक्कमवि होञ्जा
तं गच्छंतिविहेणं वोसिरिय वएज अप्रत्य (७९०) सुणारंभ-पवित्तं गच्छं वेसुजलं च न वसेज्जा
जंचारित्त-गुणेहिं तु उज्जलं तं निवासेना (७९१) तित्ययरसमे सूरी दुञ्जय-कम्मट्ठ-मल्ल-पडिमल्ले
आणं अइकूकमंते ते का पुरिसे न सप्पुरिसे (७९२) भट्ठायारो सूरी मट्ठायाराणुवेक्खओ सूरि
उम्मगठिओ सूरी तिनि वि मग्गं पणासेंति (७९३) उम्मग्गए-ठिए सूरिम्मि निच्छियं भव-सत्त-संघाए
जम्हा तं मागमनुसरंति तम्हा नतंजुतं (७९४) एक्कं पिजो दुहत्तं सत्तं परिबोहिउँ ठवे मग्गे
ससुरासुरम्म वि जगेतेणेहं घोसियं अमाधायं (७९५) भूए अस्थि भविस्संति केई जग-वंदणीय-कम-जुगले
जेसिं परहिय-करणेक्क-बद्ध-लखाण बोलिही कालं (७९६) भूए अणाइ-कालेण केई होहिंति गोयमा सूरि
नामगहणेण विजेसिं होञ्ज नियमेणं पच्छित्तं
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