Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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ममायण तब्बिराहणेणं जहा एग देसददो पडो दड्डो पण्णइ तहा चउत्य-महव्वयं मागं जेण य सहत्येणुप्पाडिऊणादिण्णा मई पडिसाहिया तेणं तु तइय-महव्यपं भागं जे न य अनुगओ वि सूरिओ उग्गओ मणिओ तस्स य बीय वयं मग्गं जेण उ न अफासुगोदगेण अच्छीणि पहीयाणि तहा अविहीए पइयंडिल्लाणं संकपणं कयं बीयं कायं च अक्कंतं वासा-कृपस्स अंचलग्गेणं हरियं संघट्टियं विझूए फूप्तिओ मुहनंतगेणं अजयणाए फडफडस्स याउकायमुदीरियं ते गं तु पढम-दयं भग्गं तख्मंगे पंचण्डं पि महव्ययाणं मंगो कओ ता गोयमा आगमजुतीए एते कुसीला साहुणोजे उ णं उत्तरगुणाणं पि भंग न इटें किं पुणज मूल-गुणाणं से भयवंता एय नाएणं वियारिऊणं महव्वए घेतव्वे गोयमा इमे अटे समटे से भय के णं अटेणं गोयमा सुमणे इ वा सुसावए इवा न तइपं मेयंतरं अहवा जहोवऽहं सुसमणत्तमणुपालिया अहा णं जहोवइह सुसावगत्तमनुपालिया नो समणो सुसमणत्तमइयोज्जा नो सावए सावगत्तमइयरेजा निरइयारं वयं पसंसे तमेव य समणुढे नवरं जे समणधम्मे से णं अचंत-घोर-दुधरे तेणं असेस-कम्मक्खयं जहण्णेणं पि अहं भवसंतरे पोक्खो इयरेणं तु सुद्धेणं देव-गई सुमाणुसत्तं वा साय-परंपरेणं मोक्खो नवरं पुणो वितं संजमाओ ता जे से समण-धम्मे से अवियारे सुवियारे पन्न वियारे तह ति मनुपालिया उवासगाणं पुण सहस्साणि विधाणे जो परिवाले तस्साइयारं च न मवेतमेव गिपहे ।।
(१८३) से भयवं सो उण नाइल-सड्ढगो कहिं समुप्पन्नो गोयमा सिद्धीए से भयवं कहं गोयमा ते णं महाणमागेण तेसिं कसीलाणं संसम्गि नितुडेऊणं तीए घेव बहु सायय-तरु-संडसंकुलाए घोर-कंताराडवीए सब्ब-पाव-कलिमल-कलंक-विष्पमुक्क तित्ययर-वयणं परमहियं सुदुल्लहं भवसएसु पि ति कलिऊणं अचंत-विसुद्धासएणं फासुद्देसम्मि निपडिकम्मं निरइयारं पडिवण्णं पडिवण्णं पाययोगमणमनसनं ति अहण्णया तेमेव पएसेणं विहरमाणो समागओ तित्ययरो अरिष्टनेपी तस्स य अनुग्गहहाए तेणे य अचलिय-सत्तो भव्वसत्तोति काऊणं उत्तिमठ्ठपसाहणी कया साइसया देसणा तमायण्णमाणो सजल-जलहर-निनाय देव-दुंदुही-निग्योसं तित्ययर-भारई सुहन्झवसायपरो आरूढी-खवग-सेटीए अउव्यकरणेणं अंतगड-केवली-जाओ एते णं अटेणं एवं युधइ जहाणं गोयमा सिद्धीए ता गोयमा कुसील संसगीए यिपहियाए एवइयं अंतरं मयइत्ति|१०|
.उत्तअलपणं समतं
o-x- -x-. लुम्बिनेपा शान्तिका चियापासपचारयातेरमामय सम्मान प्रत्या परिचसूनः पुनः सर्वमेव मनुप्पियन समाविमा बयामात मा कतिपय परिमितराजासकरवानमिल्प बत् + माय-बीनामिणप-प्रसारमारिए । शिरमानने सब प्रतिसंताप कमलस्ति पसमातिनस्तु गते । परमाउ पार्षिकमा पुनः पुनः सामान पापपातास्तेच पामा मार्मिकमा पुनः पुकारपाय पातुरपातस्तेन तारुकमिजा-पदपुर मियान परिमारातापि संस्था वा मालम्पापविन पाति खपावल पुनर्वच सागरिमा विकृति तापम प्रविध ताब्या असत्की या उपतिववेक जाति-पातिपयकोक्तानि मानिय सितेरियोमm
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| पंचम अज्ययणं-नवणीयसारं (kar) एवं कुसील-संसगिसब्बोवाएहि पयहिउँ
उम्मग-पट्ठियं गछंजेवासे लिंग-जीविणं
॥१॥
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