Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्नपणं ११ ||१४१॥ ||१४२॥ ॥१४४॥ (१४३) अन्नपुरिसं न निग्झायं नालयं समणि केवली तंतारिसं महापावं काउं अक्कहनीययं ||१३८॥ (१४४) तं सल्लपवि उप्पनंजह दत्तालोयण-समणि केवली एपादि-अनंत-समणीओदाउंसुद्धालोयणं ॥१३९॥ (१४५) निसल्ला केवलं पप्पा सिद्धाओ अनादी-कालेण गोयमा खंता दंता विमुत्ताओ जिइंदियाओ सच्च-भाणिरीओ ||१३९॥ (१४६) छ-काय-समारंभा विरया तिविहेण उ ति-दंडासव-संवुत्ता पुरिस-कहा-संगवजिया ||१४०|| (१४७) पुरीस-संलाव-विरयाओ परिसंगोवंग-निरिक्खणा निम्ममत्ताउ स-सरीरे अपडिबद्धाउ महा-यसा (१४८) भीया छि-छि-गब्य-वसहीणं बहु-दुक्खाओ भवसंसरणाओ तहा। ता एरिसेण पावणं दायदा आलोयणा (१४९) पायच्छित्तं पि कायव्यं तह जह एयाहिं समणीहिं कयं नउणं तह आलोएयव्वं माया-इंभेण केणाई ||१४३॥ (१५०) जह आलोयमाणीणं पाव-काम-वुड्ढी मवे अनंतानाइ-कालेणं माया-इंभ-छाम-दोसेण (१५१) कवडालोयणं काऊंसमणीओ ससल्लाओ आमिओग-परंपरेणं छट्ठियं पुढविं गया ।।१४५॥ (१५२) कासिंचि गोयमा नमो साहिमोतं निबोधय जाओ आलोयपाणाओ भाव-दोसेण । (१५३) सुटुतरगं पाव-कम्प पल-खवलिय-तव-संजप-सीलंगाणं निसलत्तंपसंसियंतंपरमभाव-यिसोहिएविणाखणद्धपिनोमव|१७|| (१५४) ता गोयम केसिमित्थीण चित्त-विसोहि सुनिम्मला मयंतरे वि नो होही जेण नीसल्लया भवे । (१५५) छठ-छम-दसम-दुधालसेहि सुक्खंति के वि समणीओ तह विय सराग-भावं नालोयंती न छटुंति (१५६) बहु-विह-विकप्प-कल्लोल-माला-उक्कलिगाहिणं वियरंतं तेण लक्खेझो दुरहगाह-मण-सागारं ॥१५॥ (१५७) तेकहमालोयणं देंतु जासिं चित्तं पि नो यसे सालं जो ताणमुखरएस-वंदणीओ खणखणे 11१५॥ (१५८) असिनेह-पीइ-पुयेणं धम्म-सद्भुल-सावियं सोलंग-गुणेट्ठाणेसुंउत्तमेसुंधरेइजो (१५९) इत्थी बहुबंधणम्मुक्कं गिह-कलत्तादि-चारगा सुविसुद्ध-सुनिम्मल-चित्तं नीसलं सो महायसो ॥१५३|| (१९०) दट्ठव्वो बंदणीओ य देविदाणंस उत्तमो दीनयी सव्व-परिभूयं विरइहाणेजो उत्तमे धरे ॥१४६॥ ||१४८॥ ||१४९। 11१५२॥ ||१५|| For Private And Personal Use Only

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