Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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॥१०३॥
१०५॥
||१०६॥
महानिप्ती - ३-५८५ (५८५) जह अचेऊणं सुरा निय-मवणेसुजह य य युणंति
तिंसव्वं महया वित्यरेण अरहंत-चरियामिहाणे]
अंतगडदसाणंत-मझाओ कसिणं विनेय (५८६) एत्यं पुण जंपगयं तं मोत्तु जइ मणेह तावेयं हवइ असंबद्धगुरुयं गंथस्स पवित्यरमनंतं
॥१०४|| (५८७) एवं पि अपत्थावे सुमहंतं कारणं समुवइस्स
जं वागरियं तंजाण भव्य-सत्ताण अनुग्णहद्वाए (५८८) अहवा जतो जत्तो भक्खिाइ मोयगो सुसंकरिओ
तत्तो तत्तो विजणे अइगरुयं माणसंपीइं ((५८१) एवपिह अपत्यावे विपत्ति-मर-निमराण परिओसं
जणवइ गरुयं जिण-गुण-गहणेक्क-रसक्खित्त-चित्ताणं ॥१७॥ (५९०) एवं तुजं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेणं अनंत-गमपञ्जदेहिं सुतस्स य पिहट्यूयाहिं निजुती-भास-चुण्णीहिं जहेद अनंत-नाण-दंसण-धरेहिं तित्ययरेहिं वक्खाणियं तहेव समासओवक्खाणिज्जं तं आसि अहण्णया काल-परिहाणि-दोसेणं ताओ निझुती-भास चुण्णीओ घोच्छिण्णाओ इओ य यचंतेणं काल समएणं महिढी-पत्ते पयाणुसारी वहरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुपने तेणे यं पंच-पंगल-महा-सुयखंधस्स उद्धारो मूलसुत्तस्स मन्झे लिहिओ मूलसुत्तं पुण सुत्तत्ताए गणहरेहिं अत्यत्ताए अरहंतेहिं भगवंतेहिं धम्मतित्यंकरहिं तिलोग-महिएहिं वीर-जिणएहिं वीर-जिणिंदेहिं पत्रवियं ति एस वुड्ढसंपयाओ।१७।
(५९१) एत्य य जत्य पयं पएणाऽणुलगं सुत्तालावगं न संपनइ तत्य तत्य सुयहरेहिं कुलिहिय-दोसो न दायव्यो ति किंतु जो सो एयरस अचिंत-चिंतामणी-कप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंधस्स पुव्यायरिसो आसि तर्हि चेव खंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊर्हि बहवे पनगा परिसडिया तहावि अच्चंत-सुपहत्थाइसयं ति इमं महानिसीह-सुयक्कंघं कसिण-पवयणस्स परमसार-सूर्य परं तत्तं महत्यं ति कलिऊणं पवयण-यच्छलतणेणं बहु-भय्य-सत्तोवयारियं घ काउंतहा य आय-हियट्ठयाए आयरिय-हरिमद्देणं जंतत्याऽऽयरिसे दिलुतं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति अन्नेहिं पि सिद्धसेन दिवाकर-दुड्वाइ-जक्खसेण-देवगुत्त-जसवण-खमासमण-सीसरविगुत-नेमिचंद-जिणदासगणि-खमग-सधरिसि-पमुहेहिं जुगप्पहाण-सुयहरेहिं बहुमण्णि-यमिणं ति।१८॥
(५९२) से भयवं एवं जहुत्तविणओवहाणेणं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिन्जित्ताणं पुव्वाणुपुबीए पच्छाणुपुच्चीए अनानुपुबीए सर-वंजण-मत्ता-बिंदु-पयक्खर-विसुद्धं घिर-परिचियं काऊणं महया पबंधेणं सुत्तत्यं घ वित्राय तओ य णं किमहिलेला गोयमा इरियावहियं से भययं केणं अद्वेणं एवं वुचइ जहा णं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिंजित्ता गं पुणो इरियावहियं अहीए गोयमा जे एस आया से गं जया गमणाऽगमणाइ परिणए अनेग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अणोवउत्त-पमत्ते-संघट्टणअवदायण-किलामणं-काउणं अनालोइय-अपडिक्कंते चेव असेसकम्मक्खयट्ठयाए किंचि चिइ-यंदणसम्झाय-झाणाइएसु अभिरमेशा तया से एग-चिता समाही भवेजा न वाजओणं गमणागमणाइ-अनेग-अन्न-वावार-परिणामासत्त-चित्तत्ताए केई पाणी तमेव भावंतरमच्छड्ढिय-अट्ट-दुहन्झवसिए कंचि कालं खणं विरत्तेज्जा ताहेतं तस्स फलेणं विसंवएज्जा
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