Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ E९॥ ७१॥ ॥७२॥ ॥७४|| मानिसीहं . ३/१५५० (५५०) नारग-भव-तिरिय-भवे अमर-भवे सुरइत्तणे वा वि नो तं लब्मइ गोयम जत्य व तत्य व मणुय-जम्मे ॥६॥ (५५१) सुमहऽयंत-पहीणेसु संजमावरण-नामधे सु ताहे गोयम पाणी भावत्यय-जोगयमुवेइ । (५५२) जम्मतर-संचिय-गरुय-पुन पब्बार संविढत्तेण माणुस-जम्मेण विणा नो लब्मइ उत्तमं धम्म (५५३) जस्साणुभावओ सुचरियस्स निस्सल दंभरहियस्स लख्मइ अउलमनंतं अक्खय-सोखं तिलोयग्गे (५५४) तंबहु-भव-संचिय-तुंग-पाव-कमट्ठ-रासि-दहणटुं लद्धं माणुस-जम्मं विवेगमादीहिं संजुत्तं (५५५) जोन कुणइ अत्तहियं सुयाणुसारेणआसवनिरोई छ-तिग्ग-सोलंग-सहस्स-धारणेणं तु अपपत्ते ॥७३॥ (५५६) सो दोहर-अव्योच्छिन्न-धोर-दुक्खग्गि-दाव-पञ्जलिओ उब्वेविय संततो अनंतहुत्तो सुबहुकालं (५५७) दुग्गंधाऽमेज्झ-चिलीण-खार-पित्तोज्झ-सिंभ-पडहच्छे वस-जलुस-पूय-दुहिण-चिलिचिले हिर-चिक्खल्ले ॥५॥ (५५८) कद-कद-कदंत चल-चल-चलस्स टल-टल-टलस्सरझंतो संपिंडियंगमंगोजोणी-जोणी बसे गये एक्केक-गप-वासेसु जंतियंगोपुनरवि ममेज्जा (५५१) तासंतावुब्वेग-जम-जरा-मरण-गढम-दासाई संसारिय-दुक्खाणं विचित्त-रूवाण भीएणं (५६०) पावत्यवाणुभावं असेस-भव-पय-खयंकरं नाउं तत्येव महंता भुञ्जमेणं दढमचंतं पयइयव्वं (५६१) इय विज्ञाहर किनर-नरेण ससुराऽसुरेण विजगेण संथुज्यंते दुविहत्यवेहिं ते तिहुयणेक्कीसे (५६२) गोयपा धमतित्यकरे जिणे अरहते अह तारिसे विइड्ढी-पवित्यरे सयल-तिहुयणाउलिए ___साहीणे जग-बंधू मनसा विनजे खणं लुद्धे । (५५३) तेसि पामीसरियं स्व-सिरी-वण्ण-बल-पमाणं च सामस्थं जस-कित्ती सुर-लोग-चुए जोह अवयरिए (५६४) जह काऊणऽन्न-भवे उपगतवं देवतोगमणुपत्ते तित्थयर-नाप-कम्मंजह बद्धं एगाइ-वीसइ-यामेसु ॥२॥ (५६५) जह सम्मत्तं पत्तं सामण्णाराहणाय अन्न-मये जह य तिसला उ सिद्धत्य-धरिणी चोइस महा-सुमिण-लंमं ॥३॥ (५६६) जह सुरहि-गंध-पक्खेवगम-यसहीए असुहमथहरणं जह सुरनाहो अंगुठ्ठपचं नमियं महंत-भत्तीए ॥७६॥ ॥७७॥ ॥७८॥ ॥७२॥ ||८ || ||८|| 11८४|| For Private And Personal Use Only

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