Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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जयपणे (५३२) सुसिलिङ्क-विसिट्ट-सुलट्ठ-छंद-सुविमत्त-मुणि-वैसे
बहुसिंघयण्ण-घंटा-धयाउले पवरतोरण-सणाहे (५३३) सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्व-सिरीए
मघ-मघ-मधेत-डझंत-अगलु-कप्पर-चंदणामोए (५३४) बहुविह-विचित्त-बहुपुष्फमाइ-पूयारुहे सुपूएय
निच-पणधिर-नाडय-सयाउले महुर-मुख-सद्दाले (५३५) कुइंत-रास-जण-सय-समाउले जिण-कहा-खित-चिते
पकहंत-कहग-नवंत-छत्त-गंधब्द-तूर-निग्योसे (५३६) एमादि-गुणोवेएपए पए सव्येमेइणी बढे
निय-भुय-विदत्त-पुनजिएण नायागरण अत्येण (५३७) कंचण-मणिसोमाणे यंभ-सहस्सूसिए सुवण्णतले
जो कारवेज जिनहरे तओ वि तव-संजमो अनंत-गुणो । (५३८) तव-संजमेण बहु-पव-समझियं पाव-कम्म मल-लेवं
निद्धोविऊण अइरा अनंत-सोक्ख वए मोक्खं (५३१) काउंपिजिणाययणेहिं मंडियं सव्वमेइणी-वर्ल्ड
दाणाइ-चउक्केणं सुद्ध वि गच्छे अच्चुयगं (५४०) न परओगोयमा गिहित्ति
जइ तालदसतम-सुर-विमाणयासी वि परिवडंति सुरा
सेसं चिंतिअंतं संसारे सासयं कयरं (५४१) कहतं भण्णउसोखं सुचिरेण वि मत्यदुक्खमल्लियइ
जंच मरणावसाणंसुदेव-कालीय-तुच्छंतु (५४२) सव्वेण वि कालेणं जंसयल-नरामराण भयइ सुहं
तं न घडइ सयमनुभूयामोक्ख-सोक्खस्सऽनंत-भागे वि। (५४३) संसारिय-सोक्खाणं सुमहंताणं पि गोयमानेगे
मझे दुक्ख-सहस्से घोर पयंडेणु जति (५४४) ताइंच साय-वेओयएण नयाणति मंदबुद्धीए
मणि कणगसेलमयलोढ-गंगलेजह व वणि-धूया (५४५) मोक्ख-सुहस्स उधम सदेव-मणुयासुरे जगे एत्यं
नो माणिऊणसक्का नगर-गुणे जहेवय पुलिँदो (५४६) कह तं भण्णउ पुत्रं सुचिरेण विजस्स दीसए अंतं
जंच विरसावसाणंज संसारानुबंधिंच (५४७) तंसुर-विमाण-विहवं चिंतिय-चवणं च देवलोगाओ
अइवलियं चियहिययंजनवि सय-सिक्करंजाइ (५४८) नरएस जाइं अइदूसहाईदुक्खाई परम-तिक्खाई
को वण्णेही ताइंजीवंतो वास-कोडिं पि (५४९) तागोयम दसबिह-चप्प-घोर-तव-संजमाणुठाणस्स
भावत्ययमिति नामं तेणेव लभेज अक्खयं सोखं-ति
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